झूठ
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विवेक चतुर्वेदी
महज़ रोटी के लिए
दो जून भात के लिए
मॉं के इलाज के लिए
बेटी की फ्राक के लिए
महज़ एक शाम की शराब के लिए
किसी दोस्त-ए-ख़ानाख़राब के लिए
झूठ कोई बोलता हो
तो सामने से उसे मैं कह नहीं सकता
कि झूठे हो तुम
उफ … क्या तशद्दुद है ये
खास तौर पर इस वक्त… इस मुल्क में
जबकि मसनद पे बिठाए जाते हों शदीद गुनहगार
सोचता हूँ…
न जाने क्या मजबूरी रही होगी
वर्ना चाहता है कौन नहीं
हरदम पालना …सच्चे होने का ग़ुरुर
पर मियाँ! जिंदगी हर इक को
ये सहूलियत देती भी तो नहीं।।
दोस्त – ए – ख़ानाख़राब – बदनसीब दोस्त
तशद्दुद – हिंसा
शदीद गुनहगार – गम्भीर अपराधी
चित्र – अवधेश बाजपेई