
विवेक चतुर्वेदी
किसी शहरे इलतिफ़ात में लेकर चलो मुझे
वामान्दगॉं हूँ यार तुम लेकर चलो मुझे।
इस शहर में क्या सारे जंगजू लोग हैं
किसी पुरसुकून शहर में लेकर चलो मुझे।
नदियाँ तक जल उठी हैं अब मेरे देस की
हो गॉंधी का कोई गॉंव तो लेकर चलो मुझे।
चाहा ही कब था हमने एक ज़िन्दगी का वस्ल
दो चार कदम तो साथ में लेकर चलो मुझे।
मालूम है कू ए यार में अपनी गुज़र नहीं
जब तय है सू ए दार तो लेकर चलो मुझे।
दिल भर गया है अब तो रहनुमाई फरेब से
कहीं सच्चा हो कोई दॉंव तो लेकर चलो मुझे।।
शहरे इलतिफ़ात – मेहरबान शहर/वस्ल – साथ/कू ए यार – प्रेम की गली
सू ए दार – मौत की गली/वामान्दगॉं – थका हुआ