May 3, 2024

फिल्में क्षेत्रीय हों या राष्ट्रीय उसका मूल मकसद समाज को आइना दिखाना होता हैं- संजीव स्वराज

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संजीव स्वराज ने ग्रामीण रंगमंच से अभिनय की शुरुआत की। लगभग दो दशक से वालीबुड में सक्रिय हैं। मैथिली और हिन्दी रंगमंच से चलकर इन्होंने हिन्दी सिनेमा तक का सफर किया। इनसे हमारे वरिष्ठ पत्रकार अखिलेश कुमार झा की ख़ासबातचीत-

अखिलेश – आप बिहार में कहाँ के मूल निवासी है ?
संजीव – मैं मिथलांचल से आता हूँ, मधुबनी जिला के उत्तम ग्राम ननौर मेरा पैतृक गांव हुआ. जहाँ मैंने मैट्रिक तक की शिक्षा ग्रहण की.

अखिलेश  आपने अभिनय की शुरुआत कब से की?
संजीव  पूरी तरह याद तो नहीं पर बाल्यावस्था से ही मैं बड़े भैया लोगों के साथ ग्रामीण रंगमंच पर सक्रिय था,और फिर तो चस्का सा लग गया।

अखिलेश – यह चस्का अधिक गहरा कैसे हुआ?
संजीव – एक बार दुर्गापूजा में महिषासुर वध नाटक का मंचन हुआ, जिसमें बड़े भाई शंकर नाथ ठाकुर ने महिषासुर की भूमिका निभाई और मैंने उनके पुत्र रक्तासुर की भूमिका निभाई। उसमें दर्शकों का जो प्रोत्साहन मिला, वही मुझे पटना के रंगमंच पर खींच लाया। उसके बाद देश-विदेश के रंगमंच पर मंचन का सौभाग्य मिला।

अखिलेश – शौक के रूप में अभिनय करते हुए इसे करियर बनाने की कब सोच ली?
संजीव – ग्रामीण रंगमंच ने मुझे भरपूर अवसर दिया। मैट्रिक के बाद जब पटना में I.Com में नामांकन के बाद मैथिली रंग संस्था ‘भंगिमा’ से जुड़ने का सौभाग्य मिला और वहाँ छत्रानन्द सिंह झा जी से अभिनय की बारीकियों को समझने का अवसर मिला।

अखिलेश – पर्दे पर आने का मौका कब मिला?
संजीव – भंगिमा के साथ काम करने के सिलसिले में दूरदर्शन के एक सीरियल ‘सज़ा’ में एक भूमिका मिली,जहाँ पहली बार छोटे पर्दे पर मेरा प्रवेश हुआ।

अखिलेश – दूरदर्शन के धारावाहिक “सज़ा” मे मिले अवसर को आपके करियर का टर्निंग प्वाइंट कहें तो उचित होगा?
संजीव – जी बिल्कुल! यहीं मुझे लगा कि अभिनय में करियर बनाया जा सकता है और दूसरे लोग कर सकते हैं तो मैं भी कर सकता हूँ।

अखिलेश – इस सफर में आपका अगला पड़ाव कौन सा था?
संजीव – मेरा अगला पड़ाव दिल्ली था। वहाँ के रंगमंचों से जुड़ा और राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के दिग्गज़ निर्देशकों के साथ लगभग 40 नाटकों में काम करने के बाद मैं हिमाचल के मंडी स्कूल औफ ड्रामा सेे अभिनय में प्रशिक्षण प्राप्त किया.

अखिलेश – वाणिज्य की पढाई और अभिनय में करियर! ऐसा कैसे?
संजीव – सच कहूँ तो मैं जिस परिवेश से आया हूँ वहाँ आज भी बच्चों को सिर्फ नौकरी के लिए पढाया जाता है। ऐसे में मुझे ऐसा निर्णय लेने में भारी कठिनाईयों का सामना करना पड़ा।

अखिलेश – जब आपने फिल्मों का रुख किया तो पिताजी की कैसी प्रतिक्रिया थी?
संजीव – वे तो सहयोग करते ही हैं। मेरे पिताजी (श्री सीताराम ठाकुर) बड़े सीधे और सरल स्वभाव के व्यक्ति हैं। इतने निश्छल हैं कि जब मुझे करण जौहर की फिल्म ‘अंगुली’ मे काम मिला तो उन्होंने कहा-वाह बहुत आशीर्वाद मुदा ई करण जौहर के छै?(करण जौहर कौन हैं?)

अखिलेश – नाटक और सिनेमा में आप क्या अन्तर पाते हैं?
संजीव – नाटक में अभिनेता और दर्शक के बीच कोई नहीं होता, पर सिनेमा में कई तकनीकी और व्यावसायिक तौर पर बदलाव होता है। एक कलाकार के तौर पर कहूँ तो एक अभिनेता रंगमंच पर जितना संतुष्ट होता है उतना सिनेमा या सीरियल में नहीं।

अखिलेश – आपकी मातृभाषा मैथिली है। मैथिली रंगमंचों और मैथिली सिनेमा की प्रगति के लिए आप क्या सोचते हैं?
संजीव – जी, बिल्कुल सही कहा आपने। मैने अभिनय की औपचारिक शुरुआत मैथिली रंगमंच से की । मैं शत प्रतिशत मैथिल हूँ। ” आब किछु मैथिली में सेहो कहब, हम सदिखन मैथिली लेल तन मन धन सँ समर्पित रहब।” एक और महत्वपूर्ण बात कहूँगा कि फिल्में क्षेत्रीय हों या  राष्ट्रीय उसका मूल मकसद व्यवसाय करने के साथ ही समाज को आइना दिखाना है।

अखिलेश – मैथिली फिल्मों के लिए सबसे बड़ी बाधा आपको क्या लगती है?
संजीव – सबसे बड़ी बाधा है कि जब मैथिली फिल्मों का निर्माण होता है तो ज्यादातर लोग उसे पारिवारिक आयोजन बना लेते हैं, जो सबसे घातक है, जबकि मिथिला की धरती ने एक से एक कलाकारों को पैदा किया जो व्यासायिक तौर पर अभिनय में सक्रिय हैं।
यदि ईमानदार कोशिश हो तो मैथिली फिल्म उद्योग विश्व भर में अपनी पहचान बना सकता है।

अखिलेश – इस क्षेत्र में आपका सफर कैसा रहा?
संजीव – मैं सिर्फ शीशे में अपने आप को देख के नहीं अपितु पूर्ण तैयारी के साथ इंडस्ट्री में कदम रखा। यहाँ का संघर्ष फौज की ट्रेनिंग से कम नहीं। उपर से लोगों का सवाल थिएटर तो ठीक है पर करते क्या हो ?? परेशान करता था।।

अखिलेश – अपने अब तक के किए कार्यों के बारे में सक्षेप में बताएँ।
संजीव – नाटक के बाद पर्दे पर धारावाहिक शक्ति, ससुराल सिमर का, पहरेदार पिया की, कुमकुम भाग्य ,उड़ान,अग्निफेरा,माता की चौकी,शाम दाम दंड भेद,उड़ान सावधान इण्डिया, क्राइम पेट्रोल सहित लगभग दो दर्जन सीरियल में काम कर चुका हूँ।

अखिलेश – बॉलीवुड में आपके काम के बारे लोगों को जानकारी दीजिए।
संजीव – बॉलीवुड फिल्में -करण जौहर निर्मित फ़िल्म अंगुली, मुरारी ‘द मैड जेन्टलमेन, दिल्ली सिक्स, मुहल्ला अस्सी, शूटर आदि फिल्में कर चुका हूँ। इन फिल्मों में मुझे सन्नी देओल, सुनील शेट्टी, अभिषेक बच्चन, इमरान हाशमी, रणदीप हुड्डा जैसे बड़े कलाकारों के साथ काम करने का मौक़ा मिला।

अखिलेश – आपकी आगामी फिल्में कौन सी हैं?
संजीव – कंगना राणावत के साथ “मणिकर्णिका द क्वीन ऑफ झांसी“, बालाजी के साथ किडनैप, विक्रम भट्ट के साथ मेमोरिज तथा जोहराबाई जैसे बड़ी फिल्मों में काम कर रहा हूँ।

अखिलेश – आपके बाद वाली पीढ़ी के जो लोग इस फील्ड में खुद को आजमाना चाहते हैं उनसे क्या कहेंगे?
संजीव – उनसे तो बस इतना ही कहेंगे कि ये फिल्म नहीं आसान , इसलिए खुद को सिर्फ शीशे में देखकर निर्णय ना लें, पूर्ण तैयारी और दृढ इच्छा शक्ति के दम पर ही निर्णय करें। मुझे पता है कि यहाँ प्रतिभाओं की भरमार है। जरूरत है सही दिशानिर्देश और उचित मार्गदर्शन की।

अखिलेश – आपने हमारे लिए वक्त निकाला इतनी अच्छी बातें की, आपको धन्यवाद।   
संजीव – आपने इतना महत्वपूर्ण अवसर दिया आपको भी धन्यवाद.

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