आओ होली मनाएं भाईजान
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विवेक चतुर्वेदी
आओ होली मनाएं भाईजान
सुर में इक फाग गाएं भाईजान
कितनी नफरत मली सियासत ने
चलो घिसकर कर मिटाएं भाईजान।
सफेद टोपी पे किरमिजी़ कितना खिलेगा
ज़र्द कुर्ते पे सब्ज छींटा पड़ेगा
शुतूरी पायजामा हो जाएगा कबूदी
दिल को चम्पई बनाएं भाईजान।
होली जलाने में बुतपरस्ती है
तो न आएं
गर दीन में मनाही है सो अपनाएँ
पर रात की आवारगी तो बनती है
आग में बस होरा भुंजाएं भाईजान।
मस्जिद की सीढ़ी सुबह साथ चढ़ें
नमाज़ ए फज़र भी दोनों साथ पढ़ें
वहाँ से निकल के , चौक पे रुक के
होलियाना हुल्लड़ मचाएं भाईजान।
मौलवी साहब से एक शरारत करें
जब वो डांटें तो बिल्कुल मासूम बनें
चुपके चुपके वज़ु की हौदी में
जरा सा रंग घुलाएं भाईजान।
ईद में सिवैंया तो मेरे घर पकेगी
शीर खुरमे की भी कढ़ैया चढ़ेगी
लेकिन अभी तो होली में आप
भाभी की गुझिया खिलाएं भाईजान
रंग की शाम मेरी छत आएं
श्… श चुपचाप सीढ़ी चढ़ आएं
एक बॉटल है मेरे पास रखी
आप बस सोडा लाएं भाईजान।
जवाब नफरत का दें, ये जरुरी है
दोनों कौम में कुछ हैं, जो फितूरी हैं
कहे हिकारत के साथ जो कटुआ – काफिर
उसको दो झापड़ लगाएं भाईजान।
नन्हीं प्राची है नन्ही सलमा है
अभी ये न हिन्दू है न ये मुसलमां है
होली – ईद में मिल खेलें दोनों
इनको सखियाँ बनाएं भाईजान।
विवेक
शुतूरी – बादामी, कबूदी – नीला, किरमिजी़ – गहरा लाल,
सब़्ज – हरा, जर्द – पीला, चम्पई – सुनहरा
होरा भुंजाएं – जली हुई होली में चना भूंजना
नमाज़ ए फज़र – सुबह की पहली नमाज़
वजू़ की हौदी – नमाज़ के पहले हाथ धोने के लिए पानी की टंकी