इसी राह तो स्त्री घर लौटेगी
1 min readविवेक
दिन हैं बहुत घाम के
सुबह हुई है शहर में
सड़क किनारे के पेड़ से
कच्चा आम एक टूटकर गिरा है
घरों में काम करने जाती
उस स्त्री ने दौड़कर उठा
पल्लू में गठिया लिया
सहसा … घर पर छूटे तीन बच्चों की
लालसा की डोर पर
स्त्री की आत्मा
गीला कपड़ा हो
तरबतर… फैल गई
झरने लगा पानी
फिर वही आत्मा चोर हो
बस थोड़ा सा नमक पुदीना गुड़
और प्याज की गांठ जुटाने
कहाँ कहाँ भटकी
अब … दोपहर हो रही है
एक घनेरी छॉंह वाले पेड़ के नीचे
सिल लोढ़ा लिए… पोटली में रोटी रखे
बाशो … उकड़ू बैठा है
इसी राह तो स्त्री घर लौटेगी