May 25, 2025

सुविधाओं के अभाव में पलायन करते ग्रामीण – प्रो नंदलाल मिश्र

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महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय के प्राध्यापक प्रो (डॉ) नंदलाल मिश्रा के अनुसार ग्रामीणों का पलायन सतत जारी है।गांव विरान होते जा रहे हैं।लोगों के घरों में ताले लटकते जा रहे हैं।कृषि की जो उपज होनी चाहिए वह आनुपातिक रूप से घट रही है कारण कि जिसके पास कृषि योग्य भूमि है वह गांव पर रहता ही नही है।या तो वह कहीं रोजगार में है या किसी व्यवसाय के चलते गांव से बाहर रहता है।इतना ही नहीं आजकल एक नई परंपरा गांवों में देखने को मिल रही है कि गांव के लोग अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए शहरों या छोटे कस्बे में रूम किराए पर लेकर रहना शुरू कर दिए हैं।इस तरह गांव से लोग धीरे धीरे शहरों का रुख करते जा रहे हैं।जिस कृषि उत्पाद की उम्मीद कास्तकारों से होती है वह पूरी नही हो पा रही है।खेत बटाई पर या पैसे पर दूसरो को दे दिया जाता है जो पूरे मनोयोग से खेती नही करते।गांव में यदि आप मजदूर खोजना चाहें तो वह भी नही मिल रहे।वे भी शहरों या कस्बों का रुख कर लेते हैं।गांव में जो कारीगर हुआ करते थे जैसे नाउ, बढ़ाई,लोहार,कुम्हार,धोबी, पनहेड़ी सभी गांव छोड़कर कस्बों में धंधा शुरू कर दिए हैं। अब पहले वाली बात भी नही रही।लोग एक दूसरे के सुख दुख में सरीक हुआ करते थे।एक दूसरे का खयाल रखते थे।अब कोई किसी को पूछने वाला नहीं।इक्के दुक्के बूढ़े लोग कुछ परिवारों में बचे हैं जो घर की रखवाली कर रहे हैं।धीरे धीरे यह दृश्य भी बदल जाएगा और गांव उजड़ जायेंगे।गांव की जगह कस्बे ले लेंगे।एक नया भारत बन जायेगा जो भारत और हिंदुस्तान के नामसे कम जाना जाएगा इंडिया के नाम से पुकारा जायेगा।सांस्कृतिक अपकर्ष तो शुरू ही हो चुका है।हमारे रीति रिवाज सभी कुछ लुप्त हो जायेंगे। आखिरकार यह स्थिति क्यों उत्पन्न हो रही है।यह एक अहम सवाल है।क्या गांव की समरसता खतम हो चुकी या गांवों में संसाधनों की कमी हो गई है।अब कृषि और पशुपालन आत्मनिर्भरता को मुंह चिढ़ा रहे हैं या लोग श्रम करने से कतराने लगे हैं।क्या तकनीकी प्रगति ने लोगो को आलसी बना दिया या हमारे पास श्रम का विकल्प मिल चुका है।क्या है पलायन का राज?ये सभी बातें कहीं न कही मिलकर ग्रामीणों को विकल्प खोजने पर मजबूर कर रही हैं।सबसे बड़ा कारण आर्थिक श्रोतों की कमी का होना है।क्योंकि आज के जमाने में बिना अर्थ के कोई काम नही होने वाला।पहले के जमाने में लोग अन्न या अन्य वस्तुओं के आदान प्रदान से अपना काम निकाल लेते थे पर अब वह संभव नहीं दिखता।शिक्षा,स्वास्थ्य,रोजगार एक चुनौती बन कर उभर रहा है। गांवों में शिक्षा के लिए अच्छे संस्थानों का सर्वथा अकाल है।शिक्षको में न तो वह त्याग और मूल्य रहा न विद्यालय चलाने वालों में परमार्थ का भाव रहा।शिक्षा को व्यवसाय बना दिया गया।विद्यालय चलाने वाले धन कमाना चाह रहे हैं।उन्हे अच्छी शिक्षा देने से कोई मतलब नहीं रहा।राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जिस शिक्षा की जरूरत है वह गांवों में उपलब्ध नहीं है।थक हारकर गार्जियन कस्बों का या शहरों का रुख कर रहे हैं।यह एक कारण है गांव से पलायन का।
   दूसरा महत्वपूर्ण कारण गांवों में स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव।इस पर सरकारों का ध्यान नहीं जा रहा है।जो भी स्वास्थ्य सुविधाएं दी जा रही हैं वह शहरों में ही दी जा रही हैं जहां पहले से ही अच्छी सुविधाएं मौजूद हैं।गांव में अचानक जब किसी की तबियत खराब होती है तो वहां झोला छाप के सहारे ही रह जाते हैं।प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भगवान भरोसे हैं।जहां न अच्छे डॉक्टर हैं न दवाइयां हैं न कोई सुविधा है।गांव के लोग जो बाहर सर्विस करते हैं रिटायर होने पर वे गांव में रहना इसलिए पसंद नही करते क्योंकि नाना प्रकार की बीमारियों से वे ग्रसित रहते हैं और गांव पर उन्हे वह सुविधा मिलती नही। वे चाहकर भी गांव में रह नही पाते और रिटायर होने के बाद शहर में ही रहना पसंद करते हैं ताकि समय से उन्हे इलाज मिल सके।बुजुर्ग लोगों और महिलाओं की भी यही समस्या है।या तो वे अपने बच्चो के पास शहरों में रहने को मजबूर हैं या महिलाओं के प्रसव इत्यादि के लिए शहर को ही प्राथमिकता देते हैं।स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव पलायन के प्रमुख कारणों में से एक है।
तीसरी समस्या रोजगार की कमी का होना है।गांवों में जो रोजगार है वह सभी के लिए पर्याप्त नहीं है। क्योंकि जब गांव में लोग ही नही हैं तो रोजगार का सृजन कैसे संभव होगा।कृषि एक मात्र साधन है जो सभी के लिए पर्याप्त नहीं है।जो कारीगर हैं उन्हे भी गांव में रोजगार नही मिल पाता।अंततः वह शहर का रुख कर लेते हैं। न तो अब पशुधन वैसे रह गए न तो कृषि वैसी रह गई फिर रोजगार कहां से मिले।लड़कियों में शिक्षा के प्रचलन से महिलाएं अब काफी मात्रा में शिक्षित हो रही हैं तथा वे भी रोजगार करना चाहती हैं।इसलिए जो परिवार की धुरी थीं उनके मनोवृति में अजीबोगरीब परिवर्तन आ चुका है।अब वे चाहने लगी हैं कि परिवार सहेजने की कीमत पर वे अपनी नौकरी के अवसर को हाथ से नही जाने देंगी।अतः उनके मनोदशा के बदल जाने से गांवों में परिवार छिन्न भिन्न हो चुके हैं।जिनकी नौकरी है वे शहरों का रुख तो करती ही करती हैं जिनके पास नौकरी नहीं है और पतिदेव कहीं सर्विस करते हैं तो वे उनके पीछे लग लेती हैं।
  हालाकि सरकारों का यह प्रयास है कि गांव सड़को से जुड़ जाय।आवागमन के साधन बढ़ जाय।स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार हो पर इतनी पेचीदगियां हैं कि उनके चाहने और न चाहने का कोई अर्थ नहीं है।आजकल लोगो में इतना इगो बढ़ चुका है लोग इतने धूर्त हो चुके है मूल्य इतने गिर गए है,बेशर्मी इतनी बढ़ चुकी है कि किसी काम और योजना को अच्छे तरह से क्रियान्वित होने देना नही चाहते।ऐसे में सरकारों को सोचना होगा कि गांव के पलायन को रोका जाय या इसे कोई और रूप दिया जाय।यदि कोई और रूप देने की योजना हो तो अब शहरों के साथ साथ कस्बों की संख्या में इजाफा हो रहा है।गांव जब सड़क से जुड़ रहे हैं तो दो चार गांवों के बीच में चौराहे की स्थिति निर्मित होती है और चौराहे पर दुकानें बनती जाती हैं।देखते देखते वह मार्केट का रूप लेता जाता है और बहुत से लोगों को वहां रोजगार और व्यवसाय की संभावना दिखने लगती है।गांव के लोग गांव से निकलकर सड़क पर मकान बनाते चले जा रहे है।
फिर भी स्वास्थ्य और शिक्षा की समस्या ज्यों की त्यों खड़ी है।इसका निदान निकट भविष्य में दिखाई नहीं देता।और यदि ये यथावत बने रहे तो गांव विरान हो जायेंगे।गांवों के विरान होने से भारतीय सभ्यता और संस्कृति की कड़ियां ढीली हो जाएंगी और जिस हिंदुस्तान का हम स्वप्न देख रहे है वह हमारी आंखों से ओझल हो जायेंगे।जो कुछ बचा है वह इन्ही गांवों से बचा है चाहें वे त्योहार हों चाहे वो संस्कार हों चाहें वह धर्म हो या मर्यादाएं हों।
  इधर ध्यान देना जरूरी है।स्वास्थ्य सेवाएं तभी अच्छी होंगी जब हमारे यहां मेडिकल शिक्षा में परिवर्तन हो।मेडिकल शिक्षा को आसान बनाना होगा ताकि अधिक से अधिक डाक्टर वैद्य उपलब्ध हो सकें।इसकी प्राथमिक जरूरतें हैं।शिक्षा के उन्नयन के लिए कठोर नियम बनाने होंगे।गांवों में स्किल शिक्षा पर विशेष बल देना होगा।परंपरागत शिक्षा रोजगार देने में सक्षम नहीं है क्योंकि रोजगार के रूप बदल गए,बाजार के तौर तरीके बदल गए।बाजार रोजगार के केंद्र बनते जा रहे हैं।इसलिए शिक्षा पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है।

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