March 29, 2024

शिक्षक दिवस पर शिक्षकों का आत्मविश्लेषण

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प्रो नंदलाल मिश्र
महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय
विश्वविद्यालय, चित्रकूट,सतना म० प्र०

भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। चूकि राधाकृष्णन जी मूलतः एक शिक्षाविद और शिक्षक थे,और ऐसे शिक्षक थे जिनमे शिक्षकत्व कूट कूट कर भरा था।अपनी पोशाक,रहन सहन और शिक्षा के प्रति उनकी निष्ठा उन्हे औरों से अलग करती थी।जीवन भर उन्होंने शिक्षा को जिया तथा लोगों के बीच उसका प्रचार प्रसार किया।वह उच्च कोटि के चिंतक और दार्शनिक थे।उनकी यही सादगी और उनका शिक्षा के प्रति समर्पण उन्हे राष्ट्रपति के पद तक ले गया।उनके छात्र भी धन्य थे जिन्हे राधाकृष्णन जी जैसा गुरु मिला।
आज हम शिक्षक दिवस मनाने जा रहे हैं और अपने अपने गुरुओं को याद कर उन्हे श्रद्धा सुमन अर्पित कर रहे हैं तो आज के शिक्षकों की स्थिति,शिक्षा की स्थिति,समाज में शिक्षकों के प्रति मनोवृति और शिक्षकों की जिम्मेदारियों पर विश्लेषण आवश्यक प्रतीत होता है।जिस युग में राधाकृष्णन जी शिक्षक थे उस युग में समाज में मूल्य थे मर्यादाएं थीं।परिस्थितियां अनुकूल थीं,शिक्षा का स्तर कम था।पर ठीक उसके उलट आज का समय कुछ अधिक वैज्ञानिक और आधुनिक हो गया है।भूमंडलीकरण के दौर में शिक्षा वैश्विक हो गई है और विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी पर अधिक बल दिया जाने लगा है।इसके अतिरिक्त सूचना प्रौद्योगिकी के तेज प्रवाह ने समाज में अजीबो गरीब स्थिति उत्पन्न कर दी है।दुनिया का समस्त ज्ञान आपके सम्मुख है ।आपको उसमे से चुनना है उनको जो आपको विकास और जनोन्मुख मार्ग पर ले चल सके।चुनने के लिए भी आपके अंदर विवेक और विनम्रता का होना जरूरी है।
आज की शिक्षा अपने मूल उद्देश्य से भटक गई है।और वह मुख्य रूप से रोजगार से जुड़ गई है।देश की जनसंख्या में बेतहाशा वृद्धि हो रही है।इतनी बड़ी जनसंख्या का उदर भरण भी एक आवश्यक जिम्मेदारी है।धर्म कर्म काम मोक्ष तब ही संभव होता है जब पेट में दो वक्त का भोजन जाय।यह तभी संभव है जब इनके उदर भरण की व्यवस्था पहले हो जाय क्योंकि यह दैहिक जरूरत है।बिना दैहिक जरूरत के पूर्ति के भजन नही हो सकता।भजन भी तब ही अच्छा लगता है जब पेट भरा हो।संसाधन सीमित हैं उन्हें तानकर फैलाया नही जा सकता अतः कृतिम आविष्कार अत्यंत महत्वपूर्ण हो चले हैं।ऐसे में शिक्षा को रोजगारोन्मुखी होना अपरिहार्य अनिवार्यता है।किंतु साथ में यह भी जरूरी है कि व्यक्ति के लिए मात्र उदर भरण ही जरूरी नहीं है। क्योंकि इंसान को ईश्वर ने इस संसार में मात्र उदर भरण के लिए ही नहीं भेजा है।उसने इंसान को इस लिए भेजा है कि वह उन असंख्य लोगो के लिए रास्ता बनाए जो अपने पूर्व कर्मो के कारण मृत्युलोक में विचरण कर रहा है और अपने बुरे कर्मो का फल भोग रहा है।जिन्हे मदद की जरूरत है ।जिन लोगो उदर भरण आसानी से हो रहा है वे दूसरों की मदद करें और अपने पारलौकिक मुक्ति का रास्ता खोजे।पारलौकिक मुक्ति के लिए आध्यात्मिक सद्कर्मों की जरूरत है।यही सद्कर्म को सीखना और उन्हें अपने व्यवहार में उतारना शिक्षा का उद्देश्य है।उपनिषद में स्पष्ट वर्णन मिलता है कि
श्रेयश्च प्रेयश्च मनुष्य मेटड तौ संपरित्य विविनंकति धीरह
श्रेय और प्रेय दोनो ही इस संसार में विद्यमान है।आपको इनमे से चुनना है कि आप श्रेय का वरण करते हैं या प्रे का।श्रेय का वरण करते हैं तो आपको दोनो लोकों से मुक्ति मिलती है और यदि प्रे में उलझे रहे तो आपको बार बार इस मृत्यु लोक में नाना योनियों में जन्म लेना पड़ेगा और आपके भटकाव का अंत नहीं होगा।गुरु का कार्य आज यह होना चाहिए कि वह आपको सद्कर्मों पर ले चले।
अब हमे गुरु और शिक्षक दोनो में अंतर समझना चाहिए। हर व्यक्ति जीवन में शिक्षा ग्रहण करता है तो उसका कोई न कोई शिक्षक जरूर होगा।अतः शिक्षक दिवस पर अपने शिक्षक का सम्मान करे क्योंकि उसने आपको इस लायक बनाया है कि आप उसके दिए ज्ञान से अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन ठीक से कर पाते हैं।पर जीवन में हमे अपना गुरु भी चुनना पड़ता है जो आपको बुरे कर्मो से बचाते हुए आपको आध्यात्मिक उन्नति के चरम पर पहुंचाता है।वह आपके रोजी रोटी की व्यवस्था भी करता है और आपको इस लोक में कल्याण के कार्यों में भी अग्रसर करता है।अतः गुरु शिक्षक तो है जो आपको अच्छे कार्यों को सिखाता है और आपके पारलौकिक सुख को सम्मृद्ध करता है पर शिक्षक आपको आपकी जिम्मेदारियों से लड़ने की शिक्षा देता है तथा इस संसार में आप अपनी जिम्मेदारियों को अपने रोजगार से पूरा कर सकें, इसका रास्ता प्रशस्त करता है।
अब थोड़ा इस बात को समझें कि आज समाज में शिक्षकों की क्या स्थिति है।आज का शिक्षक एक नौकर है जो सरकार के दिशा निर्देशों पर चलता है।सरकार अच्छा बुरा जो भी आदेश कर दे उसका पालन जरूरी है।चुनाव कराना,जनगणना करना,सरकार की परियोजनाओं का क्रियान्वयन करना इत्यादि सभी कार्य शिक्षक के जिम्मे है। जब कोई व्यक्ति वेतन भोगी हो जाता है तो वह उस क्षेत्र में स्वतंत्र निर्णय नही ले सकता।इसलिए वह वही करता है जैसा आदेश पाता है।हालाकि एक शिक्षक का दायित्व अत्यंत विशाल है।उसे समाज का पथ प्रदर्शक कहा जाता है।वह उस पीढ़ी को तैयार करता है जिनके कंधों पर देश और समाज का दायित्व होता है।वह उस युवा को तैयार करता है जो देश की रक्षा,राष्ट्र बोध और राष्ट्र के विकास में अपना योगदान देता है।अतः एक शिक्षक देश के लिए इतना महत्वपूर्ण होता है जितना और कोई नही।इसलिए शिक्षकों के प्रति सम्मान का नजरिया होना चाहिए।पर स्थिति अत्यंत विचित्र है देश के अन्य विभागों में सर्विस करने वालों की नजर में शिक्षक सबसे निकृष्ट नौकर है।देश के नौकरशाह यह कहते हुए सुने जाते हैं कि शिक्षक मोटी पगार लेता है और कुर्सी तोड़ता है।इस पर एक बात उजागर करनी है कि जब ईडी, सी बी आई के रेड पड़ते हैं तो किस शिक्षक के घर से करोड़ों की गड्डियां मिलती हैं।कौन शिक्षक आज तक पकड़ा गया पर आए दिन बाबू नौकरशाह, नेता, मंत्री सभी पकड़े जा रहे हैं।क्या इन्हे देश को लूटने की शिक्षा दी गई है।अधिकारी बनकर दिन रात भ्रष्टाचार में लगे रहते हैं पर शिक्षक पर हजार तरह की पाबंदियां लगी रहती हैं।
जरूरत है शिक्षक आत्म मंथन करे और अपनी जिम्मेदारी को भली भांति समझे।समाज में उसका एक आदरणीय स्थान है, उस स्थान को बनाए रखे।गर्व होता है उन शिक्षकों पर जो दिन रात अपने शिष्यों को आगे बढ़ने का रास्ता दिखाते हैं।बदले में एक पैसा भी नहीं लेते। हां हर जगह अपवाद होता है।कुछ शिक्षक अपने दायित्वों की पूर्ति न करके शिक्षक सम्माज को बदनाम करते हैं।वास्तव में वे शिक्षक नही हैं किसी गलत रास्ते से इस तरफ आ गए हैं।गर्व है इस बात का शिक्षक सी बी आई और ईडी का सामना नहीं कर रहे हैं। हां शिक्षा जगत में जो लोग प्रशासनिक ओहदों पर बैठे हैं उनमें से अधिकांश लोगो की नियुक्तियां राजनीतिक रूप से होती हैं जहां पहले अच्छे अकैडमिशियन आते थे अब उन जगहों पर ऐसे लोग नियुक्तियां पाने में सफल हो रहे हैं जिनकी राजनैतिक पकड़ है।ऐसे लोग ही शिक्षा जगत को बदनाम किए हुए हैं।
समय आ गया है शैक्षिक सुधारों का।ध्यान देना होगा उच्च शिक्षा में ऊंचे पदों पर नियुक्तियां राजनैतिक न होकर विद्वानों की नियुक्तियां की जाय अन्यथा उच्च शैक्षणिक संस्थान राजनीति का अखाड़ा बन सकते हैं और इससे समस्त शिक्षा जगत प्रभावित हो सकता है।आज शिक्षक दिवस पर उन सभी सम्माननीय शिक्षकों को कोटि कोटि प्रणाम जिन्होंने शिक्षा को राष्ट्र निर्माण का माध्यम बना रखा है।

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