March 29, 2024

प्रदेश की शांति को कुरेदते राजनीतिज्ञ

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प्रो नंदलाल मिश्र
महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय
विश्विद्यालय,चित्रकूट, सतना म प्र

बहुत अरसे बाद उत्तर प्रदेश के जन जीवन में कुछ शांति नजर आ रही है।लोग निश्चिंत होकर अपने अपने कार्यों में लगे हैं।लोग अब द्वेष को अपने मन में दबाकर एक दूसरे से नही मिलते बल्कि एक साथ खड़े होकर या बैठकर चर्चाएं करते हैं।एक माहौल बनने लगा था आपस में मिलने जुलने का।इक्का दुक्का राजनैतिक घटनाक्रम को यदि छोड़ दें तो कोई बड़ी वारदात नही घटित हुई।यह संकेत नीचे से लेकर बड़े लोगो को आश्वस्त कर रहा है कि उत्तर प्रदेश में विकास के मॉडल खड़े किए जा सकते हैं।बड़े बड़े उद्योगपति उत्तर प्रदेश की सामाजिक स्थिति पर अपनी पैनी नजर गड़ाए हुए भविष्य की योजना पर मंथन चालू किए हैं।उत्तर प्रदेश में इसकी आवश्यकता भी अधिक है क्योंकि यह एक राज्य नही अपितु भारत का प्रतिनिधित्व करता एक राष्ट्र है।यह बात दावे के साथ कही जा सकती है कि उत्तर प्रदेश की शैक्षिक स्थिति किसी अन्य राज्यों की तुलना में कमजोर नहीं है।पहले समय में उत्तर और दक्षिण भारत को लेकर थोड़ा बहुत भाषा के स्तर पर अंतर महसूस होता था किंतु आज के समय में वह अंतर भी मिट चुका है और उत्तर प्रदेश की उच्च शिक्षा अन्य राज्यों के मुकाबले कहीं अधिक अच्छी हो चुकी है।इस कारण देश के अन्य भागों से विद्यार्थी यहां शिक्षा ग्रहण करने के लिए अधिक संख्या में आ रहे हैं।जाहिर सी बात है जहां शिक्षा अधिक होगी बेरोजगारी भी वहीं होगी।अतः उत्तर प्रदेश में बेरोजगारी जोरों पर है।
कुछ वर्ष पूर्व तक रोजगार की कमी और शिक्षा की अधिकता के कारण एक रोजगार लोगों को दिख रहा था वह था राजनीति।घर घर नेता पैदा हो गए और उत्तर प्रदेश की राजनीति को जाति और गोत्र के चौराहे पर खड़ा कर दिए।परिणाम क्या हुआ अनेकों पार्टियों का अभ्युदय हो गया और वे पार्टियां एक दूसरे को गाली,अपशब्द और ऊंच नीच के चौखट पर लाकर पटक दीं।परिणाम समाज विखंडित होने लगा।लोग गोत्र और जाति के स्तर पर आकर एक दूसरे को देख लेने की धमकी देने लगे और समाज में ऐसे ऐसे नारे लगने लगे जैसे हम जन्म से ही एक दूसरे के दुश्मन हों।इसके लिए वे भी पार्टियां कम जिम्मेदार नहीं हैं जो सत्ता में रहते हुए इन शोलों को हवा देते रहे।उत्तर प्रदेश की सामाजिक समरसता छिन्न भिन्न हो गई।सार्वजनिक स्थलों पर एक जाति के लोग दूसरी जाति के लोगों को गाली देना, अभद्र शब्दो का प्रयोग यहां तक कि मारपीट की नौबत तक आ जाती थी।बुद्धिमान लोग ऐसे जगहों पर प्रायः मौन रहना ही ठीक समझते थे।इस तरह उत्तर प्रदेश लगभग तीस वर्षों तक अंतर्कलह का सामना करता रहा और विकास के दौड़ में बहुत पीछे छूट गया।उत्तर प्रदेश में अस्थिर और अदूरदर्शी सरकारों का आना जाना लगा रहा।शैक्षिक स्थिति उच्च होते हुए भी लोकतंत्र का ऐसा तकाजा था कि गणित अपना काम कर रही थी।शिक्षा अपना चमत्कार नही दिखा पाई और लोकतंत्र में लोगों की गिनती और उनका सिर ही काम आता रहा और जाति गोत्र के गणित से सरकारें बनती रहीं जिसका नाम दिया गया सोशल इंजीनियरिंग।इस इंजीनियरिंग ने समाज का बेड़ा गर्क कर दिया।चतुर्दिक अशांति और पिछड़ापन का माहौल बनता रहा।नतीजा यह हुआ कि समाज में अशांति और बेरोजगारी बढ़ती चली गई।
लंबे अंतराल के बाद इस अशांति और बेचैनी ने ऐसी सरकारों को दरकिनार कर दिया।यह स्थिति तब निर्मित हुई जब जनता जाति पाती और गोत्र के राजनीति से थक गई।उसे महसूस हुआ कि समाज की यह विकृति समूचे प्रदेश और राज्य की जनता को पीछे ले जा रही है।इससे समाज का भला नहीं होगा।बदमाश और माफियाओं का दबदबा है।इससे निजात पाना जरूरी है। जनता ने सरकार बदल दिया और सरकार भी ऐसी आई जिसका नेतृत्व एक योगी कर रहा है।उसे अनेक कठिनाइयों का सामना अंदर और बाहर से करना पड़ रहा है पर वह व्यक्ति समाज में अमन चैन कायम करने के लिए दिन रात तत्पर है।उस व्यक्ति के मुंह से कभी किसी को चाहें वह जिस भी जाति धर्म का हो अपशब्द नही निकलता। हां,सत्ता चलाने के लिए कड़े फैसले की जरूरत होती है।वह कड़े फैसले में भी पीछे नहीं है। उसके शासन में बदमाश,लफंगे,लुच्चे,माफिया,अपराधी,सभी नतमस्तक हैं।कुछ घटनाएं हो जाती हैं जो इतने बड़े राज्य में स्वाभाविक हैं।
आज लोग सार्वजनिक स्थानों पर खुलकर बात करते हैं।सभी वर्ग के लोग अपने अपने विकास और उन्नति का रास्ता तलाशने में उद्यत हैं।किसी को किसी से उस तरह का खौफ नहीं है जो पहले हुआ करता था।समाज समरसता की तरफ बढ़ रहा था और लोग अमन चैन महसूस कर रहे थे किन्तु भारत वर्ष का लोकतंत्र सिर्फ पांच वर्ष का ही अवसर देता है।अपने को सिद्ध करना पड़ता है कि हम एक अच्छी व्यवस्था दे सकते हैं।महंगाई और बेरोजगारी एक भयानक मुद्दा बन चुका है।किसानों की आमदनी महंगाई बढ़ाकर दोगुनी नही की जा सकती।किसानों की पैदावार को अच्छा और उचित दाम समय पर मिल जाय इससे आमदनी बढ़ेगी न की सामानों को महंगा कर व्यवसायियों को लाभ पहुंचाने की नीति पर कार्य हो।पूरे देश में महंगाई बढ़ाकर किसानों की आय को दोगुना दिखाने का प्रयास हो रहा है।सिलेंडर के दाम आसमान छू रहे हैं।दूध दही घी तेल गेहूं चावल सब कुछ इतना महंगा हो चुका है कि आम आदमी का जिंदा रहना दूभर है।ऐसे में राजनीतिक जीवों को कैसे चैन मिलेगा।लोकतंत्र का हक और दुहाई देने वालों ने नए रास्ते तलाशने शुरू कर दिए हैं।किसी तरह एक छतरी के नीचे आए लोगों को बरसात बंद हो जाने की चेतावनी दी जाने लगी है और कहा जाने लगा है निकलो छतरी से बाहर कि बरसात खतम हो गई।बिहार के राजनीतिज्ञों ने बिगुल फूंक दिया है।अब सौ साल बाद पुनः जाति की गणना करने का फरमान जारी हुआ है।किसी तरह से हुए समरस समाज में पुनः जाति और गोत्र का मंत्रोच्चार किया जा रहा है।इसकी आंच पूरे देश में जाएगी और एकबार पुनः देश को इसका दंश झेलना पड़ेगा।सबसे अधिक नुकसान उत्तर प्रदेश को ही उठाना पड़ेगा क्योंकि जिस विकास के पहिए को किसी तरह पटरी पर लाने की कोशिश हो रही थी कहीं ऐसा न हो कि समय पर उसका चक्का फंस जाय और लोग तमाशा देखते रह जाय।
भारतीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी समस्या यही है कि जो लोग भारत के निवासी बन चुके हैं या पहले से ही हैं वो चाहें पढ़े लिखे हों या अनपढ़ हों,परिपक्व हों या बौद्धिक रूप से अपरिपक्व हों,चलते फिरते हों या बिस्तर पर लेटे हों सभी को वोट देने का अधिकार है।जिस जाति की जनसंख्या अधिक है उसके प्रतिनिधि भी अधिक होंगे।क्या सरकार के गठन के लिए ऐसी शर्त उचित है यह विचारणीय है।क्या प्रजातंत्र यही है।सरकार जब तक अच्छे और पढ़े लिखे लोगों द्वारा नही बनेगी उस देश की उन्नति कैसे संभव है।जो देश के विकास की नीति बनाते हैं यदि वे संख्या बल से सरकार में आ जाते हैं वे क्या नीति बनाएंगे।इस पर चिंतन जरूरी है।यह ध्यातव्य है कि इसी को समय समय पर भांपकर राजनीतिक दल अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं।जनता को सतर्क रहने की जरूरत है।उसे तय करना होगा कि राज्य में विकास और अमन चैन चाहिए या अशांति के रास्ते।अशांति और विभाजन की राजनीति आगे बढ़ाई जा चुकी है।देखना है जनता जनार्दन किस रास्ते का चयन करती है।

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