आधुनिक युग के उभरते हुए कवि….. ईद मुबारक
1 min readमियाँ इस ईद
हम काफिर भी अचकन पहनेंगे
सुरमा लगाएंगे
सिंवइये पकाएंगे घर में
नमाज़ ए फज़र तो जरुर पढ़ आएंगे
देंगे ईदी बेटियों को
शरारे उनके सिलवाएंगे
आएगा बड़ा दिन तो
गिरजा जाएंगे
शहर की छाती पे सलीब बनाएंगे
पिता परमेश्वर को अपनी रोटी में बुलाएंगे
शाम घर आया जैकब
तो आरती में खड़ा हो जाएगा
डेविड कथा की पंजीरी को ललचाएगा
दोनों चूसेंगे गन्ने ग्यारस के
छुएंगे तुलसी हाथ माथे से लगाएंगे
चूमेंगे दरगाह की पाक ज़मीन
सज़दे में लेट जाएंगे
पढ़ेगा दुआ अमीन और चुप हो देखूंगा मैं
देख मेरी ओर वो भी मुस्कराएगा
तेरी चुप भी इबादत है पंडित
बंद होठों से कह जाएगा
पड़ेगी संकरान्त और मेला तो जरुर जाएंगे
साथ रमन होगा… होगा रौशन और सरदार
पर जाते जाते सलीम भी जीप में लटक जाएगा
नर्मदे हर हर वो चिल्लाएगा
सलमा भाभी जब बाजार में मिल जाएंगी
खाने गुझिया मुझे दीवाली में बुलाएंगी
नज़मा छुटकी के गाल मैं थपथपाउंगा
वो कहेगी चाचू… फुलझड़ी लाना
मैं कहूँगा…बिटिया जरुर लाउंगा
होली आएगी तो पहनेंगे टोपियाँ जालीदार
छिड़क गुलाल सईद चाचा को चिढा़एंगे
सुलेमान कहेगा है हराम मुझे
पर व्हिस्की तो जबरन उसे पिलाएंगे
बचा रेशमा नज़र अम्मी की
राम को सखियों से खत भिजवाएगी
धागा उसके नाम का बांध पीपल में
हाथ जोड़ेगी जल चढ़ाएगी
सनीचर को
सब जाएंगे हनुमानगढ़ी
कहेगा रमेश… तू मत चल बे
ये कुफ्र है बुतपरस्ती है
जवाब देगा हंसकर लुकमान
अबे कुफ्र तो तग़ाफ़ुल ए दोस्ती है…दूरी है
विवेक चतुर्वेदी
भारत विमर्श भोपाल म.प्र.