July 8, 2025
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विवेक चतुर्वेदी

आज वो मेहरबान क्यूँ हैं
और दिल हैरान क्यूँ है

किससे बोलें रोएं किससे
शहर यूँ अनजान क्यूँ है

मकीं खो गए हैं कहॉं
बस्तियाँ वीरान क्यूँ हैं

चाय खौलती ही नहीं
प्याली में तूफान क्यूँ है

तू आया है अब न जाएगा
हमको ये गुमान क्यूँ है

झूठ बोलेंगे वो सियासी हैं
तू इतना परेशान क्यूँ है

हिज्र तो हाथ की लकीरों में
फिर तू पशेमान क्यूँ है

ज़िन्दगी एक मदरसा है मगर
रोज़ इक इम्तिहान क्यूँ है।।
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मकीं – मकान में रहने वाले लोग
हिज्र – जुदाई
पशेमान – लज्जित

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