ये कैसी आजादी है
1 min readसंतोष सिंह : लोकतंत्र में जब सारा तंत्र एक साथ खड़े हो जाये तो इंसाफ का किस तरीके से गला घोटा जा सकता है इस पर आपको अगर अध्ययन करना हो तो मुजफ्फरपुर जाईेए ,,,और देखिए किस तरीके से बालिका सुधार गृह में 29 लड़कियों से रेप कि घटना घटी और उस रेपिस्ट पर कोई कारवाई ना हो इसके लिए सरकार ,न्यायपालिका
,ब्यूरोक्रेसी ,मीडिया और एनजीओं किस तरीके से रेपिस्ट के साथ खड़ा है , और इसका असर इस कांड के मास्टर माइंड के परिवार के हौसले से समझा भी जा सकता है।।
मुझे लगता है कि हमारे संविधान के निर्माता भी नयी सोचे होगे कि आजादी के 70 वर्ष होते होते ये स्थिति हो जायेगी कि लोकतंत्र का स्तम्भ इस तरीके से एक दूसरे के कृत्य में सहयोगी बन जायेगा ।।
आज लोकसभा से लेकर विधानसभा तक इस मामले को लेकर हंगामा हुआ लेकिन सरकार ये मानने को तैयार नहीं है कि हमारी पुलिस औऱ ब्यूरोक्रेसी इस मामले को दबाने में लगी है ।।
चलिए देर से सही अब आवाज उठनी तो शुरु हो गयी आज गांधी मैंदान में कई महिलाये मामले कि सीबीआई जांच को लेकर 48 घंटे के उपवास पर बैंठ गयी है लेकिन इस मामले में पीड़ित को न्याय मिलेगा अभी भी कहना बहुत मुश्किल है ।।।
ये एक ऐसा मामला है जिसके सहारे आप इस देश का संवैधानिक ढांचा कैसे कैेस एक एक करके गिर रहा है इसका आप एहसास कर सकते हैं और कह सकते हैं कि सच में सब कुछ भगवान भरोसे है ।।
जिस बालिका गृह में 42 में से 29 लड़कियों के साथ रेप कि घटना घटी है उस बालिका गृह में बालिका सुरक्षित है इसके लिए एडीजी स्तर के न्याययिक अधिकारी को माह में एक बार कम से कम भिजिट करना है ,,बालिका गृह के भिजिटर रजिस्ट्री में दर्ज है कि न्याययिक अधिकारी भी आते थे, समाज कल्याण विभाग के अधिकारी को सप्ताह में एक दिन आना अनिनार्य हैं ।।
इसके अलावा समाज कल्याण विभाग औऱ एनजीओ का एक पूरा सिस्टम बना हुआ है जिनको इन बालिकाओं का ख्याल रखने कि जिम्मेवारी होती है जिसमें समाज कल्याण विभाग पांच अधिकारी के साथ साथ वकालत और समाजिक कार्य से जुड़े एक दर्जन से अधिक व्यक्ति इसके देखभाल के लिए गठित बोर्ड का सदस्य होता है जो नियमित इन लड़कियों से मिलता है।।
बालिका गृह का संचालक ब्रजेश ठाकुर गिरफ्तार होकर जेल पहुंचता है तीसरे दिन बिमार होने कि बात पर कोर्ट के आदेश पर अस्पताल पहुंच गया एक सप्ताह बाद हंगामा शुरु हुआ कि अस्पताल से ही फोन कर रहा है तो जबरन एक दिन पुलिस उसे फिर जेल भेज दिया ।।
ऐसा पहला केस देखने को मिला है जिसमें पुलिस ब्रजेश ठाकुर से पुछताछ के लिए रिमांड का आवेदन देती है लेकिन कोर्ट रिमांट कि अनुमित नहीं दिया, पुलिस ने जब दोबारा आवेदन दिया तो कोर्ट ने कहा कि जेल में ही पुछताछ करिए बाद में पुलिस ने कहां कि जेल में ब्रजेश ठाकुर पुछताछ में सहयोग नहीं कर रहे हैं,, दो माह होने को है अभी तक पुलिस को रिमांड पर नहीं मिला है ।।
इतना ही नहीं हाईकोर्ट के अधीन राज्य विधिक आयोग होता है जिसके हेड हाईकोर्ट के रिटायर जज होते हैं उनकी तो इस तरह के गृह में बेहतर व्यवस्था है कि नहीं ये भी देखने कि जिम्मेवारी विशेष तौर पर रहती है ।।
जिस दिन ये मामला सामने आया उसी दिन राज्य विधिक आयोग कि टीम बालिका गृह पहुंचा लेकिन रिपोर्ट क्या दिया कहना मुश्किल है ।।
ये कोर्ट का हाल है ,अब मीडिया कि बात कर लिजिए इतनी बड़ी घटना किसी अखबार और मीडिया ने इस खबर को प्रमुखता नहीं दिया जिले में छपता रहा लेकिन कभी स्टेट लेवल पर मुख्य पृष्ट पर खबर नही लगी ।।
वजह एक तो ब्रजेश ठाकुर खुद पत्रकार था औऱ उसका सारा रिश्तेदार किसी ना किसी चैनल से जुड़ा हुआ है ।।
एऩजीओ का भी कुछ ऐसा ही हाल रहा रेप कि इतनी बड़ी घटनाये घटी लेकिन कहीं ना तो कैंडिल मार्च निकला ,ना कही कोई प्रोटेस्ट हुआ, लगा ही नहीं कि कोई घटना भी घटी है,,, सोशल मीडिया का भी हाल कुछ ऐसा ही रहा कहीं कोई खबर नहीं कही कोई पोस्ट नहीं ना कोई ट्यूट सब कुछ समान्य ।
इसलिए ना कि जिस लड़की के साथ रेप हुआ है उसका धर्म पता नहीं है उसकी जाति पता नहीं और रेप करने वाला मुस्लिम नहीं है खामोशी कि वजह तो यही है ना।
अब आईए सरकार कि बात कर ले टिस के जिस रिपोर्ट को लेकर सरकार अपना पीठ थपथपा रही है कि इस मामले को तो मैंने ही उजागर किया है बात सही है लेकिन सवाल ये है कि जब टिस ने समाज कल्याण विभाग के प्रधान सचिव कि माने तो 23 अप्रैल को ही विभाग को रिपोर्ट सौप दिया था ,,,, प्रधान सचिव ने कहा कि विभाग एक माह अध्ययन करने के बाद फैसला लिया कि अब एफआईआर दर्ज करायी जाये ।।
अब आप ही बताये रेप जैसे गम्भीर आरोप मामले में विभाग पुलिस के पास पहुंचने में एक माह का समय लगा दिया इसके मंशा पर शंक किया ही जा सकता कि नहीं।।
वही ब्रजेश ठाकुर के परिवार वाले तो आरोप लगा ही रहे हैं कि पैंसा दे देते तो सारे रिपोर्ट ऐसे ही आया और चला जाता पैंसा नहीं दिये इसलिए मेरे यहां कारवाई हुई है ।।रिपोर्टस आने के एक माह बाद एफआईआर दर्ज होने का उनके पास कोई ठोस आधार नहीं है और इतना ही नहीं समाज कल्याण विभाग जो एफआईएर दर्ज किया वो भी किसी को नामजद नहीं बनाया है और ना हो कोई आरोप चार पक्ति में एफआईआऱ है।।
और इसके लिए प्रधानसचिव से कोई सवाल भी नहीं हो रहा है इतना ही नहीं एफआईआर दर्ज होने से पहले ही बालिका गृह की लड़कियों को मधुबनी,मोकामा और पटना अलग अलग सिफ्ट कर दिया गया इस वजह से इस मामले में पुलिस को कारवाई करने में अभी भी परेशानी हो रही है समाज कल्याण विभाग इसके लिए तर्क ये दे रहा है कि लड़कियों को वहां से नहीं निकाला जाता है तो लड़किया डिपरेसन में जा सकती थी इसलिए सब को अलग अलग बालिका गृह में भेजा गया जबकि कहां ये जा रहा है कि इससे साक्ष्य संकलित करने में पुलिस को खासा परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है ।।
पुलिस कि बात करे इतने संवेदनशील मसले पर पुलिस मुख्यालय का रुख बेहद नकारत्मक है कोई भी सीनियर अधिकारी इस केस में सहयोग नहीं कर रहा है जो भी कुछ कारवाई हुई है उसका क्रेडिंट एसएसपी हरप्रीत कौर को दी जा सकती है ।।
देखिए आगे आगे होता है क्या लेकिन ये समझने कि जरुरत है कि जब सिस्टम ही अपराधियों के साथ खड़ी हो जाये तो ऐसे में आम आदमी को न्याय कैसे मिलेगा इस पर भी सोचने कि जरुरत है।।