April 19, 2024

अटल जी स्मृतियों में हमेशा जीवित रहेंगे

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– मो. कायम अहमद

अटल जी की शख्सियत की चर्चा कहां से शुरू की जाए उसका कोई एक सिरा ढूढ़ने से भी नहीं मिलता। एक कवि, पत्रकार और राजनेता यह सारी दुनिया जानती है। इनके अतिरिक्त उनकी वाक्पटुता, प्रकृति प्रेम, खाने का शौकीन होना भी उन्हें विशिष्ट बनाता था। अटल जी अक्सर छुटियों में मनाली निकल जाते थे। यहां तक कि प्रधानमंत्री पद पर आसीन होने के बावजूद उन्होंने हिमाचल प्रदेश की वादियों में पूरा हफ्ता बिताया था। यहीं से वो अपना काम भी कर रहे थे। अटल जी विचारों के धनी थे, उन्हें जब भी राजनीति में अकेलेपन का अहसास होता या उनके विचारों से भिन्न अगर कोई बात होती तो वो अपनी व्यथा अपने कलम से बांध लेते और उसे कविता की शक्ल दे देते थे। अटल जी सिद्धांतवादी नेताओं की आखिरी फेहरिस्त के नेता माने जाते हैं, जिन्होंने सत्ता सुख को कभी तरजीह नहीं दिया। अटल जी एक पत्रकार होने के नाते पत्रकारों के मर्म को समझते थे, पुराने वरिष्ठ पत्रकारों को उनका सान्निध्य प्राप्त हुआ था। आज भी जब वे अटल जी को याद करते हैं तो उनके सामने एक देशहित को सर्वोपरि स्थान देने वाले नेता की छवि उभर आती है। अपने पचास वर्षों के राजनीतिक जीवन में अटल जी ने ज्यादा वक्त एक विपक्ष के नेता की भूमिका के रूप में निभाई मगर उन्होंने आरोप-प्रत्यारोप या द्वेष पूर्ण राजनीति को अपने विचारों में कभी स्थान नहीं दिया। तीन बार के अपने प्रधानमंत्री कार्यकाल में उन्हें जब भी समझौता कर सत्ता में जगह बनाने का मौका मिला उन्होंने अपने विचारों से समझौता न कर विपक्ष की कुर्सी पर आसीन होना स्वीकार किया। शायद इसलिए अटल जी विपक्ष के भी प्यारे नेता के रूप में प्रसिद्ध थे। 1999 में प्रधानमंत्री पद पर आसीन होने के बाद उन्होंने एक ऐसे गठबंधन से देश चलाया जिसकी परिकल्पना आज की राजनीति में असंभव लगती है। उनकी पार्टी की विचारधारा से भिन्न होने के बाद भी कई पार्टियों ने उन्हें अपना समर्थन दिया। यह एक पार्टी की नहीं वरन् उस नेता के विचारों की जीत है जिसने अपनी पार्टी को उस स्तर तक पहुंचाया।
अटल बिहारी वाजपेयी देशहित से परिपूर्ण एक राजनीतिक विचार थे। उन्होंने राजधर्म का राह अपनाया और अपनी पार्टी को संघर्ष से सत्ता तक ले गए। उन पर सही आदमी गलत पार्टी की भी बात कही गई। लेकिन अटल जी अपने विचारों पर अटल रहे और अपनी पार्टी लाइन पर रहकर ही अपने पार्टी नेताओं के लिए और संघ के अंदर भी यह साफ संदेश दिया कि उनकी सोच देशहित वाली है। और वे इस पर हमेशा कायम भी रहेंगे। उन्होंने इसका निर्वाह भी किया और देश में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार को पांच सालों तक चलाया।
एक प्रधानमंत्री के तौर पर उनके जीवन में भी कई सफल और असफल दौर भी आये। उन्होंने अपने प्रधानमंत्री कार्याकाल में पाकिस्तान की तरफ शांतिदूत बनकर दोस्ती का हाथ बढ़ाया और यादगार बस यात्रा की। हमें बदले में जब पाकिस्तान ने कारगिल युद्ध जैसा घाव दिया तो अटल जी ने अपने कुशल नेतृत्व की बदौलत कारगिल युद्ध को जीतकर भारत का झंडा ऊंचा करवाया। पोखरण में परमाणु प्रयोग ने भी उनके विश्वास और साहस को दिखाया। उन्होंने लोकसभा में अपने अभिभाषण में इस बात का जिक्र किया कि हमें परमाणु शक्ति की आवश्यकता थी और यह भारत की शांति का ही नहीं बल्कि शक्ति का भी परिचायक बनेगा। यह एक ऐसा वाकया भी था, जिसे एक शालीनता से परिपूर्ण और शांति का दूत माने जाने वाले नेता ने अंजाम दिया था। अटल जी पर विवादों का साया भी रहा है, जिसमें बाबरी मस्जिद गिरने से पूर्व का बयान और प्रधानमंत्री बनने के बाद गुजरात दंगे के बाद एक प्रधानमंत्री के तौर पर एक्शन न लेने का आरोप शामिल है। उन्होंने बाबरी मस्जिद गिरने से पूर्व के बयान पर बाद में अपनी प्रतिक्रया यह कहकर दी थी कि बयान के बाद बाबरी विध्वंस होगा उन्हें कतई इसका अंदाजा नहीं था, और यह एक दुखद घटना है, ऐसा नहीं होना चाहिए था, इससे राष्ट्र विखंडित होगा, वैमनस्य फैलेगा और लोकतंत्र खतरे में होगा। हालांकि यह साफ देखा भी गया था कि उन्होंने उस पूरे आंदोलन से पूर्व में ही अपनी दूरी बना ली थी। एक प्रधानमंत्री के तौर पर उनपर गुजरात दंगे के बाद वहां कार्रवाई की उम्मीद की गई थी पर उन्होंने वहां जाकर सिर्फ राजनीति में राजधर्म के पालन की बात कही थी। मगर इस संबंध में भी पूरा देश जानता है कि अटल जी को अपने विचारों से भिन्न जाकर उस वक्त पार्टी लाइन पर चलते हुए एक समझौतावादी नेता की भूमिका निभानी पड़ी थी। बावजूद इसके उन्होंने शांति का पैगाम दिया, सभी पार्टियों और देश को शांतिपूर्ण बनाने का वादा कर अपना कार्यकाल पूरा किया। अटल जी के कार्यकाल में कांधार प्लेन हाईजेक की घटना भी हुई पर अटल जी ने उसे सर्व पार्टी सहमति से हल किया। उन्होंने देश के नागरिकों की जान बचाने के लिए साहसिक फैसला लेते हुए पाक आतंकी मसूद अजहर को छोड़ने का फैसला किया और नागरिकों की जान बचाई।
अटल जी ने अपने जीवन में भारत को आजाद होते हुए देखने के साथ-साथ भारत के लोकतंत्र को खड़े होते भी देखा था। उन्होंने अपने पूरे कार्यकाल में देशहित को महत्व दिया। एक दौर तो ऐसा भी आया जहां दक्षिणपंथ कही जाने वाली पार्टी में वे अकेले गांधीवादी समाजवाद की विचारधारा को लेकर व्यक्ति से व्यक्ति और देश को जोड़ते चले गए। अटल बिहारी वाजपेयी की खामियां उनकी उपलब्धियों के आगे छोटी नजर आती है। अटल जी ने अपने व्यक्तित्व से ऊपर देश और लोकतंत्र को बड़ा माना। उन्होंने लोकसभा में कहा भी कि पार्टियां आयेंगी, जायेंगी, मगर इस देश का लोकतंत्र जीवित रहना चाहिए।
आज जब अटल जी हमारे बीच नहीं रहे हैं। यह देश उनकी कमी को महसूस कर रहा है, क्योंकि देश को एकसूत्र में पिरोने वाला नेता अब हमारे बीच नहीं रहा। भाजपा को अटल जी की स्मृतियों को यादगार बनाने के लिए जो करना पड़े वो करें, पर उनकी राजनीतिक नैतिकता, राष्ट्रहित सोच और समभाव को नीति का पालन कर उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करना चाहिए। तभी अटल जी हमारे बीच न रहकर भी उनकी मौजूदगी बनी रहेगी। देश उनकी राजनीति, उनकी कविता और उनकी समभाव, सहयोग और राष्ट्रनिर्माण की सोच को याद करता रहेगा और अटल जी हमेशा स्मृतियों में जीवित रहेंगे।

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