सोनिया और राहुल के बीच धुरी हैं अहमद पटेल
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फैजुर रहमान
सोनिया ने अध्यक्ष बनने के बाद अहमद पटेल को अपना राजनीतिक सलाहकार नियुक्त किया। गांधी परिवार से पटेल की करीबी से कोई इनकार नहीं कर सकता मगर उन्होंने कभी व्यक्तिगत फायदे के लिए इस स्थिति का इस्तेमाल नहीं किया.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का कोषाध्यक्ष अहमद पटेल को बनाया गया, वो इस पद पर दूसरी बार नियुक्त हुए है. इससे पहले वह 1996 से 2000 तक इस पद पर रह चुके है.अहमद पटेल 1977 में महज 30 साल की उम्र में पहली बार सांसद बने थे.ये वो दौर था जब लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का लगभग सफाया हो गया था लेकिन गुजरात ने कुछ हद तक पार्टी की इज्जत बचा ली थी. उस वक़त अहमद पटेल अपने गृह जिले भरूच से जीतकर आए थे.
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए लोकसभा चुनाव में राजीव गांधी 400 से अधिक सीटों के साथ सत्ता में आए, तब तक पटेल राजीव के काफी करीबी बन चुके थे. 1986 में राजीव ने पार्टी के अंदर भारी फेरबदल करते हुए पुराने नेताओ की छुट्टी कर उनके जगह पर युवा नेताओ को लाना शुरू किया और पटेल को राज्य इकाई का अध्यक्ष बनाकर वापस गुजरात भेजा गया. मगर राजीव के हत्या के बाद अधिकांश कोंग्रेसी पीवी नरसिंह राव के पाले में चले गए. तब हुए लोकसभा चुनाव में पटेल हार गए. तबतक राजीव युग खत्म हो चुका था इसका ख़ामियाजा उन्हें गुजरात कांग्रेस के अध्यक्ष पद से भी हाथ धोना पड़ा. इस वक़्त इनका राजनितिक संरक्षक कोई नहीं था. कांग्रेस उस वक़्त दो धुरी पर चल रही थी एक राव जो काफी मजबूत था दूसरा गाँधी परिवार मतलब सोनिया गाँधी. पटेल हमेशा से गाँधी परिवार के करीबी माने गए. जिसका दंश कांग्रेसी प्रधानमंत्री राव के कार्यकाल में झेलना पड़ा.
अहमद पटेल को जवाहर भवन ट्रस्ट का सचिव बनाया गया, जिसकी शुरुआत राजीव गाँधी ने कांग्रेस के थिंक टैंक के रूप में की थी लेकिन उनकी हत्या के कुछ साल बाद सोनिया गांधी ने ईमानदारी से इसे आगे बढ़ाया. जवाहर भवन परिसर में स्थित राजीव गांधी फाउंडेशन को तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने अपने पहले ही बजट में 20 करोड़ रुपये आवंटित किए लेकिन सोनिया ने इसे लेने से इनकार कर दिया.उस वक़्त अहमद पटेल ने दिनरात एक करके इस फाउंडेशन के लिए पैसे जुटाए और इस प्रोजेक्ट को पूरा कराया था. इस फॉउण्डेशन के माध्यम से ही पटेल और सोनिया के बीच घनिष्ठा बढ़ गयी और पटेल सोनिया के विस्वास पात्रों में से एक हो गए..
वर्ष 1996 से 2000 तक का समय कांग्रेस में अस्थिरता का दौर रहा. नरसिंह राव के राजनीतिक सलाहकार रहे जितेंद्र प्रसाद ने 1999 में पार्टी अध्यक्ष पद के लिए सोनिया को चुनौती भी दी. सोनिया ने अध्यक्ष बनने के बाद अहमद पटेल को अपना राजनीतिक सलाहकार नियुक्त किया। गांधी परिवार से पटेल की करीबी से कोई इनकार नहीं कर सकता मगर उन्होंने कभी व्यक्तिगत फायदे के लिए इस स्थिति का इस्तेमाल नहीं किया.
राहुल पार्टी के अध्यक्ष बनने के बाद यह माना जा रहा था कि संगठन में फेरबदल होंगे. राहुल ने भी धीरे-धीरे पार्टी का पुनर्गठन करना शुरू कर दिया है. जनार्दन द्विवेदी जैसे वरिष्ठ नेताओं को संघठन में जगह नहीं दी गयी है. मगर अहमद पटेल की कुर्सी बरकरार है. अहमद पटेल राहुल और सोनिया के बीच एक धुरी की तरह है और धुरी की महत्ता को समझा ही जा सकता है.