आज है,मित्रता दिवस
1 min readबचपन से बुढ़ापे तक साथ देने वाला एक ऐसा जिस रिश्ता का लगाओ न खून से न रिश्तेदारों से होता है, मगर होता बेहद अनमोल.बचपन के लडख़ड़ाते उम्र में ही पनप जाता है ये रिश्ता और जब आप स्कुल में अपना पहला कदम डालते है तो डालते ही इसकी शाखाएं विकसित हो जाती है.
बचपन में शुरू हुआ ये रिश्ता जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है वैसे-वैसे इसमें गाढ़ापन आता रहता है,यौवन के जोश मारती उम्र हो या बुढ़ापे का वो अधेड़ उम्र हर वक़्त ये साथ खड़ा रहता है.इस रिश्ते महत्ता इस बात से समझी जा सकती है की दुनिया का हर एक रिश्ता इस रिश्ते का गुलाम होता है. बचपन में हमारे शिक्षक मित्र बन कर साथ खड़े रहते है,तो यौवन अवस्था में हमारे माँ-बाप मित्रतापूर्ण संबंद स्थापित करना शुरू कर देते है.बड़े भाई-बहन भी वक़्त के साथ अपने रिश्ते को फ्रेंड के रूप में बदल लेते है और अपने बीच की दूरियों को कम करना चाहते है.
मित्रता की बात की जाये और श्री कृष्ण और सुदामा की बात न हो तो मित्रता के पाक रिश्ते को समझा ही नहीं जा सकता.श्री कृष्ण-सुदामा की मित्रता बहुत प्रचलित हैं.सुदामा गरीब ब्राह्मण थे. अपने बच्चों का पेट भर सके उतने भी सुदामा के पास पैसे नहीं थे. सुदामा की पत्नी ने कहा, “हम भले ही भूखे रहें, लेकिन बच्चों का पेट तो भरना चाहिए न ?” इतना बोलते-बोलते उसकी आँखों में आँसू आ गए. सुदामा को बहुत दुःख हुआ. उन्होंने कहा, “क्या कर सकते हैं ? किसी के पास माँगने थोड़े ही जा सकते है.” पत्नी ने सुदामा से कहा, “आप कई बार श्री कृष्ण की बात करते हो. आपकी उनके साथ बहुत मित्रता है ऐसा कहते हो, वे तो द्वारका के राजा हैं, वहाँ क्यों नहीं जाते ? जाइए न ! वहाँ कुछ भी माँगना नहीं पड़ेगा.”
सुदामा को पत्नी की बात सही लगी. सुदामा ने द्वारका जाने का तय किया. पत्नी से कहा, “ठीक है, मैं कृष्ण के पास जाऊँगा. लेकिन उसके कृष्ण के लिए क्या लेकर जाऊँ?”सुदामा की पत्नी पड़ोस में से पोहे ले आई,उसे फटे हुए कपडे में बांधकर उसकी पोटली बनाई. सुदामा उस पोटली को लेकर द्वारका जाने के लिए निकल पड़े.
द्वारका देखकर सुदामा तो दंग रह गए.पूरी नगरी सोने की थी.लोग बहुत सुखी थे.सुदामा पूछते-पूछते कृष्ण के महल तक पहुँचे. दरवान ने साधू जैसे लगनेवाले सुदामा से पूछा, ” क्या काम है ?”
सुदामा ने जवाब दिया, “मुझे कृष्ण से मिलना है, वह मेरा मित्र है. अंदर जाकर कहिए कि सुदामा आपसे मिलने आया है.” दरवान को सुदामा के वस्त्र देखकर हँसी आई. उसने जाकर कृष्ण को बताया. सुदामा का नाम सुनते ही कृष्ण खड़े हो गए ! और सुदामा से मिलने दौड़े पड़े. सभी आश्चर्य से देख रहे थे. कहाँ राजा और कहाँ ये साधू ?
कृष्ण सुदामा को महल में ले गए. सांदीपनी ऋषि के गुरुकुल के दिनों की यादें ताज़ा की. सुदामा कृष्ण की समृद्धि देखकर शर्मा गए. सुदामा पोहे की पोटली छुपाने लगे, लेकिन कृष्ण ने खिंच ली. कृष्ण ने उसमें से पोहे निकाले और खाते हुए बोले, “ऐसा अमृत जैसा स्वाद मुझे और किसी में नहीं मिला।”
बाद में दोनों खाना खाने बैठे. सोने की थाली में अच्छा भोजन परोसा गया. सुदामा का दिल भर आया. उन्हें याद आया कि घर पर बच्चों को पूरा पेट भर खाना भी नहीं मिलता है. सुदामा वहाँ दो दिन रहे. वे कृष्ण के पास कुछ माँग नहीं सके. तीसरे दिन वापस घर जाने के लिए निकले. कृष्ण सुदामा के गले लगे और थोड़ी दूर तक छोड़ने गए.
घर जाते हुए सुदामा को विचार आया, “घर पर पत्नी पूछेगी कि क्या लाए ? तो क्या जवाब दूँगा ?”
सुदामा घर पहुँचे. वहाँ उन्हें अपनी झोपड़ी नज़र ही नहीं आई. उतने में ही एक सुंदर घर में से उनकी पत्नी बाहर आई. उसने सुंदर कपड़े पहने थे. पत्नी ने सुदामा से कहा, “देखा कृष्ण का प्रताप ! हमारी गरीबी चली गई कृष्ण ने हमारे सारे दुःख दूर कर दिए।” सुदामा को कृष्ण का प्रेम याद आया. उनकी आँखों में खूशी के आँसू आ गए.मित्रता सिर्फ मित्रता होती हैं उसे गरीबी-अमीरी के जकड़न में जकर नहीं सकते.
बहरहाल आज अगस्त का पहला रविवार हैं, जिसे पूरी दुनिया में इंटरनेशनल फ्रेंडशिप डे के रूप में मनाया जाता हैं.इसकी शुरुआत जहा एक ओर बेहद दुखी घटना के साथ जुड़ी हैं वही दूसरी ओर दो दोस्ती के दोस्ती को अमर कर गयी.बात सन:1935 की हैं,अगस्त के पहले रविवार को अमेरिका सरकार ने एक व्यक्ति को मार दिया था,उस व्यक्ति के याद में उसके एक मित्र ने आत्महत्या कर ली.उसी दी से इस मित्रता दिवस की नीव पर गयी.
इस दिन को यादगार बनाने के लिए दोस्त एक दूसरे को फ्रेंडशिप बेंड बांधते हैं,गिफ्ट,फ्रेंडशिप कार्ड आदि देते हैं,और जीवन भर अपनी मित्रता कायम रखने की एक दूसरे से वादा करते हैं.
Nice