जमात-ए-इस्लामी पर लगा प्रतिबंध
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नई दिल्ली: मोदी सरकार ने अलगाववादी समूह जमात-ए-इस्लामी जम्मू-कश्मीर पर राष्ट्र विरोधी और विध्वंसकारी गतिविधियों के लिये गैरकानूनी गतिविधि अधिनियम के तहत प्रतिबंधित कर दिया. जमात-ए-इस्लामी संगठन पर आरोप है कि यह हिज्बुल मुजाहिदीन के आतंकवादियों को कश्मीर घाटी में बड़े स्तर पर फंडिंग करता था. गृह मंत्रालय ने कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी की बैठक के बाद जमाते इस्लामी पर प्रतिबंध लगा दिया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में सुरक्षा पर एक उच्च स्तरीय बैठक के बाद गृह मंत्रालय द्वारा प्रतिबंध को लेकर अधिसूचना जारी की गई.
आपको बताते चले कि घाटी में बीते एक सप्ताह के दौरान करीब 500 जमात-ए-इस्लामी के कार्यकर्ता पकड़े जा चुके हैं. केंद्र द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने के बाद अब गिरफ्तारियों का सिलसिला और तेज होने के साथ ही जमात के संस्थानों पर तालाबंदी भी शुरू हो जाएगी.
जमात-ए-इस्लामी धार्मिक गतिविधियों के नाम पर फंड जमा करता है. उस फंड का इस्तेमाल राष्ट्र विरोधी अलगाववादी गतिविधियों के लिए करता है. जमात-ए-इस्लामी सक्रिय रुप से हिज्बुल मुजाहिदीन के लिए अपने संसाधनों का इस्तेमाल करता है.
जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगाने के 13 बड़े कारण
- जमात-ए-इस्लामी जम्मू कश्मीर में अलगाववादी विचारधारा एवं आतंकवादी मानसिकता के प्रसार के लिए प्रमुख जिम्मेदार संगठन है.
- यह जमात-ए-इस्लामी हिंद से बिल्कुल प्रथक संगठन है, इसका उस संगठन से कोई लेना देना नहीं है. वर्ष 1953 में जमात-ए-इस्लामी ने अपना अलग संविधान भी बना लिया था.
- कश्मीर के सबसे बड़े आतंकवादी संगठन हिज्बुल मुजाहिदीन को जमात-ए-इस्लामी जम्मू कश्मीर ने ही खड़ा किया है. हिज्बुल मुजाहिदीन को इस संगठन ने हर तरह की सहायता की. गृह मंत्रालय के सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक आतंकियों को ट्रेंड करना. उनको फंडिंग देना, उनको शरण देना, लॉजिस्टिक मुहैया कराना आदि काम जमात-ए-इस्लामी संगठन कर रहा था. एक प्रकार से जमात-ए-इस्लामी जम्मू कश्मीर का मिलिटेंट विंग है.
- हिज्बुल मुजाहिदीन को पाकिस्तान का संरक्षण हासिल है. वो पाक द्वारा उपलब्ध कराए गए हथियारों और प्रशिक्षण के बल पर कश्मीर में आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देता है. इस काम के लिए जमात-ए-इस्लामी बहुत हद तक जिम्मेदार है.
- हिज्बुल मुजाहिदीन का मुखिया सैयद सलाहुद्दीन जम्मू कश्मीर राज्य के पाकिस्तान में विलय का समर्थक है. सैयद सलाहुद्दीन अभी पाकिस्तान में छुपा है. वो कई आतंकवादी संगठनों के समूह यूनाइटेड जिहाद काउंसिल का भी अध्यक्ष है.
- जमात-ए-इस्लामी अपनी अलगाववादी विचारधारा और पाकिस्तानी एजेंडे के तहत कश्मीर घाटी में कान करता है. ये संगठन अलगाववादी, आतंकवादी तत्वों का वैचारिक समर्थन करता है. उनकी राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में भी भरपूर मदद देता रहा है.
- जमात-ए-इस्लामी जम्मू कश्मीर हमेशा लोकतांत्रिक चुनावी प्रक्रिया का बहिष्कार करवाने और विधि द्वारा स्थापित सरकार को हटाने का समर्थक है, वो भारत से अलग धर्म पर आधारित एक स्वतंत्र इस्लामिक राज्य की स्थापना के लिए प्रयास कर रहा है।
- ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस एक अलगाववादी और उग्रवादी विचारधाराओं के संगठन का गठबंधन है जो पाक प्रायोजित हिंसक आतंकवाद को वैचारिक समर्थन प्रदान करता है. उसकी स्थापना के पीछे भी जमात-ए-इस्लामी का बड़ा हाथ रहा है. इस संगठन को जमात-ए-इस्लामी जम्मू कश्मीर ने पाकिस्तान के समर्थन से स्थापित किया है.
- इससे पहले भी दो बार जमात-ए-इस्लामी संगठन की गतिविधियों के कारण इसे प्रतिबंधित किया जा चुका है. पहली बार जम्मू कश्मीर सरकार ने इस संगठन को 1975 में 2 वर्षों के लिए बैन किया था जबकि दूसरी बार केंद्र सरकार ने 1990 में इसे बैन किया था. वो बैन दिसंबर 1993 तक जारी रहा था.
- जमात-ए-इस्लामी के कार्यकर्ता बड़ी संख्या में खुले तौर पर उग्रवादी संगठनों विशेषकर हिज्बुल मुजाहिदीन के लिए काम करते हैं. इस संगठन के कार्यकर्ता की हिज्बुल मुजाहिदीन की आतंकवादी गतिविधियों में तो भाग लेते ही हैं, साथ ही आतंकियों को पनाह देने से लेकर हथियारों की आपूर्ति तक में सक्रिय भूमिका निभाते हैं.
- जमात-ए-इस्लामी के प्रभाव में आने वाले क्षेत्रों में हिज्बुल मुजाहिदीन की मजबूत उपस्थिति जमात-ए-इस्लामी की अलगाववादी और उग्रवादी विचारधारा का प्रत्यक्ष उदाहरण है.
- जमात-ए-इस्लामी धार्मिक गतिविधियों के नाम पर फंड जमा करता है. उस फंड का इस्तेमाल राष्ट्र विरोधी अलगाववादी गतिविधियों के लिए करता है. जमात-ए-इस्लामी सक्रिय रुप से हिज्बुल मुजाहिदीन के लिए अपने संसाधनों का इस्तेमाल करता है. जम्मू कश्मीर के युवाओं विशेष तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों के युवाओं का ब्रेनवाश करके उन्हें भारत के खिलाफ भड़काने और आतंकवादी गतिविधियों में शामिल करने का काम करता है.
- जमात-ए-इस्लामी आतंकी संगठन हिज्बुल मुजाहिदीन के अलावा भी अन्य कई उग्रवादी संगठनों को समर्थन और सहायता देता रहा है. जमात-ए-इस्लामी के नेता हमेशा से ही जम्मू कश्मीर राज्य के भारत में विलय को चुनौती देते रहे हैं. जो उनके अलगाववादी इरादों को साफतौर पर दर्शाता है.