चौकीदार को उसका काम बताकर देखिये..
1 min read
मनोज कुमार
मेरे गांव में एक चौकीदार था. नेपाल से था. थापा जी के नाम से जाना जाता था। उससे कभी-कभार ही महीने की आखिरी तारीख को मुलाकात होती थी. इस दिन वो पैसे वसूलने आता था. एक दिन जब मैं घर से निकल रहा था, तब वो दरवाजे पर मिला. शायद 2003 मई का महीना होगा. मैं यूं ही उससे बात करने लगा. मैंने उससे पूछा: कभी चोर से सामना हुआ है कि नहीं। तब मैं 10वीं में पढ़ता था. उसने कहा: चोर की पहचान करना मुश्किल है. रास्ते में किसी को आते-जाते देखने के बाद उनके आंखों से ओझल होते ही सिटी बजा देता हूं. मैंने पूछा: सिटी की आवाज तो हमेशा सुनाई देती है. उसने कहा: आहटों के आधार पर या किसी के दरवाजा खोलने पर भी मैं सिटी बजा देता हूं. इतनी बातों के बाद मैं फिर अपने पहले सवाल पर आ गया। सवाल था: चोर से भेंट हुई है कि नहीं: उसने जवाब दिया: आप शायद ये सुनना चाहते हैं कि चोरी की वारदात के समय मैं कहां रहता हूं। वो थोड़े गुस्से से झल्ला गया था. उसने और सख्त लहजे में कहा कि आप शायद यही जानना चाहते हैं कि हाथ में सिर्फ टॉर्च और छड़ी लेकर मैं चोरों का कैसे मुकाबला कर पाऊंगा. वह लगातार बोले जा रहा था. मैं अब खामोश हो गया था. इस वार्तालाप के बाद फिर मेरी उससे कभी मुलाकात नहीं हुई. आशा है वो जहां भी होगा सकुशल होगा.
बात अब जाकर 16 साल बाद समझ में आ रही है. चौकीदार को उसका काम बताना उसे नागवार गुजरा था. चौकीदार शायद यही कहना चाह रहा था कि जो हो रहा है होने दीजिए. मैं अपनी चौकीदारी कर रहा हूं. उसका मतलब यह भी था: चोरी हो रही है या होगी तो ये पुलिस का मामला है. या फलां, ढिमकाना इसके लिए दोषी है.