September 27, 2024
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विवेक चतुर्वेदी

उधर गाजा में बच्चे मर रहे हैं
महज़ अखबार में हम पढ़ रहे हैं

हाँ कत्लेआम है मग़र जायज़ है
उफ वो कैसे नैरेटिव गढ़ रहे हैं

मैं शर्मसार हूँ कि नुमाइंदे हमारे
कातिल मुल्क के कसीदे पढ़ रहे हैं

न इज़राइल कहीं है न फलस्तीन कहीं
लड़ाई मज़हबी है जो दोनों लड़ रहे हैं

रहनुमा महफूज़ रहते आए हैं हमेशा
लोग आम हैं जो रोज सूली चढ़ रहे हैं

सपने में चीखती हैं भूखे बच्चों की रुहें
मेरी नींद के टांके वहीं उधड़ रहे हैं।।

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