May 17, 2025

शनिदेव ने माता लक्ष्मी को बताया एक राज, जानने के लिए यहाँ क्लिक करें

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एक बार लक्ष्मी जी ने शनिदेव से प्रश्न किया की हे शनिदेव मैं अपने प्रभाव से लोगों को धनवान बनाती हूं और आप हैं कि उनका धन छीन कर उन्हें भिकारी बना देते हैं आखिर आप ऐसा क्यों करते हैं..

लक्ष्मी जी का यह प्रश्न सुनकर शनिदेव ने उत्तर दिया।
हे मातेश्वरी इसमें मेरा कोई दोष नहीं है जो जीव स्वयं जानबूझकर अत्याचार व भ्रष्टाचार को आश्रय देते हैं और क्रूर व बुरे कर्म कर दूसरों को रुलाते हैं और उन्हें दुखी देखकर स्वयं हंसते हैं उन्हें समय अनुसार दंड देने का कार्यभार परमात्मा ने मुझे सौंपा है इसलिए मैं लोगों को उनके कर्मों के अनुसार दंड अवश्य देता हूं मैं उनसे भीक मंगवाता हूं उन्हें भयंकर रोगों से ग्रसित बनाकर खाट पर पड़े रहने को मजबूर कर देता हूं….

इस बात को सुनकर लक्ष्मी जी बोली मैं आपकी बातों पर विश्वास नहीं करती ।
तभी तुरंत माता लक्ष्मी ने एक व्यक्ति को अपने प्रताप से धनवान बना दिया और शनि देव से कहा कि अब आप अपना कार्य करके दिखाएं तो शनिदेव ने जैसे ही उस व्यक्ति पर अपनी दृष्टि डाली तो व्यक्ति वह व्यक्ति छड़ भर में निर्धन एवं पहले की तरह भिखारी हो गया तो आश्चर्य को देखकर लक्ष्मी जी कहने लगी ऐसा क्यों हुआ तब शनिदेव ने बताया कि
हे माते:!
जिस व्यक्ति को अपने धनवान बनाया था वह व्यक्ति अनेक गांव को उजाड़ने वाला महान अत्याचारी एवं निर्लज्ज पापी जीव है और मेरा इसमें कोई दोष नही है।
मैंने उसे उसके कर्मों की सजा दी है क्योंकि यह काम मुझे परमात्मा ने सौंपा है जो व्यक्ति पाप करता है उस व्यक्ति को मृत्यु लोक में दंड देने का अधिकार नारायण ने मुझे दिया है……

हे मातेश्वरी अनेक मनुष्य धन के लोग में पढ़ कर ऐश्वर्य का जीवन जीने के लिए तरह-तरह के गलत कर्म कर बैठते हैं जिसका नतीजा यह निकलता है कि वह स्वयं अपने कई जन्म बिगाड़ लेते हैं भले ही मनुष्य को अपना कम खाकर भी अपना जीवन यापन कर लेना चाहिए लेकिन बुरे कर्म करने से पहले हर मनुष्य को यह सोच लेना चाहिए इसका परिणाम भी उसे खुद ही भोगना पड़ेगा…
इस प्रकार शनि देव के वचन सुनकर लक्ष्मी जी बहुत प्रसन्न हुई और बोली हे शनिदेव! आप धन्य है प्रभु ने आप पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है आपके इस स्पष्टीकरण से मुझे कर्म- विज्ञान के अनेक बातें समझ में आ गई है ऐसा कहते हुए लक्ष्मी जी अंतर्ध्यान हो गई….

जय शनिदेव ।
अतुल शास्त्री:

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