विवेक चतुर्वेदी
जुम्मन और अलगू
साथ चाय पीते रहें
कभी कभी ही सही
दिखती रहे गौरैया
जैसे तैसे ही पर घर चलता रहे
अपने बल्लू मोची का
थकान तो हो
घर लौटती स्त्री के पास
पर एक सपना भी बंधा रहे
धोती की खूंट में
बस … इतना ही दे जाना
नये साल… तो शुभ हो।।
विवेक चतुर्वेदी
जुम्मन और अलगू
साथ चाय पीते रहें
कभी कभी ही सही
दिखती रहे गौरैया
जैसे तैसे ही पर घर चलता रहे
अपने बल्लू मोची का
थकान तो हो
घर लौटती स्त्री के पास
पर एक सपना भी बंधा रहे
धोती की खूंट में
बस … इतना ही दे जाना
नये साल… तो शुभ हो।।