May 18, 2024

HAPPY BIRTHDAY: शहीद-ए-आजम भगत सिंह

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HAPPY BIRTHDAY शहीद-ए-आजम भगत सिंह का जन्म दिन है. ये वो भगत है जिसे जन्म देने पर माँ भी फ़क्ऱ करे. उस माँ ने एक ऐसे बेटे को जन्म दिया, जिसने अपनी जिंदगी को महज 23 साल की उम्र में भारत माँ कि सेवा में फांसी के फंदे से हस्ते-हस्ते लटक गया. और एक प्रेरणास्त्रोत बन गया भारत के सभी युवाओ का.
भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को पंजाब के जरवाला तहसील में सरदार किशन सिंग सिंधु के घर हुआ था. आजादी की लड़ाई लड़ते हुए भगत सिंह को अंग्रेजों ने लाहौर की सेंट्रल जेल में उनके साथियों राजगुरू और सुखदेव के साथ उन्होंने 23 मार्च 1931 को फांसी पर लटका दिया था.
भगत सिंह का शुरुआती जीवन
सिख परिवार में जन्में भगत सिंह जब पैदा हुए थे उस वक्त उनके पिता किशन सिंह जेल में थे. भगत सिंह को उनके बचपन से ही घर में देशभक्ति का माहौल मिला क्योंकि उनके पिता के अलावा उनके चाचा अजीत सिंह भी एक बड़े स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी थे. जिनपर अंग्रेजों ने 22 मुकदमें दर्ज किए हुए थे. भगत सिंह की प्रारंभिक शिक्षा दयानंद एंग्लो वैदिक हाई स्कूल में पूरी हुई थी. जलियांवाला बाग हत्याकांड से दुखी भगत सिंह के मन में देश को आजादी दिलाने की चिंगारी सुलग चुकी थी जिसके बाद उन्होंने अपना जीवन देश सेवा में देने के लिए ठान लिया था.

भगत सिंह ने महात्मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे असहयोग आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया.आंदोलन में हिंसा से नाराज गांधी ने आंदोलन बिच में ही रोक दिया. इस फैसले से भगत सिंह खुश नहीं थे जिसके बाद उन्होंने गांधी जी का साथ छोड़ दिया.
भगत सिंह तब नौजवान भारत सभा से जुड़े. लाहौर आकर उन्होंने कीर्ति किसान पार्टी के लोगों के साथ संपर्क बढ़ाया और उनकी कीर्ती मैग्जीन के लिए काम करने लगे. भगत सिंह एक बहुत अच्छे लेखक थे वे अपने संदेशों को मैग्जीन के जरिए युवाओं तक पहुंचाते थे. उनके काम को देखते हुए 1926 में उनको नौजवान भारत सभा का सचिव बना दिया गया. जिसके बाद भगत 1928 में हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के साथ जुड़ गए थे.

30 अक्टूबर 1928 को भारत में आए साइमन कमीशन का विरोध किया जिसमें लाला लाजपत राय भी शामिल थे. साइमन गो बैक का नारा लगाते हुए लाला लाजपत राय ने इन क्रांतिकारियों के साथ अंग्रेजों का विरोध किया जिसमें उनपर लाठियां बरसाई गईं जिससे बुरी तरह घायल हो कर उनकी मृत्यु हो गई. लाला लाजपत राय की मृत्यु के बाद भगत सिंह और उनके साथियों ने अंग्रेजों से इसका बदला लेने की ठान ली जिसके बाद उन्होंने अंग्रेज अफसर स्कॉट को मारने के चक्कर में सांडर्स को मार डाला था जिसके बाद वो अंग्रेजों की गिरफ्त से बचने के लिए लाहौर चले जहां उन्होंने अपने दाढ़ी और बाल कटवा दिए ताकि अंग्रेजों की नजर में न आ सकें.
तब तक भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, राजगुरू और सुखदेव एक साथ मिल चुके थे जिसके बाद इन लोगों ने बड़ा काम करने की सोची और दिसंबर 1929 को भगत सिंह ने अपने साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर ब्रिटिश सरकार की असेंबली हॉल के खाली स्थान में बम का धमाका किया और जिंदाबाद इंकलाब के नारे लगाते हुए वहीं खड़े होकर पर्चे बांटे जिसके बाद दोनों ने अपने आप को अंग्रेजों के हवाले कर दिया.
अंग्रेजों की गिरफ्त में आने के बाद उनके नाम के आगे शहीद जुड़ गया जिसके बाद अंग्रेजी सरकार ने उनके साथ राजगुरू और सुखदेव पर मुकदमा चलाते हुए फांसी की सजा सुनाई. जेल में भगत सिंह और उनके साथियों को जेल में खूब यातनाए दी जाती और उनको जेल में मिलने वाली सुविधाओं से वंचित रखा जाता जिसके खिलाफ उन्होंने आंदोलन छेड़ दिया और अपनी मांगे मनवाने के लिए भूख हड़ताल शुरू कर दी जिसमें उन्होंने खाना और पानी बिल्कुल छोड़ दिया था.

जेल के बाहर देश में भगत सिंह के बढ़ते हुए समर्थन को देखते हुए अंग्रेजों ने उन्हें जल्द से जल्द फांसी देने का फैसला किया और 23 मार्च 1931 को राजगुरू और सुखदेव के साथ उनको फांसी दे दी गई. अंग्रेजों को देश में विद्रोह भड़कने का इतना डर था कि उन्होंने तीनों क्रांतिकारियों का अंतिम संस्कार भी 23 मार्च की आधी रात को ही कर दिया था. भगत सिंह के इस बलिदान को न देश भुला सकता है न इतिहास वो अमर थे अमर है अमर रहेंगे.

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