यूपी में बुआ बबुआ की फतह और 2019 के राजनैतिक मायने
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सिंहासन खाली करो कि जनता आती है, समाजवादी विचारधारा वाले राममनोहर लोहिया की ये लाइन यूपी के उपचुनाव के नतीजों पर काफी हद तक सटीक बैठती है। यूपी के उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी की ये हार अंदेशा दे रही है कि सूबे की आवाम को हिन्दु मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति में रत्ती भर भी दिलचस्पी नहीं है। औऱ किसी ने ठीक ही कहा है कि जिंदा कौमें सालों तक इंतजार नहीं करती, शायद इसी वजह से प्रदेश की योगी सरकार को ये राजनैतिक खामियाजा भुगतना पड़ा। महज एक साल में ही सूबे की जनता केंद्र की भाजपा औऱ प्रदेश की योगी सरकार को इतना करारा झटका देगी, इसकी किसी ने परिकल्पना भी नहीं की होगी।
इन चुनावी नतीजों के परिणाम कई अहम माइनों की और इशारा कर रहै हैं क्योंकि गोरखपुर लोकसभा सीट से सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और फूलपुर सींट से उपमुख्यमंत्री कैशव प्रसाद मोर्य की इज्जत साख पर लगी हुई थी। इज्जत साख पर इसलिए क्योंकि गोरखपुर सीट को उनकी पुसतैनीं सीट के मद्देनजर भी देखा जाता रहा है। अपने गुरु अवैद्य नाथ के बाद से ही योगी इस सीट पर तकरीबन तीन दशक से हुकूंमत कर रहे थे। लैकिन किसी ने इस बात का अंदाजा भी नहीं लगाया होगा की योगी के सीएम बनने के बाद वहां की जनता में योगी के प्रति इस तरह की कड़वाहट भरी होगी जो चुनावी नतीजों को भाजपा के लिए कड़वाहट भरा सबब बन देगी।
वहीं इन दोनो ही सीटों के परिणामों ने कहीं न कही समाजवादी पार्टी के उन दिनो के घावों पर मरहम लगाने का काम किया है जब अखिलेश यादव और राहुल गांधी (यूपी के अपने लड़कों) के गठजोड़ को सूबे की जनता ने सिरे से नकार दिया था। वहीं इस चुनाव में बहुजन समाजवादी नेता मयावती का अखिलेश को समर्थन ये दर्शाता है कि राजनीति वाकई असीमित संभावनाओं का खेल है। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि एक दौर वो था जब मायावती को समाजवादी संस्थापक मुलायम सिंह यादव से जान का खतरा था औऱ इसी के चलते मायावती अपनी सुरक्षा की गुहार लगा रहीं थी।
वहीं हर बार की तरह इस बार भी चुनावी जंग में संसदीय भाषा को तार-तार किया गया। अखिलेश और मायावती को सांप और छछूंदर की उपाधि दे दी गयी। बहराल, भाजपा की इस करारी हार को 2019 के राजनैतिक मायनों के मद्देनजर भी देखा जा रहा है। कोई इसे भाजपा के लिए चिंता का सबब बता रहा है, तो कोई इसे विपक्षी दलों के लिए उम्मीद की किरण बता रहा है।
बहराल, उपचुनाव के परिणामों ने एक तरीके से भाजपा को 2019 की राजनीति के लिए आगाह करने का काम किया है। हिंदु मुसलिम की राजनीति से इतर भारतीय जनता पार्टी को इससे सबक लेकर सही मायने में देश और प्रदेश के विकास और लोगों की रोजमर्रा की जरुरतों पर ध्यान देना होगा, नहीं तो 2019 में इसके परिणाम औऱ भी भयावह हो सकते हैं।