घर की धड़कन
1 min readउषा भोर लाकर भी, सूरज को आंचल में ढक,
चिड़ियों के कलरव संग, मुंडेर की छानी के घोसले में,
बैठी गौरैया परिवार संग करती चीं चीं….।
टप-टप पिघलती ओस से पहले जागती,
जगाती उषा के पहरे से।
अविरल बहते झरने के सम
बदलते बनते गढ़ते रूप सी।
क्षण – क्षण शक्ति, छिन – छिन भक्ति
सपने बुनती, जीवन गढ़ती
घर – आंगन, खेत – खलियान
कुंआ नदी चहुंदिसि,
श्रम करती नित, सर्जन करती
बचा कुचा खा, कभी तो केवल पानी पीकर
सोती टूटी खटिया पर।
कौन पूछता तुमने खाया
थकी थकाई को भी थकाया,
टूटती कया, कराहती माया
मेरे घर की धड़कन, मेरे घर की धड़कन…।।
डॉo रघुवंश भूषण पाण्डेय
” भूषण जी”
चित्रकूट