वन्यजीवों को बचाकर ही पारिस्थितिकी तंत्र को बचा सकते हैं
1 min readसर्वेश तिवारी- लेखक सक्षम चंपारण के संस्थापक और निर्भया ज्योति ट्रस्ट के महासचिव
वन्यजीवों को बचाकर ही पारिस्थितिकी तंत्र को बचा सकते हैं –
आज (3 मार्च)– विश्व वन्यजीव दिवस (वर्ल्ड वाइल्डलाइफ डे) है। इस दिन का उद्देश्य जंगल और इसमें रहने वाले वन्यजीवों की सुंदरता और विविधता को बताते हुए इनकी सुरक्षा के लिए लोगों को जागरूक करना है। हम सभी ने हाल ही में कोविड-19 महामारी को देखा है जिससे पूरी दुनियां सहम गयी थी। चूँकि इंसान के संवेदनाओं को उनकी अभिव्यक्ति से समझा जा सकता है इसलिए वह अपना दुःख दर्द बता सकते हैं लेकिन वन्य जीव अपनी समस्या किससे कहेंगे? उनके समस्याओं को कौन समझेगा ? यह दायित्व भी तो इंसानों का ही है, क्योंकि पुरे धरती पर इंसान ही एक ऐसा जीव है जो अपने सुरक्षा के लिए अपने दिमाग का प्रयोग करता है।
वन्यजीव, प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र ( इकोसिस्टम ) के मुख्य घटक हैं। पारिस्थितिकी संतुलन सुनिश्चित करने और पारिस्थितिक तंत्र को मजबूत करने में वन्यजीवों का बड़ा महत्व है। पृथ्वी सभी जीव-जंतुओं और वनस्पतियों के लिए एक सामान है। लेकिन यह दुखद है कि प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन से जीव-जंतुओं की कई नस्लों की विविधता खतरे में पड़ गयी है और कुछ तो विलुप्तप्राय हो गए । अगले दशक में पृथ्वी पर मौजूद सभी वनस्पतियों में से लगभग एक चौथाई के विलुप्त होने का खतरा है। प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन से न सिर्फ मानव जाति को नुकसान पहुंचता है, बल्कि वन्य जीवों और वनस्पतियों को भी क्षति पहुंचती है।
जीव-जंतु और वनस्पति, प्रकृति को सुन्दर और यहाँ रहने योग्य पर्यावरण बनाते हैं, जो हमारे मानव जीवन के लिए बहुत जरुरी है। पृथ्वी पर सभी जीवों-जंतुओं और वनस्पतियों की रक्षा करने की हम मनुष्यों की जिम्मेदारी है।
देश में जंगल लगातार कम होते जा रहे हैं। जंगल कम होने से जगंलों में रहने वाले जीवों की संख्या भी लगातार कम हो रही है। ऐसे में इन्हें बचाये रखने की बहुत जरुरत है। विभिन्न सरकारी प्रयासों से यह काम किया जा रहा है लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। इसके प्रति लोगों को भी जागरूक करने की जरुरत है। कोरोना काल में आक्सीजन की जरूरत को हम सभी ने देखा और यह महसूस किया कि यह हमारे लिए कितना जरूरी है। चूँकि यह प्राकृतिक रूप से उपलब्ध है तो हमनें इसे, विकास की गाड़ी में सवारी करते हुए नज़रन्दाज़ किया । हम इंसानों ने इसको लेकर बातें बहुत कीं लेकिन क़द्र नहीं किया। ठीक उसी तरह अब वाइल्डलाइफ के साथ है। जब यह देश में प्रचुर मात्रा में रहा, तो हमनें इसकी परवाह नहीं की। इस अनदेखी का ही दुष्परिणाम है कि वन्यजीवों की तमाम प्रजातियां कम या लुप्तप्राय हो रही हैं। जंगलों का क्षेत्रफल घटने से इसका असर पर्यावरण पर पड़ रहा है और हम अभी भी प्रभावी उपाय करने की बजाये गोलमेज सम्मेलनों के सहारे सिर्फ चर्चा कर रहे हैं। हमारे ही देश में
पिछले वर्ष जारी एक रिपोर्ट द्वारा देश में जंगलों के विकास की स्थिति सकारात्मक ही बताई गई है। 2019 से 2021 के बीच देश में जंगल क्षेत्र में 1,540 वर्ग किलोमीटर की बढ़ोतरी हुई। इसी के साथ देश में जंगल क्षेत्र बढ़ कर 7,13,789 वर्ग किलोमीटर हो गया।
यह देश के कुल भौगोलिक इलाके का 21।71 प्रतिशत है, जो 2019 के प्रतिशत (21।67 प्रतिशत) के मुकाबले बस थोड़ी से वृद्धि है। पेड़ों के इलाके में 721 वर्ग किलोमीटर की बढ़ोतरी हुई है। हालाँकि यह आकड़ें कागजों में बनाये गए नियमों के अनुसार भले ‘फील गुड’ करा रहे हों लेकिन जमीनी स्तर पर यह सच से बहुत दूर है।
इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर (आइयूसीएन) ने अपनी रेड लिस्ट में चेतावनी जारी करते हुए बताया है कि पूरी धरती पर गिने गए लगभग 63,837 प्रजातियों में से 19,817 विलुप्त होने की कगार पर हैं। इस सूची से धरती पर जैविक विविधता और पारिस्थिकी-तंत्र घोर संकट में दिख रही है।
अंधाधुंध विकास के कारण हमारे देश को बहुत नुकसान उठाना पड़ रहा है, यहाँ जैव विविधता खतरे में दिखाई दे रही है। एक रिपोर्ट के अनुसार जैव पारिस्थितिकी में आए संकट के लिए अवैध खनन, वन क्षेत्रों में आयी कमी और कंट्रीट के खड़े होते जंगल जिम्मेदार हैं। वन्यजीवों के रहने के अनुकूल जंगल न रहने से उनके अस्तित्व पर संकट है। और यह संकट न केवल जीवों पर है, बल्कि कई पेड़-पौधे भी धरती पर अपने जीवन के लिए संघर्षरत हैं। पर्यावरण मंत्रालय की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि गिर जंगल के प्रसिद्ध एशियाई शेर रायल बंगाल टाइगर और भारतीय गिद्ध विलुप्त होने की कगार पर हैं।
जंगल काटकर खेत बनाने और नदी तथा तालाब सूखा कर बड़ी-बड़ी बिल्डिगं बना कर हम विकास के नए परिभाषा को तो उदाहरण सहित बता देंगे लेकिन जब जंगल और नदी-तालाब ही नहीं बचेंगे तो इन जगहों में रहने वाले वन्यजीव कहां जाएंगे? और जीवन की सबसे आधारभूत जरुरत ‘हवा’ कहाँ से लायेंगे? लगातार जंगल नष्ट होने के कारण वन्यजीवों का आवासीय संकट बना हुआ है जिससे उनकी आबादी में निरंतर गिरावट आ रही है। वैसे तो तो पूरी दुनिया में विकास का पहिया तेजी से घूम रहा है पर हम मनुष्य विकास की अंधाधुंध दौड़ में उन चीजों को नष्ट करने पर तुले हुए हैं जो उनके पर्यावरण मित्र हैं।
विश्व वन्यजीव दिवस के अवसर पर हम सभी को मिलकर जन सामान्य को इसके महत्व और जरुरत के बारे में जागरूक करने की जरुरत है। भविष्य में ऐसा दिन ना आये जहाँ हम अपनी अगली पीढ़ी को कंप्यूटर ग्राफ़िक्स और एनीमेशन तथा नए नए आये आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस ( एआई ) के माध्यम से ही वन्य जीवों को दिखाएं। हम सभी को मिलकर यह प्रयास करना चाहिए की इस प्रकृति और इसके पारिस्थिकी-तंत्र को बचाएँ, जंगल में रहने वाले जीव-जंतुओं को बचाएँ।
सर्वेश तिवारी, लेखक सक्षम चंपारण के संस्थापक और निर्भया ज्योति ट्रस्ट के महासचिव हैं और कृषि, पर्यावरण, शिक्षा एवं अन्य सामाजिक कार्य के लिए लगातार आवाज उठाते हैं।