December 5, 2025
1 min read
Spread the love

विवेक चतुर्वेदी

आज मुंसिफ हैं निकलेंगे कल वे ही मुज़रिम
मुल्क बहुत रोएगा देखना कभी गाते गाते।

जम्हूरियत जिस तरह बेबस है कि यहाँ
देख लेते अगर गॉंधी दोबारा मर जाते।

नदी में पूर आने से भी ऐसा डरना क्या
निशॉं हाथों के तो रेत में बनाकर आते।

उस निर्जन मंदिर में देव था कितना तन्हा
जोड़ आना एक दिया तुम कभी आते जाते।

कोई मरासिम नहीं है महज़ आदत है
पलटकर देखा है जो उसने मुझे जाते जाते।

उदास शाम है आओ बैठो जरा शराब पिएँ
शेख साहब भी आ जाएंगे रात के आते आते।

चित्र – अवधेश बाजपेयी (देश के विख्यात चित्रकार)

More Stories

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *