बाबा साहेब का दूरदर्शी व्यक्तित्व
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डॉ. भीमराव अंबेडकर जयंती : संविधान के 75 वर्ष बाद प्रासंगिकता और विश्लेषण
जयंती विशेष
डॉ. दीपक राय, भोपाल
दैनिक मीडिया गैलरी
अगर आपको सिर्फ यही मालूम है कि बाबा साहब भारत के संविधान निर्माता हैं! तो माफ कीजिए, आप बहुत कम जानते हैं। बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर को समझना है तो गहन अध्ययन करना होगा। वे समाज सुधारक, राजनीतिज्ञ, सामाजिक समरता के शिल्पी, शोषितों की आवाज तो थे ही। इससे अव्वल यह कि वे महान आदर्श शिक्षाविद् और अर्थशास्त्री भी थे। जिस देश में बच्चों को अमेरिका के राष्ट्रपति रहे अब्राहम लिंकन के बारे में यह तो बता दिया गया कि वे स्ट्रीट लाइट के नीचे बैठकर पढ़ाई करते थे। लेकिन खेद इस बात का है कि हमें बाबा साहब के द्वारा प्रस्तुत किये गए शिक्षा के मॉडल से दूर रखा गया है। बाबा साहब के बचपन से लेकर उनकी मृत्यु तक ‘संघर्ष से सफलता’ की पूरी कहानी आज भी हमसे दूर है। यह भी दुखद ही है कि बाबा साहब के नाम पर दलितों के लिए बने राजनीतिक दलों ने सिर्फ वोट की राजनीति की। बाबा साहेब के महत्वपूर्ण पक्षों पर पर्दा डाले रखा। चूंकि आज बाबा साहब की जयंती है। इस मौके पर मैं कुछ बातें तथ्यों के साथ आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं। बाबा साहब दुनिया के सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे सामाजिक आदर्श हैं। शायद इसलिए देश में वे ही एकमात्र व्यक्ति थे, जिनके वश में संविधान का निर्माण था। संविधान लिखना आसान काम था क्या? इस संविधान निर्माण में उनकी अथक परिश्रम से अर्जित शिक्षा ही तो थी। डॉ. अंबेडकर की विद्वता और उनकी शैक्षणिक उपलब्धियां इतनी हैं कि कोई भी चकरा जाए।
गांव में स्कूल की पढ़ाई करने वाले बाबा साहब के पास मुंबई विश्वविद्यालय से बीए, कोलंबिया विश्वविद्यालय से एमए, पीएचडी, और एलएलडी, लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स से एमएससी और ‘डॉक्टर ऑफ़ साइंस'(डीएससी), ग्रेज़ इन से बैरिस्टर-एट-लॉ, उस्मानिया विश्वविद्यालय से डी लीट् मानद सहित 64 विषयों का ज्ञान, 32 डिग्रियां थी। वे कुशल संचारक भी थे। 11 भाषाओं में पारंगत बाबा साहब ने धार्मिक और आध्यात्मिक शिक्षा पर भी गहन शोध किया था। वे कानूनविद्, अर्थशास्त्री, लेखक, राजनीतिज्ञ, और समाज सुधारक थे। दुनिया के सभी धर्मों का करीब 21 सालों तक तुलनात्मक अध्ययन किया। सामाजिक समरसता के प्रतीक बाबा साहब अनूसूचित जाति, दबे-कुचले (दलितों) के खिलाफ़ समाज में व्याप्त भेदभाव को बर्दास्त नहीं करते थे। उनके द्वारा बनाए गए संविधान में इसकी स्पष्ट झलक देखी जा सकती है। 9 भाषाएं उन्हें न सिर्फ मुंहजबानी याद थी, उनके विशेषज्ञ भी थे। जिस शिक्षा को हासिल करने में लोगों को 8 वर्ष का समय लग जाता, वह पढाई डॉ. आंबेडकर 2 से 3 साल में पूरी कर लेते थे। नागपुर यूनिवर्सिटी, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और बीएचयू जैसे प्रतिष्ठित संस्थान उनकी विद्वता का प्रमाण प्रस्तुत करती हैं।
बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर सही मायने में भारत रत्न हैं क्योंकि एक गरीब परिवार में जन्मे लेकिन शिक्षा के दम पर एक नया मुकाम हासिल किया। इतने महत्वपूर्ण व्यक्तित्व को राजनीतिक महात्वाकांक्षा कभी लुभा नहीं सकी, यही बात अन्य नेताओं से उन्हें अलग करती है, यही बात हमें उनके प्रति आदर और कृतज्ञता व्यक्त करने का कारण बनती है। बाबा साहब की विद्वता की एक और निशानी थी- बाबा साहब जो भी लिखते, जो भी बोलते, हर शब्द संदर्भ के साथ होता था। होता भी क्यों नहीं। जब डॉ. अंबेडकर की मृत्यु हुई तब उनके घर से 35 हजार किताबें सामने आई थीं। ‘ए पार्ट अपार्ट: द लाइफ़ एंड थॉट ऑफ़ बीआर आंबेडकर’ नामक किताब में लेखक अशोक गोपाल लिखते हैं- डॉ आंबेडकर ने अपने ख़राब स्वास्थ्य से जूझते हुए दुनिया के सबसे बड़े संविधानों में से एक को तैयार किया। संविधान की प्रारूप समिति में 7 सदस्य उच्च जाति के थे, लेकिन यह बाबा साहब की योग्यता ही कही जाएगी कि सभी सदस्यों ने आंबेडकर को इस समिति का नेतृत्व सौंप दिया। जब बाबा साहेब संविधान लिख रहे थे तब वाइसरॉय माउंटबेटन की पत्नी एडविना माउंटबेटन ने आंबेडकर को पत्र लिखकर कहा था- वे ‘निजी तौर पर ख़ुश’ हैं कि संविधान निर्माण की ‘देखरेख’ वे कर रहे हैं, क्योंकि वे ही ‘इकलौते प्रतिभाशाली शख़्स हैं, जो हर वर्ग और मत को एक समान न्याय दे सकते हैं। खास बात और वे दलितों के एकमात्र निर्विदित नेता रहे, जिन्होंने कभी भी न अपने वर्ग के लोगों को गुमराह किया, न ही अन्य वर्गों के नागरिकों के प्रति ‘प्रतिशोध’ जताया। ततकालीन भारत जैसे ग़रीब और ग़ैर-बराबरी वाले देश में संविधान के ज़रिए छुआछूत ख़त्म करना, वंचितों के लिए सकारात्मक उपाय करना, सभी वयस्कों को मतदान का अधिकार देना और सबके लिए समान अधिकार तय करना जैसे काम उनकी उपलब्धि है। संविधान बनने के 75 साल बीतने के बाद भी आज भारत अगर दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। देश में इतने अधिक राज्य, धार्मिक, भाषाई, वैचारिक विविधता के बावजूद भारत को एक रखने में संविधान सबसे महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है। विशाल और विविध लोकतंत्र, गंभीर चुनौतियों से जूझने की शक्ति संविधान से ही मिली हैं। यह सब बाबा साहेब की दूरदर्शी सोच के कारण ही संभव हो पाया। उपलब्धियों से भरा व्यक्तित्व रखने वाले बाबा साहेब का निधन महज 63 वर्ष की उम्र में 6 दिसंबर 1956 को हो गया था। उनका जन्म आज ही के दिन 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के महू में हुआ था।