विवेक चतुर्वेदी
फिर से तेरी बात चली है बारिश में
पानी से क्यों आग लगी है बारिश में।
इक वो दिन, वादा वो और वो रस्ता
दौड़े दौड़े याद में आए बारिश में।
रुक बैरन तो दाना ढूंढूँ बच्चों का
चोंच निकाले बैठी चिड़िया बारिश में।
काले काले बादल और गोरी बातें
बोल रही है बिजली फिर फिर बारिश में।
बाहें जोड़े भीग रहा है एक जोड़ा
मेरी ऑंखें भीग रही हैं बारिश में।
धनिया होरी फिक्र में कल से रोपा की
और तुमें रुमान सूझ रा बारिश में।
मालूम है वो गया लौट न आएगा
उठ आएगी हूक मगर हर बारिश में।
