May 6, 2024
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भोपाल – बड़े पशुओं की तुलना में बकरी पालन पशुपालकों के लिए आर्थिक रूप से काफी फायदेमंद है। मध्य प्रदेश शासन द्वारा बैंक ऋण एवं अनुदान पर बकरी इकाई योजना संचालित है। इसमें हितग्राही को 10 बकरी और एक बकरा दिया जाता है। इकाई की लागत 77 हजार 456 रूपये है। सामान्य वर्ग के हितग्राही को इकाई लागत का 40 प्रतिशत और अनुसूचित जाति-जनजाति को इकाई लागत का 60 प्रतिशत अनुदान दिया जाता है।

4-5 माह में शुरू हो जाती है आमदनी
बकरी पालन मजदूर, सीमांत और लघु किसानों में काफी लोकप्रिय है। चाहे घरेलू स्तर पर 2-4 बकरी पालन हो या व्यवसायिक फार्म में दर्जनों, सैकड़ों या हजारों की तादाद में, इनकी देख-रेख और चारा पानी पर खर्च बहुत कम होता है। वैज्ञानिक तरीके से पालन करने से 4-5 माह में आमदनी शुरू हो जाती है। बकरी की प्रजाति का चुनाव स्थानीय वातावरण को ध्यान में रख कर करना चाहिए। कम बच्चे देने वाली या अधिक बच्चे देने वाली बकरियों से कमाई एक-सी ही होती है। उन्नत नस्ल की प्राप्ति के लिए बाहर से बकरा लाकर स्थानीय बकरियों के संपर्क में लाना चाहिए। आमतौर पर इसके लिए अप्रैल-मई और अक्टूबर-नवम्बर माह अनुकूल रहता है।
कैसे बनाएं बाड़ा

संभव हो तो बकरी का बाड़ा पूर्व से पश्चिम दिशा में ज्यादा फैला होना चाहिए। बाड़े की लंबाई की दीवार की ऊँचाई एक मीटर और उसके ऊपर 40X60 वर्ग फीट की जाली होना चाहिए। बाड़े का फर्श कच्चा और रेतीला होना चाहिए। रोग मुक्त रखने के लिए समय-समय पर चूने का छिड़काव करना चाहिए। जन्म के एक सप्ताह के बाद मेमने और बकरी को अलग-अलग रखना चाहिए।
कितना लगेगा चारा
एक वयस्क बकरी को उसके वजन के अनुसार रोजाना एक से तीन किलोग्राम हरा चारा, आधा से एक किलोग्राम भूसा और डेढ़ से चार सौ ग्राम दाना रोजाना खिलाना चाहिए। बकरियों को साबुत अनाज और सरसों की खली नहीं खिलाना चाहिए। दाने में 60 प्रतिशत दला हुआ अनाज, 15 प्रतिशत चोकर, 15 प्रतिशत खली, 2 प्रतिशत खनिज तत्व और एक प्रतिशत नमक होना चाहिए।
कैसे करें रोगों से बचाव
बकरियों को पीपीआर, ईटी खुरपका, गलघोंटू और चेचक के टीके जरूर लगवायें। यह टीके मेमनों को 3-4 माह की उम्र के बाद लगते हैं। साथ ही अंत:परजीवी नाशक दवाइयाँ साल में दो बार जरूर पिलायें। अधिक सर्दी, गर्मी और बरसात से बचाने के इंतजाम करें। नवजात मेमने को आधे घंटे के भीतर बकरी का पहला दूध पिलाने से उसकी रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है।

अच्छी नस्लें जो हैं फायदेमंद
भारत में तकरीबन 50 से अधिक बकरी की नस्लें मौजूद हैं। हालांकि, इन 50 नस्लों में कुछ ही बकरियों का उपयोग व्यवसायिक स्तर पर किया जाता है। ऐसे में किसानों को इस बात की जानकारी होनी बेहद जरूरी कि किस नस्ल की बकरी पालन करने से मुनाफा बढ़ जाएगा।

जमुनापारी नस्ल
जमुनापारी बकरी की नस्ल को बिजनेस के लिए बेहद उपयुक्त माना जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि ये नस्ल कम चारे में अधिक दूध देती है। इसके अलावा इस बकरी के मांस में अधिक प्रोटीन भी अधिक होता है। यही वजह है बाजार में इस नस्ल की मांग अधिक रहती है।
बीटल नस्ल
जमुनापारी नस्ल के बाद बीटल नस्ल की बकरियों का पालन सबसे अधिक किया जाता है। इस नस्ल से पशुपालक 2 से 3 लीटर दूध रोजाना निकाल सकते हैं। इसके अलावा बाजार में इसका मांस भी अच्छे कीमतों पर बिकता है।

सिरोही नस्ल
सिरोही नस्ल की बकरी को पशुपालक सबसे अधिक पालते हैं। इस नस्ल का विकास बेहद तेजी से होता है। इसके अलावा इस नस्ल के पालन में अन्य बकरियों के मुकाबले खर्च भी कम आता है।

उस्मानाबादी नस्ल
इस नस्ल को पशुपालक भाई मांस व्यवसाय के लिए पालते हैं। बकरी के दूध के लिए इस नस्ल का पालन ना करें। दूध देने की क्षमता इस बकरी में बेहद कम होती है।

बरबरी नस्ल
इस नस्ल को आप आसानी से कहीं भी पाल सकते हैं। बरबरी नस्ल की बकरी का मांस बहुत अच्छा होता है और दूध की मात्रा भी काफी अच्छी होती है।

भारत विमर्श भोपाल मध्य प्रदेश

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