ये वो दर है जहां, मिट जाती है धर्मो की बंदिशें
1 min read आपने इस खानकाह से शांति-सदभाव का सन्देश दिया और अपनी पूरी जिंदगी इंसानियत के सेवा में लगा दिया.
आप अपने शिष्यों को मोहब्बत,प्यार,प्रेम की सीख़ दिया करते, दूसरों कि निंदा करने, घृणा करने, चुगली करने से मना फरमाते थे.
आपने शांति-सदभाव को फ़ैलाने के लिए कई संस्थाओं की नींव रखी, जिनका काम मनुष्य के अंदर अध्यात्म को जिन्दा करना और मरे दिलों के अंदर मालिक का प्रेम जगाना हैं.
कायम साबरी: बिहार की धरती सूफी-संतो की धरती कहलाती रही है. बिहार की राजधानी पटना से लेकर तमाम छोटे-बड़े शहरों को घूम ले, ऐसा कोई जिला नहीं जहाँ किसी सूफी-संतों का निवास स्थान न हो.
आज मै मिथलांचल के उस पावन धरती का जिक्र कर रहा हूँ, जहां शाने साबिर हजरत अलाउद्दीन अली अहमद साबिर पाक रह. गुजरे है. आप की पैदाइश दरभंगा जिले के आशापुर नामक गांव में हुई. एक अंदाजे के मुताबिक आप का जन्म १९११-१९१५ ई. के आस-पास हुआ. आपके वालिद हजरत मकबूल बिहारी रह.(चिन्गी शाह) काफी पाए के वली गुजरे है. दरभंगा और आसपास के इलाको में इनकी धूम आज भी गूजती हैं.
एक बार दया के सागर ने मक़बूल बिहारी रह. को गंजमुरादाबाद जाने का हुक्म दिया, जो उत्तरप्रदेश में स्थित हैं. आप ने आशापुर से गंजमुरादाबाद का सफर पैदल ही पूरा किया और हजरत फज्ले रह्मा रह. से मिलने का सर्फ़ हासिल किया. हुकुम के मुताबिक़ आप हजूर के मुरीद भी बन गए, जैसा की सूफियों को एक तरीका हैं. कुछ दिन रुकने के बाद आप ने हजूर से अपने घर को चिरागे रोशन के तौर पर शाने साबिर की मांग की. शाने साबिर बहुत पाए के वली गुजरे हैं जिनका आस्ताना कलियर शरीफ में हैं. हजरत फज्ले रह्मा ने आपकी मांगी हुई दुआ के लिए दया के सागर के बारगाह में हाथ उठा देते हैं, जिसे खुदा कि मर्जी से कबूलियत भी मिल जाती हैं. आप सरकार साबिर पाक आशापुरी के पैदा होने के पहले ही एलान करवा देते हैं की मेरे घर जो बच्चा पैदा होने वाला हैं वो शाने साबिर हैं.
सरकार साबिर पाक आशापुरी बचपन से ही बड़े जलाली थे. एक मर्तबा का वाक़्या हैं की आप आराम फरमा रहे थे, कुछ आवाज हुई आप गुस्से की हालत में हुजरे से बाहर आते हैं,आप की जलाली आँखे सामने एक गुल्लर के पेड़ पर पड़ती हैं और गुल्लर का पेड़ जल जाता हैं. हजूर के ऐसे कई वाक़्या हैं जिसे यहाँ पर लिखना मुमकिन नहीं हैं.
आप के वालिद ने एक ख़ानक़ाह तामीर की जिसका नाम ख़ानक़ाह-ए-अहमदी फज्ले रहमानी रखा गया, जिसको सरकार साबिर पाक आशापुरी रह. ने देश-दुनिया तक इस मरकज की पहुंच को बुलंद किया. आपने इस खानकाह से शांति-सदभाव का सन्देश दिया और अपनी पूरी जिंदगी इंसानियत के सेवा में लगा दिया. आप अपने शिष्यों को मोहब्बत,प्यार,प्रेम की सीख़ दिया करते, दूसरों कि निंदा करने, घृणा करने, चुगली करने से मना फरमाते थे. आपने शांति-सदभाव को फ़ैलाने के लिए कई संस्थाओं की नींव रखी, जिनका काम मनुष्य के अंदर अध्यात्म को जिन्दा करना और मरे दिलों के अंदर मालिक का प्रेम जगाना हैं. आप के पर्दा करने के इतने सालो बाद भी इन संस्थाओं से ये काम बदस्तूर जारी हैं. आप के शिष्य सभी सम्प्रदाय के मानने वाले हैं. मैंने खुद अपनी आँखों से गेरुआ वस्त्र पहने पंडितो को,दाढ़ी रखे मौलवियों को, पगड़ी बांधे पंजाबियों को शिष्य होते देखा हैं.
आप के बड़े प्यारे शिष्य जिन्हे सरकार साबिर पाक आशापुरी रह.ने अपनी आँखों का नूर कह कर नवाजा जिनका नाम हजरत मो.हबीबुर्र रहमान साबरी साहब हैं, जिनको मुरीद करने के बाद सरकार साबिर पाक ने आप का नाम अब्दुल रहमान साबरी रख दिया. आप बताते हैं की आप अपनी जवानी में मुजफ्फरपुर में रहा करते थे, अभी आप फुलवारीशरीफ पटना में रहते हैं. आप रोज शाम के वक़्त हजरत कंबल शाह रह.के मजार शरीफ पर जाया करते और दुआ तल्ब करते की मुझे एक कामिल पीर का मुरीद बनवा दीजिये या खुद मुरीद कर लीजिये. कई महीनों के बाद आप की दुआ कबूल होती हैं और आप ख्वाब में सरकार साबिर पाक आशापुरी को देखते हैं और ख्वाब में ही हजूर के हाथो पर दस्ते बैत होते हैं. सुबह होने पर आप आशापुर के बारे में पता करते हैं और वहा चले जाते हैं. जब नजर सरकार पर परती हैं तो ख्वाब में देखा गया हुबहु चेहरा नजर आता हैं, अभी आप कुछ बोलते उससे पहले सरकार बोलते हैं मै तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था, उसके बाद आप को चारों सिलसिले में बैत करते हैं. ये निशानी होती हैं एक कामिल पीर की और एक सच्चे आशिक़ की. सरकार साबिर पाक आशापुरी ने अपने पीरों मुर्शिद से मिले खिर्के को एक वक़्त अब्दुल रहमान साबरी को दे कर अपनी खिलाफत से उन्हें नवाजा.
जैसा की मैं बता चूका हूँ की आप के शिष्यों का तांता सिर्फ देश में ही नहीं विदेशो में भी हैं.एक विदेशी सैलानी जब सरकार साबिर पाक के यहाँ आता हैं और आप से मुखातिब होता हैं तो वापस जाकर अपने देश की अख़बार में लिखता हैं की ईश्वर कही हैं तो वही हैं.अल्लाह पाक फरमाता हैं जहां मेरी चर्चा होती हैं वहा मेँ मौजूद रहता हु.
२ रज्जब १४२० हिजरी (२ अक्टूबर १९९९) को आप ने पर्दा फ़रमाया. आप का मजार शरीफ खानकाह के पश्चिम मेँ हैं, जहां पर आप के वालिद मोहतरम का भी मजार शरीफ हैं. आप के पर्दा करने के लगभग १८ साल बाद भी खानकाह का निजाम चालू हैं. दिन-प्रतिदिन मंगतो का तांता बढ़ता ही जा रहा हैं. आज खानकाह के निजाम का देख रेख खानकाही कमिटी करती हैं, जिसके मुख्य पदाधिकारी- मो.फज्ले साबरी, मो.हबीबूर्र रहमान साबरी(अब्दुल रहमान साबरी), मो.वासे अहमद साबरी, मुमताज खान,जिलानी खान आदि हैं.
Mashallah