April 27, 2024

ट्रिपल तलाक बिल लोकसभा में पास,कांग्रेस और एआईएडीएमके का सदन से वॉक आउट

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दिल्ली: ट्रिपल तलाक बिल आज लंबी बहस के बाद लोकसभा में पास हो गया. बिल में जरूरी संशोधन को लेकर कांग्रेस और एआईएडीएमके ने सदन से वॉक आउट कर दिया. जिसके बाद वोटिंग हुई और बिल पास हो गया. इस बिल के पक्ष में 245 और विपक्ष में 11 वोट पड़े. इस बिल को अब राज्यसभा में पेश किया जाएगा. जहां से पास होने के बाद इस बिल को राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजा जाएगा. राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद यह कानून का रूप ले लेगा.


वोटिंग से पहले तीन तलाक विधेयक पर चर्चा हुई. तीन तलाक बहस में सत्ता पक्ष के साथ-साथ अन्य सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों ने अपना पक्ष रखा. बहस पूरी होने के बाद इस बिल पर वोटिंग कराई गई. तीन तलाक को रोकने के मकसद से लोकसभा में लाए गए ‘मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक-2018 के कुछ प्रावधानों का विरोध करते हुए कांग्रेस ने इसे संयुक्त प्रवर समिति में भेजने की मांग की तो सत्तारूढ़ बीजेपी ने इसे मुस्लिम महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए उठाया गया ऐतिहासिक कदम बताया.


लोकसभा बिल पेश करते हुए कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने कहा कि यह बिल कल्याण के लिए है. उन्होंने सदन में तीन तलाक के कुछ उदाहरण भी दिए और कहा कि इस तरह के बहाने बनाकर तलाक देना महिलाओं पर अत्याचार है. उन्होंने कहा मोदी सरकार मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ इस दमनकारी तरीके को ख़त्म करना चाहती है.


विधेयक पर चर्चा करते हुए कांग्रेस की सुष्मिता देव ने कहा कि उनकी पार्टी इस विधेयक के खिलाफ नहीं है, लेकिन सरकार के ‘मुंह में राम बगल में छुरी वाले रुख के विरोध में है क्योंकि सरकार की मंशा मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाने एवं उनका सशक्तीकरण की नहीं, बल्कि मुस्लिम पुरुषों को दंडित करने की है.


उन्होंने तीन तलाक को अपराध की श्रेणी में शामिल किए जाने का विरोध करते हुए कहा कि कांग्रेस ने 2017 के विधेयक को लेकर जो चिंताएं जताई थीं, उसका ध्यान नहीं रखा गया. उन्होनें कहा कि एक वकील होने के बावजूद कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने तीन तलाक पर कानून बनाने को लेकर उच्चतम न्यायालय अल्पमत के फैसले का उल्लेख किया. उच्चतम न्यायालय के फैसले में कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि तीन तलाक को अपराध की श्रेणी में रखा जाए.


कांग्रेस नेता ने कहा कि 1986 में राजीव गांधी के समय शाह बानो प्रकरण के बाद बनाया गया कानून मुस्लिम महिलाओं के सशक्तीकरण का सबसे महत्वपूर्ण कानून था जिसका उल्लेख उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में बार-बार किया.


बीजेपी की मीनाक्षी लेखी ने विधेयक को नरेंद्र मोदी सरकार का ऐतिहासिक कदम करार देते हुए कहा कि तीन तलाक को उच्चतम न्यायालय ने असंवैधानिक बताया और इस प्रथा का कुरान में कहीं उल्लेख नहीं है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस की तुष्टीकरण की राजनीति के कारण यह प्रथा अब तक चलती आई है जिसका खामियाजा मुस्लिम महिलाओं को भुगतना पड़ा है. बीजेपी सांसद ने कहा कि कई इस्लामी देशों में तीन तलाक में खत्म किया जा चुका है, लेकिन भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में चल रहा है. मीनाक्षी ने कहा कि अगर कांग्रेस ने 30 साल पहले कदम उठाती तो उसी वक्त इतिहास बदल जाता. उन्होंने कहा कि मोदी सरकार में महिलाओं के लिए कई कदम उठाए हैं और यह भी मुस्लिम महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए उठाया गया है.


कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि तीन तलाक से जुड़ा बिल महत्वपूर्ण है. इसका गहन अध्ययन करने की जरूरत है. यह संवैधानिक मसला है. ”मैं अनुरोध करता हूं कि इस बिल को ज्वाइंट सिलेक्ट कमेटी के पास भेजा जाए. इस समिति में लोकसभा/राज्यसभा दोनों सदनों के सदस्य होते हैं. यदि कोई सदस्य किसी बिल में संशोधन का प्रस्ताव पेश करता है तो उसे ज्वाइंट सिलेक्ट कमेटी के पास भेजा जाता है.”


तृणमूल कांग्रेस के सदस्य सुदीप बंधोपाध्याय ने कहा कि उनकी पार्टी भी ट्रिपल तलाक बिल को संयुक्त सेलेक्ट कमेटी के पास भेजने के हक़ में हैं.


अन्नाद्रमुक के अनवर रजा ने विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार ने पहले के विधेयक में बड़े संशोधन नहीं किए और संवैधानिक प्रावधानों के खिलाफ विधेयक लेकर आई है. उन्होंने आरोप लगाया कि यह विधेयक सांप्रदायिक सद्भाव और संविधान के खिलाफ है.


एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने मौजूदा तीन तलाक़ का विरोध किया. उन्होनें तीन संशोधन प्रस्ताव भी पेश किए. लेकिन जरूरी संख्या बल नहीं होने के कारण असदुद्दीन ओवैसी के तीन संशोधन प्रस्ताव गिर गए.


आपको बताते चले कि तीन तलाक को अपराध घोषित करने वाला यह विधेयक बीते 17 दिसंबर को लोकसभा में पेश किया गया था. इस प्रस्तावित कानून के तहत एक बार में तीन तलाक देना गैरकानूनी और अमान्य होगा और ऐसा करने वाले को तीन साल तक की सजा हो सकती है.

क्या नया है इस तीन तलाक बिल में:

पहला संशोधन: इसमें पहले का प्रावधान था कि इस मामले में पहले कोई भी केस दर्ज करा सकता था. इतना ही नहीं पुलिस खुद की संज्ञान लेकर मामला दर्ज कर सकती थी. लेकिन अब नया संशोधन ये कहता है कि अब पीड़िता, सगा रिश्तेदार ही केस दर्ज करा सकेगा.

दूसरा संशोधन: इसमें पहले का प्रावधान था कि पहले गैर जमानती अपराध और संज्ञेय अपराध था. पुलिस बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकती थी. लेकिन अब नया संशोधन यह कहता है कि मजिस्ट्रेट को जमानत देने का अधिकार होगा.

तीसरा संशोधन: इसमें पहले का प्रावधान था कि पहले समझौते का कोई प्रावधान नहीं था. लेकिन अब नया संशोधन ये कहता है कि मजिस्ट्रेट के सामने पति-पत्नी में समझौते का विकल्प भी खुला रहेगा.

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