भुखमरी से जुझता भारतवर्ष का जनतंत्र….
1 min readकहते हैं कि सुहानी सुबह एक रोज सबके दुखों को हर लेती हैं। शायद इसी आस में देश के वासिंदे रोज सुबह सूरज की लाली में अपनी दो वक्त की रोटी को आस भरी नजरों से खोजने की कोशिश करते हैं। देश की आबादी का एक हिस्सा ऐसा भी है जो रोज भुखमरी की मार न चाहते हुए भी झेल रहा है। तभी तो आलम यह है कि लोकतंत्र कहे जाने वाले इस देश में 7000 लोग प्रतिदिन अपने प्राणों को भुखमरी की भेंट चढ़ा देते हैं। और अगर इस 7000 के आंकड़े को पूरे साल के मद्दे नजर देखा जाए, तो ये 25 लाख 2 हजार के इर्द-गिर्द मडराता हुआ दिखाई देता है। और ये आंकड़े गत वर्ष 2017 के हैं, यानि कि भविष्य में इसमें इजाफा नहीं होगा इस बात की भी कोई गारंटी ले नहीं सकता। बहराल, एक तरफ भाजपा की मोदी सरकार देश की पटरियों पर बुलेट ट्रेन दोड़ाने का सपना सजों कर बैठी है तो दूसरी तरफ आलम यह कि देश की आवाम दो वक्त की रोटी को मोहताज है।
अब ऐसे में भारतीय लोकतंत्र का एक हिस्सा खाने के लिए दाने-दाने को मोहताज हो, और वहीं इस देश के भ्रष्ट नेताओं की झोली अशर्फियों से खचा-खच भरी हो तो इसे लोकतंत्र की त्रासदी नहीं तो और क्या समझा जाए। भारतवर्ष में भुखमरी का आलम यह है कि वक्त की मार झेल रहे लोग अपनी भूंख मिटाने के लिए दो वक्त की रोटी कचड़े के ढेर में ढूंड रहे हैं, जिस खाने को जानवर तक खाने से कतरा जाए उस खाने को इंसानी जुबां पर रखना कितना कष्टदायी होगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
इस त्रासदी की वजह सिर्फ मौजूदा सरकार नहीं है ये गाज वक्त के मारे भारतीय जनतंत्र पर एक लंबे अरसे से गिरती आ रही है। और साल दर साल इन आंकड़ों में इजाफा होता चला जा रहा है, लेकिन इनकी सुध लेने वाला कोई भी नहीं। सोचनीय है कि एक तरफ हम अंर्तराष्ट्रीय पटल पर विकासशील देशों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने का दमखम भर रहे हैं और दूसरी ओर देश को विकास के पथ पर सरपट दौड़ाने वाले ही दो जोर की रोटी के लिए मोहताज हैं।
हकीकत ये है कि इस लोकतंत्र की बागडोर संभालने वाले हुकमरानों का ध्यान कभी इन बेवश और लाचार आवाम की और जाता ही नहीं क्योंकि उनके होने न होने से सत्ता पर कोई खासा असर नहीं पड़ेगा। क्योंकि वो दो जोर की रोटी को मोहताज हैं तो वोटर आईडी खाक उनके पास होगी। और जब वो देश की चुनावी जंग में हिस्सा ही नहीं ले सकते तो मुख्यधारा की राजनीति में भूचाल आएगा कहां से ? बहराल, भुखमरी की मार झेल रही देश की आवाम भूंखे पेट सरकार की और रोटी भरी निगाहों से टकटकी लगाकर देख रही है। अगर सत्ता पर काबिज इन रसूक दारो को इस लोकतंत्र को आने वाले व्यापक खतरे से बचाना है तो उन्हें इस दिशा में बड़े पैमाने पर पहल करने की जरुरत है, नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब भारतवर्ष का एक अहम हिस्सा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भुखमरी का कटोरा लिए खड़ा दिखाई देगा।