July 2, 2024

Agricultural workers से प्रत्यक्ष संवाद में छलका अभावों और उपेक्षा का दर्द

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चित्रकूट – महात्मा गाँधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय, दीनदयाल शोध संस्थान और म.प्र. जन अभियान परिषद के साझा संयोजकत्व में भूमिहीन कृषि श्रमिकों के आर्थिक सशक्तिकरण पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन आज कृषि श्रमिकों की बेहतरी के प्रस्ताव- चित्रकूट घोषणा के साथ सम्पन्न हुआ।
महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय के बाल्मीकि सभागार और बोर्ड रूम/ रजत जयंती सभागार से संपन्न दो दिवसीय इस संगोष्ठी में देश के विभिन्न राज्यों के 15 से अधिक विश्वविद्यालयों के प्राध्यापकों, शोधकर्ता, चिन्तकों, सामाजिक कार्यकर्ता तथा प्रशासन और नीति निर्माण से जुडे़े अनेक विद्वानों ने सहभागिता की। समापन सत्र में ’चित्रकूट घोषणा’ भारतीय मजदूर संघ के राष्ट्रीय संगठन सचिव सुरेन्द्रन ने प्रस्तुत की, जिसे सदन ने ध्वनिमत से पारित किया। श्री सुरेन्द्रन ने खेतिहर श्रमिकों के लिए पांच सूत्रीय कार्य योजना और भविष्य का रोडमैप प्रस्तुत किया। समापन सत्र में ग्रामोदय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. भरत मिश्र, दीनदयाल शोध संस्थान के संगठन सचिव अभय महाजन, पूर्व अपर मुख्य सचिव बी.आर. नायडू उपस्थित रहे। सामाजिक समरसता के राष्ट्रीय संयोजक श्याम प्रसाद ने संगोष्ठी के विविध आयामों पर प्रकाश डाला। समापन सत्र की अध्यक्षता म.प्र. जन अभियान परिषद् के कार्यपालक निदेशक डाॅ. धीरेन्द्र कुमार पाण्डेय ने की। संगोष्ठी का सार वक्तव्य पूर्व केन्द्रीय मंत्री संजय पासवान ने प्रस्तुत किया।
श्री संजय पासवान ने कृषि श्रमिकों के आर्थिक सशक्तिकरण पर आधारित इस संगोष्ठी को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि जिस समग्रता से इस विषय पर बातचीत हुई है। भविष्य की रूपरेखा बनी है। मुझे विश्वास है कि इसके दूरगामी परिणाम होेंगे। उन्होंने वर्तमान भारतीय समाज को दो वर्गों में विभाजित बताया और कहा कि एक वर्ग विशेष है और दूूसरा शेष। अर्थात एक शासकीय योजनाओं में लाभ की दृष्टि से प्रमुख है और दूसरा नहीं। श्री पासवान ने कहा कि भारत में जाति एक सच्चाई है, किन्तु राष्ट्रीयता एक अच्छाई है। हमें सामाजिक समरसता के साथ जातियों को स्नेह के सूत्र में पिरोकर एक करना होगा। अन्यथा वर्ग संघर्ष को हवा देने के लिए अनेक ताकतें सक्रिय हैं। अपने उद्बोधन को सूत्र रूप में व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि हमें सैड से ग्लैड की तरफ बढ़ना है। सैड अर्थात तीन पाश्चात्य चिंतकों सिगमण्ड फ्रायड, एडम स्मिथ और डार्विन के मानकों को छोड़कर भारतीय चिंतक गांधी, लोहिया, अंबेडकर और दीनदयाल के समन्वयकारी चिंतन से आगे बढ़ना है।
समापन सत्र के अध्यक्षीय उद्बोधन में म.प्र. जन अभियान परिषद् के कार्यपालक निदेशक डाॅ. धीरेन्द्र कुमार पाण्डेय ने संगोष्ठी को अत्यन्त सफल निरूपित करते हुये कहा कि यह विषय अनेक वर्षों से उपेक्षित है। भूमि अभिलेख और भूमि आवंटन के दस्तावेजों के रख-रखाव के लिए उन्होनें अत्याधुनिक सेटेलाइट टेक्नोलाॅजी की वकालत की। उन्हानें कहा कि संगोष्ठी के विचार विषय जन-जन तक पहुँचानें की आवश्यकता है जिससे सकारातमक विमर्श बन सके।
समापन सत्र के विशिष्ट अतिथि और पूर्व अपर मुख्य सचिव म.प्र. शासन तथा वर्तमान में ट्रिपल आई.टी. के बोर्ड आफ गवर्नस के अध्यक्ष बी.आर.नायडू ने संगोष्ठी के चिन्तन को युगानुकूल निरूपित किया। मुख्यमंत्री सामुदायिक नेतृत्व क्षमता विकास कार्यक्रम के माध्यम से स्वैच्छिकता को संस्थागत रूप प्रदान करने और गांव-गांव में विकास के लिए परिवर्तन दूतों के निर्माण में इस कार्यक्रम के प्रभाव का प्रस्तुतिकरण किया। उन्होनें कहा कि भूमिहीन खेतिहर मजदूरों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए एक दीर्घकालीन नीति आवश्यक है।
तीसरे तकनीकी सत्र की अध्यक्षता हिमाचल प्रदेश से पधारे प्रो. चमनलाल बग्गा ने की। संगोष्ठी में विभिन्न विद्वानों ने अपने शोध पत्रों के निष्कर्ष प्रस्तुत किये। प्रतिभागियों का अभिमत था कि खेतिहर श्रमिकों को उनका हक मिलना चाहिए जिससे कृषि उत्पादन को और अधिक बल मिलेगा तथा शहरों की ओर पलायन कम होगा। विद्वानों का मत था कि खेतिहर श्रमिको के लिए पृथक से श्रेणी और सामाजिक आर्थिक सुरक्षा हेतु पृथक से प्रावधान होने चाहिए। महिला खेतिहर श्रमिकों की दशाओं पर भी विस्तार से चिंतन मनन हुआ।
समापन सत्र में प्रतिभागियों को शोध पत्र प्रस्तुति एवं सहभागिता पर प्रमाण पत्र प्रदान किया गया। संगोष्ठी का संयोजन ग्रामीण प्रबंधन संकाय के अधिष्ठाता और सी.एम.सी.एल.डी.पी. के निदेशक प्रो. अमरजीत सिंह ने किया। विविध सत्रों का संचालन एवं समन्वयन प्रो. वीरेन्द्र कुमार व्यास द्वारा किया गया।
प्रातः कालीन सत्र में भूमिहीन श्रमिकों से प्रत्यक्ष संवाद की अध्यक्षता ग्राम विकास के पूर्व राष्ट्रीय संयोजक दिनेश कुमार ने की। संगोष्ठी के इस सत्र में चित्रकूट क्षेत्र के आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों से आये 50 से अधिक खेतिहर मजदूरों ने अपने जीवन के विविध पहलुओं पर प्रकाश डाला। भूमिहीन श्रमिकों से संवाद में पूरे वर्ष रोजगार का न होना, आर्थिक स्थिति के कारण पलायन, खेतिहर मजदूरों को केन्द्र में रखकर जन-कल्याणकारी योजनाओं का अभाव एवं सामाजिक उपेक्षा की बातें प्रमुख रूप से उभर कर आयीं। खेतिहर श्रमिकों ने अपने क्षेत्र में पानी की समस्या को सबसे बड़ी समस्या माना। महिला खेतिहर श्रमिकों ने भी अपनी समस्याओं को विस्तारपूर्वक रखा। सभी ने एक स्वर से कहा कि वे इस जीवन में बेहतरी की अपेक्षा रखते हैं पर अपनी स्थिति से संतुष्ट है। खेतिहर श्रमिकों ने खेती को लाभ का धंधा माना बातचीत से स्पष्ट हुआ कि इस वर्ग में लिंग भेद नहीं है और मिलजुल कर जीवन यापन करने की प्रवृत्ति अभी भी बनी हुई है।

जावेद मोहम्मद विशेष संवाददाता भारत विमर्श चित्रकूट मध्य प्रदेश

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