May 7, 2024

हमारे लोकतंत्र को श्रेष्ठ बनाने के महत्वपूर्ण उपाय

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                      *अखिलेश कुमार झा akhileshkumarjha83@gmail.com

विचार : शासन की खूबसूरत प्रणाली लोकतंत्र है। इस लोकतंत्र का महापर्व है चुनाव, जिसमें हमें अपने मताधिकार प्रयोग करने का अवसर मिलता है।इसी प्रक्रिया द्वारा हम अपना प्रतिनिधि चुनते हैं। हमारा देश विश्व का विशालतम लोकतंत्र है। हमारे यहाँ सत्ता में सबकी समान भागीदारी हो इसका पूरा ध्यान रखा जाता है। लोकतंत्र द्वारा देश को सफल देशों की पंक्ति में रखने के लिए यह अति आवश्यक है।


पवित्र लोकतंत्र की सफलता सुनिश्चित करने के लिए ईमानदार प्रतिनिधियों को चुनना भी जरूरी है। मतदान के समय जबतक हम उम्मीदवारों को व्यक्तिगत छवि के आधार पर नहीं चुनेंगे, अच्छे लोगों को समर्थन नहीं देंगे तबतक स्वच्छ शासन की अपेक्षा नहीं कर सकते हैं। इसके लिए एक आवश्यक और महत्वपूर्ण कदम यह हो सकता है कि शत प्रतिशत मतदान सुनिश्चित किया जाय। इसके कुछ उपाय आजमाए जा सकते हैं।

वर्तमान में सभी मतदाताओं को केन्द्र तक जा कर मतदान करना होता है। ऐसे में लाचार मतदाताओं के छूटने की आशंका बनी रहती है। लाचार लोगों के लिए विशेष व्यवस्था या चलन्त बूथ के विकल्प पर विचार करने के साथ औनलाइन वोटिंग पर भी सोचने की आवश्यकता है। चुनाव के प्रक्रिया की शुचिता कायम रखने के लिए कुछ और भी कदम उठाए जा सकते हैं। राजनीतिक दलों को सूचना अधिकार अधिनियम के दायरे में लाने से राजनीतिक निर्मलता स्थापित होगी, जो हमें एक आदर्श समाज प्रदान कर सकेगा। राइट टू रिकॉल के प्रावधानों को लागू कराए जाएँ। प्रत्याशियों द्वारा चुनावी वादे पूरे नहीं करने या अगले चुनाव से एक वर्ष पूर्व तक काम शुरू नहीं होने पर चुनाव लड़ने की योग्यता समाप्त समझे जाने के शपथपत्र भरने का नियम भी कारगर हो सकता है।


लोकतंत्र को पूर्ण स्वस्थ बनाने के लिए हमें दागी नेताओं से मुक्ति पाने की कोशिश करनी ही पड़ेगी तथा इसके लिए हमें ब्रिटेन, चीन,आस्ट्रेलिया, पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों से सीखना चाहिए। ब्रिटेन में मतदान शुरू होने के दिन से पाँच साल पहले तक की अवधि में तीन माह या उससे अधिक सजा पाया व्यक्ति यहाँ एम.पी. का चुनाव नहीं लड़ सकता है। इसके अलावा इस अवधि में किसी भी पद से निलंबित (बिना जुर्माना) व्यक्ति भी चुनाव लड़ने की योग्यता खो देता है।


चीन में देशद्रोह, भ्रष्टाचार और संगठित अपराध रोकथाम कानून के तहत आने वाले मामले में सजा तय होने पर फाँसी, उम्र कैद या दस वर्षों से अधिक सजा वाले अपराधों में सजा निर्धारित नहीं होने की भी स्थिति में किसी चुनाव में नामांकन नहीं हो सकता है।


आस्ट्रेलिया में बारह माह या उससे अधिक सजा के प्रावधान वाले अपराध में दोषी, सजा पाए या सुनाए जाने का इन्तज़ार करने वाला सिनेटर चुनाव नहीं लड़ सकता है, भले ही उसका अपराध कौमनवेल्थ या राज्य कानून के अन्तर्गत ही क्यों न आता हो।


पाकिस्तान में जेल की सजा काटकर बाहर आने के बावजूद कोई व्यक्ति पाँच साल पूर्ण होने से पहले संसद का चुनाव नहीं लड़ सकता है.


बंग्लादेश में दो वर्ष से कम सजा पाया व्यक्ति तभी चुनाव लड़ सकता है, जब उसकी सजा मतदान के दिन से ठीक पाँच वर्ष पूरी हो चुकी हो। दो वर्ष से अधिक सजा पाया व्यक्ति यहाँ चुनाव नहीं लड़ सकता है।


सम्पूर्ण राजनीतिक शुचिता के साथ राष्ट्र को पुनः विश्व गुरु बनाने के लिए नेता और जनता के बीच के भेदभावों को भी मिटाना होगा।


नेता चाहे तो दो जगहों से चुनाव लड़ सकता है पर जनता दो जगहों पर मतदान नहीं कर सकता है। जेल में बन्द नेता चुनाव लड़ सकता है पर जेल में बन्द जनता मतदान नहीं कर सकता है।

यदि हम कभी भी जेल गए हों तो कभी सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती है पर नेता किसी अपराध में जेल की सजा काटने पर भी मंत्री संत्री कुछ भी बन सकता है। हमें छोटी सी नौकरी पाने के लिए भी मैट्रिक पास होना जरूरी है, पर नेता की योग्यता कुछ भी निर्धारित नहीं है। सिपाही बनने के लिए हमें दौड़ कर दिखाना पड़ता है किन्तु रक्षा मंत्री दिव्यांग भी बन सकता है। जिसने कभी स्कूल नहीं देखा वह भी शिक्षा मंत्री बन सकता है। जिस पर सैकड़ों मुकदमे चल रहे हों वह भी गृहमंत्री बन सकता है। सरकारी सेवक तीस से पैंतीस वर्ष की सेवा के बाद ही पेंशन का हकदार हो पाता है, और नेता पद पर जाते ही पेंशन का भी हकदार हो जाता है।


राष्ट्र की प्रगति के कुछ और बाधक तत्वों को भी निर्मूल करने की आवश्यकता है। हमारे देश में जनप्रतिनिधियों के नियमित रिक्त सभी पदों को भरने के लिए सालों भर चुनाव होते रहते हैं, वहीं करोड़ों योग्य बेरोजगारों को 60% से ज्यादा रिक्तियों के बावजूद रोजगार देने की कोशिश नहीं की जाती है। जिस प्रकार जनप्रतिनिधियों का एक भी पद छ: माह से अधिक खाली नहीं रखने का नियम है उसी प्रकार लोक सेवकों का एक भी पद छ: माह से अधिक खाली न रखने का नियम लागू किए जाने की अत्यधिक जरूरत है। न्यायालयों में लगभग 50% से अधिक रिक्तियां हमेशा बनी रहती है और लोग न्याय की आशा में वर्षों तक अपना धन और समय नष्ट करते हैं।


जहाँ एक ओर योजनाओं के प्रचार प्रसार, नेताओं के यात्रा, सुरक्षा और पेंशन आदि पर पानी की तरह खरबों बहाए जाते हैं, वहीं दूसरी ओर बेरोजगारों को नौकरी, वेतन, भत्ता व पेंशन देने तथा आधारभूत संरचनाओं के विकास के लिए पैसों की कमी का रोना रोया जाता है। इन समस्याओं का समाधान होगा तभी सही मायनों में अच्छे दिन आएंगे और सबका साथ सबका विकास का नारा प्रासंगिक हो पाएगा।


नेताओं पर खर्च होने वाले रकम की एक बानगी देखिए–:
एक तरफ जहाँ निर्धनतम लोग, जिसे दो वक्त की रोटी मुश्किल से मिलती है, वहीं दूसरी ओर नेताओं पर कुबेर का खजाना लुटाया जाता है। इन तथ्यों से स्पष्ट होगा कि देश आर्थिक रूप से कमजोर नहीं है अपितु उचित सामनजस्य के अभाव में गरीबों और अमीरों के बीच की खाई बढती जा रही है।


हमारे यहाँ वर्तमान में नेताओं की वेतन वृद्धि और मिलने वाली सभी सुख सुविधाओं को देखकर आँखें फटी की फटी रह जाती है। यही वास्तविक चित्र है हमारे देश की।

akhileshkumarjha83@gmail.com

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