पाॅक्सो एक्ट में संशोधन, रेपिस्टों की आई सामत
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अनुज अवस्थी, नई दिल्ली: साल 2018 के शुरुआती महीने इस लोकतांत्रिक देश के लिए काफी खराब साबित हुए। लगातार एक के बाद एक रेप की घटनाओं ने इस लोकतंत्र पर धब्बा लगाने काम किया है इस बात को नकारा नहीं जा सकता है। विडंबना ये है कि इन अपराधों में सत्ता पर काबिज रसुखदार भी शामिल हैं। यानि कि जिनके उपर देश की जिम्मेदारी है वे लोग ही ऐसे कारनामों में संलिप्त दिखाई दिए।
उन्नाव से लेकर कठुआ औऱ कठुआ से लेकर सूरत ये सभी घटनाएं अपने आप में रुह कंपा देने वाली थी। दरअसल इन सभी जगहों पर रेप की शिकार सारी की सारी बच्चियां नाबालिग हैं। कठुआ रेप मामले में तो हद ही हो गई दरिदों ने मंदिर परिसर में लगातार एक सप्ताह तक सात साल की बच्ची के साथ सामूहिक बलात्कार किया। इन रेप की घटनाओं से इस देश में पनपती मानसिकता को समझना मुश्किल नहीं होगा।
हैरानी की बात ये है कि प्रशासन भी इस पर ज्यादा मुसतैद नहीं दिखाई दिया। जबकि ऐसे मामलों को सरकार को संजीदगी से लेने की जरुरत थी। बहराल, देर से ही सही मगर सराकार की नींद तो खुली। तभी तो मोदी जी के विदेश यात्रा से लौटने के तुरंत बाद मोदी जी ने कैबिनेट की बैठक बुलाकर पाॅक्सो एक्ट में सशोंधन कर एक सकारात्मक पहल की है।
क्या है पाॅक्सो एक्ट: पाॅक्सो एक्ट (प्रोटेक्शन आॅफ चिलड्रन फ्रॅाम सेक्शुअल आॅफेंस) इस एक्ट का प्रयोग तब किया जाता है जब कोई किसी नाबालिग के साथ रेप जैसा जघन्य अपराध करता है। इसमें पहले आरोपी को कम से कम 7 साल की सजा का प्रावधान था। जिसमें संशोधन कर 10 साल कर दिया गया है। इतना ही नहीं 12 साल से कम उम्र की बच्चियों के साथ रेप करने पर उम्र कैद की सजा या फिर फांसी की सजा का प्रावधान कर दिया गया है। आपको बता दें कि इस संशोधित एक्ट को मोदी सरकार जल्द ही संसद में पारित कर जमीनी तौर पर लागू करवाने की तैयारी कर रही है।