अगर भारतीय न्यायिक व्यवस्था में पारदर्शिता आए तो इसमें बुराई क्या
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नई दिल्ली: आजाद भारत के इतिहास में पहली बार ही सही लेकिन वो लम्हा आ ही गया, जब देश की उच्चतम न्यायालय के जजों को इस प्रकार प्रेस कांफ्रेंस कर अपनी बात रखने की जरुरत पड़ी हो। सुर्पीम कोर्ट के चार जज जस्टिस चमलेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस मदन लोकुर और कोरियन जोसेफ ने प्रेस कांफ्रेंस कर चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ अपनी नाराजगी जताई।
इन जजों का कहना है कि भारतीय न्याय व्यवस्था में सब कुछ दुरुस्त नहीं। इतना ही नहीं जजों की वरिष्ठता को भी ताक पर रखा जा रहा है। जजों की प्रेस कांफ्रेंस के तुरंत बाद इसे मीडिया चैनल वाले अपने-अपने तरीके से दिखाने लगे। एक अंग्रेजी चैनल तो बार-बार ऐसी क्लिप दिखाने लगा जिसमें एक राजनेता जज के आवास पर उससे हाथ मिला रहा है। कहा जाने लगा कि देश की न्याय व्यवस्था का राजनीति करण ठीक नहीं।
वहीं कुछ समय बाद सरकार की ओर से एक बयान जारी होता है जिसमें कहा जाता है कि ये देश की न्यायिक व्यवस्था का अंदरुनी मामला है, सरकार इसमें हस्तक्षेप नहीं करेगी। बहराल, भारतीय लोकतंत्र में ऐसा पहली बार होना भले ही आश्चर्य जनक लगे लेकिन ये गलत भी नही है जब भारतीय न्यायपालिका के ढांचे में पारदर्शिता के लिए एक पहल की जाए।