April 27, 2024

इसी राह तो स्त्री घर लौटेगी

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विवेक

दिन हैं बहुत घाम के
सुबह हुई है शहर में
सड़क किनारे के पेड़ से
कच्चा आम एक टूटकर गिरा है
घरों में काम करने जाती
उस स्त्री ने दौड़कर उठा
पल्लू में गठिया लिया
सहसा … घर पर छूटे तीन बच्चों की
लालसा की डोर पर
स्त्री की आत्मा
गीला कपड़ा हो
तरबतर… फैल गई
झरने लगा पानी
फिर वही आत्मा चोर हो
बस थोड़ा सा नमक पुदीना गुड़
और प्याज की गांठ जुटाने
कहाँ कहाँ भटकी

अब … दोपहर हो रही है
एक घनेरी छॉंह वाले पेड़ के नीचे
सिल लोढ़ा लिए… पोटली में रोटी रखे
बाशो … उकड़ू बैठा है
इसी राह तो स्त्री घर लौटेगी

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