May 6, 2024

यूसीसी पर हो रहे विवादों पर पूरे देश मे किया गया सर्वे

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दिल्ली- समान नागरिक संहिता यानी यूसीसी को लेकर पूरे देश में चर्चा हो रही है। इस पर हो रहे विवादों पर लोगों की राय को देश के सामने लाने के लिए भारत में सबसे बड़ा यूसीसी सर्वे किया है, जिसके नतीजे अब सामने आ गए हैं। सबसे बड़े यूसीसी सर्वे के सैंपल को देश के 25 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से जुटाया गया है। इसमें 8,035 मुस्लिम महिलाओं से बात की गई। इस सर्वेक्षण में पूछे गए 7 प्रमुख सवालों में यूसीसी का कोई उल्लेख नहीं था। ये सवाल उन विषयों तक ही सीमित थे जिन्हें यूसीसी द्वारा कवर किए जाने की संभावना है। समान नागरिक संहिता का मतलब एक ऐसा कानून है जो विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, गोद लेने, भरण-पोषण जैसे मामलों में सभी धार्मिक समुदायों पर एक समान लागू होगा।

सर्वेक्षण की प्रक्रिया

यूसीसी पर देश का यह सबसे बड़ा सर्वे कैसे किया गया? किन मानकों पर ये सर्वे किया गया? किन वर्गों और किस उम्र के लोगों के बीच ये सर्वे किया गया। हमने जिन मुस्लिम महिलाओं के बीच ये सर्वे किया उनकी वैवाहिक स्थिति, शैक्षणिक योग्यता… जैसी बारीक से बारीक बातों का ध्यान रखा। अलग-अलग वर्गों की मुस्लिम महिलाओं ने सर्वे के सवालों में क्या जवाब दिए उनका विवरण भी नीचे दिया गया है।

यह एक ऑन-ग्राउंड सर्वेक्षण था, जिसमें 884 संवाददाताओं ने 4 से 8 जुलाई के बीच सभी प्रमुख भारतीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से व्यक्तिगत प्रतिक्रियाएं इकट्ठा कीं। यह सर्वे किसी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर नहीं किया गया था, बल्कि हर प्रतिभागी तक एक रिपोर्टर पहुंचा था। ऑन-ग्राउंड रिपोर्टर्स को उपलब्ध कराए गए एक सुरक्षित मोबाइल इंटरफेस के माध्यम से वास्तविक समय में 16 प्रश्नों के जवाब एकत्र करने के लिए एक पेशेवर लाइसेंस प्राप्त सर्वेक्षण सॉफ्टवेयर का उपयोग किया गया। प्रतिक्रियाओं की गोपनीयता बनाए रखने के लिए प्रतिभागियों के लिए अपने नामों का खुलासा करना वैकल्पिक था। 90% ने अपने नाम बताए, परन्तु किसी भी प्रतिभागी के नाम या पहचान का खुलासा नहीं किया जाएगा, ताकि उनकी गोपनीयता बनी रहे। प्रतिक्रियाओं की अधिक सटीकता सुनिश्चित करने के लिए, प्रत्येक सर्वेक्षक ने औसतन केवल नौ मुस्लिम महिलाओं का साक्षात्कार लिया।

मुस्लिम महिलाएं ही क्यों?

अगर यूसीसी लागू होता है तो इसका मतलब यह होगा कि शादी, तलाक, उत्तराधिकार, गोद लेने, गुजारा भत्ता जैसे मुद्दों के मामले में सभी धर्मों के लोगों पर एक समान कानून लागू होगा। हाल ही में केंद्र सरकार ने घोषणा की है कि विधि आयोग इस मसले पर नए तरीके से सलाह-मशविरा करेगा, इस पर मुस्लिम संगठनों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने कहा है कि इस कानून के नाम पर धार्मिक आजादी और अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों पर ‘बहुसंख्यक नैतिकता’ हावी नहीं होनी चाहिए। न्यूज18 नेटवर्क ने यह परखने के लिए सर्वे किया कि AIMPLB की राय से वृहद मुस्लिम समुदाय खासकर महिलाएं जो इस कानून से सबसे ज्यादा प्रभावित होंगी, क्या वे भी ऐसी ही राय रखती हैं?

  1. सर्वेक्षण के 7 अहम नतीजे
  • सर्वेक्षण में शामिल सभी मुस्लिम महिलाओं में से 67.2% इस बात से सहमत थीं कि शादी, तलाक, गोद लेने और उत्तराधिकार जैसे व्यक्तिगत मामलों के लिए सभी भारतीयों के लिए एक समान कानून होना चाहिए।
  • सभी मुस्लिम महिलाओं में से 76.5% (स्नातक+ 78.6%) बहुविवाह के खिलाफ दिखीं और कहती हैं कि मुस्लिम पुरुषों को चार महिलाओं से शादी करने का अधिकार नहीं होना चाहिए।
  • संपत्ति में बराबरी के उत्तराधिकार के सवाल पर सबसे ज्यादा 82.3% मुस्लिम महिलाएं इसके समर्थन में दिखीं। वहीं 85.7% ग्रैजुएट महिलाओं ने इसका समर्थन किया।
  • सभी उत्तरदाताओं में से 73.7% महिलाएं इस बात से सहमत दिखीं कि तलाकशुदा जोड़ों को बिना किसी प्रतिबंध के दोबारा शादी की अनुमति दी जानी चाहिए।
  • गोद लेने के सवाल पर ज्यादातर मुस्लिम महिलाएं सहमत दिखीं, लेकिन धर्म की परवाह किए बगैर गोद लेने की अनुमति दिए जाने के सवाल पर सहमत महिलाओं की संख्या अन्य प्रश्नों की तुलना में बहुत कम थी। (कुल मिलाकर: 64.9%; स्नातक+ : 69.5%)
  • सभी उत्तरदाताओं में से 69.3% (73.1% स्नातक+) इस बात से सहमत दिखीं कि सभी बालिग भारतीयों को अपनी संपत्ति का मर्जी से वसीयत करने का हक होना चाहिए।
  • पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए विवाह की न्यूनतम उम्र बढ़ाकर 21 करने के सवाल पर बहुत अधिक समर्थन दिखा। सभी मुस्लिम महिलाओं में से 78.7% ने न्यूनतम आयु बढ़ाने का समर्थन किया, वहीं 82.4% स्नातक महिलाएं इस पर सहमत दिखीं।

2. सर्वेक्षण में पूछे गए 7 सवाल

  • क्या आप विवाह, तलाक, गोद लेने और उत्तराधिकार जैसे व्यक्तिगत मामलों के लिए सभी भारतीयों के लिए एक समान कानून का समर्थन करती हैं?
  • क्या आपको लगता है कि मुस्लिम पुरुषों को चार महिलाओं से शादी करने का अधिकार होना चाहिए?
  • क्या सभी पुरुषों और सभी महिलाओं को संपत्ति और उत्तराधिकार का समान अधिकार होना चाहिए?
  • क्या तलाकशुदा जोड़ों को बिना किसी प्रतिबंध के पुनर्विवाह करने की अनुमति दी जानी चाहिए?
  • क्या धर्म की परवाह किए बिना गोद लेने की अनुमति दी जानी चाहिए?
  • क्या सभी भारतीय, जो बालिग हो चुके हैं, उन्हें अपनी संपत्ति के लिए वसीयत का अधिकार होना चाहिए?
  • क्या आप सभी पुरुषों और महिलाओं के लिए शादी की कानूनी उम्र के रूप में 21 साल का समर्थन करती हैं?

विभिन्न क्षेत्रों की 8 हजार से अधिक महिलाएं शामिल

सर्वेक्षण में शामिल होकर 8,035 मुस्लिम महिलाओं ने सवालों के उत्तर दिए। ये महिलाएं विभिन्न क्षेत्रों, वर्गों, शैक्षिक और वैवाहिक स्थिति से जुड़ी थीं। सर्वेक्षण में शामिल प्रतिभागियों में 18-65+ आयु वर्ग की महिलाएं थीं, इनमें निरक्षर से लेकर स्नातकोत्तर तक, शैक्षिक स्पेक्ट्रम में व्यापक प्रतिनिधित्व था।

सर्वेक्षण में शामिल हुए ये राज्य

सर्वेक्षण में आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, चंडीगढ़, छत्तीसगढ़, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, झारखंड, कर्नाटक, केरल, लद्दाख, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, पुडुचेरी, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल राज्यों को शामिल किया गया। सर्वेक्षण के प्रतिभागियों की भाषा असमी, बंगाली, बोडो, अंग्रेजी, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मैथिली, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, तमिल, तेलुगू, उर्दू और अन्य थीं।

विभिन्न वर्ग की प्रतिभागी मुस्लिम महिलाएं

प्रतिभागियों की उम्र और उनकी भागीदारी कुछ इस प्रकार रही- 18-24 आयु वर्ग की 18.8%, 25 से 34 आयु वर्ग की 32.9%, 35 से 44 आयु वर्ग की 26.6%, 45 से 54 आयु वर्ग की 14.4%, 55 से 64 आयु वर्ग की 5.4% और 65 साल से ऊपर की महिलाओं का प्रतिशत 1.9 रहा. इन प्रतिभागियों में 70.3% शादीशुदा, 24.1% अविवाहित, 2.9% विधवा और 2.9% तलाकशुदा थीं. इन प्रतिभागियों में 73.1% सुन्नी और 13.3% शिया और 13.6% अन्य थीं। सर्वे में भाग लेने वाली महिलाओं में 10.8% पोस्ट ग्रेजुएट, 27% ग्रेजुएट, 20.8% 12वीं पास, 13.8 % 10वीं पास, 12.9% 5वीं से 10वीं के बीच पढ़ाई करने वाली, 4.4% 5वीं तक पढ़ने वालीं, 4.2 फीसदी निरक्षर, 4.2% बेसिक साक्षर और 1.9% अन्य थीं।

इस सर्वे के सवालों में समान नागरिक संहिता के विवरण का उल्लेख नहीं है। सर्वे को सिर्फ़ उन्हीं विषयों तक सीमित रखा गया, जो विषय समान नागरिक संहिता के दायरे में आ सकते हैं। इस सर्वे में मुस्लिम महिलाओं के नज़रिये से उन बातों को समझने की कोशिश की गई है, जो समान नागरिक संहिता से संबंधित हैं, ना कि समान नागरिक संहिता के प्रस्तावित बिल से संबंधित।

भारत विमर्श भोपाल म.प्र.

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