नेपाल से अयोध्या तक शालिग्राम का सफर पूरा
1 min readअयोध्या – शालिग्राम शिलाएं बीती रात नेपाल के जनकपुर से अयोध्या के कारसेवकपुरम पहुंचीं. अयोध्या में बन रहे भव्य राम मंदिर के गर्भगृह में स्थापित होने वाली भगवान राम की मूर्ति इन्हीं दोनों शिलाओं पर उकेरी जाएगी, जो नेपाल की काली गंडकी नदी से मिली है. जानिए शालिग्राम शिलाओं के सफर और इनके धार्मिक महत्व के बारे में रामनगरी अयोध्या में आस्था और श्रद्धा का सबसे बड़ा मेला लगा हुआ है. यहां देव शिलाओं का सत्कार और समर्पण कार्यक्रम होगा. ये देव शिलाएं बीती रात नेपाल के जनकपुर से अयोध्या के कारसेवकपुरम पहुंची थी. इन शालिग्राम शिलाओं को नेपाल की गंडकी नदी से निकाला गया था. लंबी यात्रा के बाद बीती रात ये अयोध्या पहुंचीं.
तकनीकी विशेषज्ञों की देखरेख में चार क्रेनों की मदद से इन शिलाओं को उतारा गया. अयोध्या में आज वैदिक मंत्रोच्चार के साथ देव शिलाओं की पूजा होगी. फिर इन्हें राम मंदिर समिति को सौंप दिया जाएगा, क्योंकि अयोध्या में बन रहे राम मंदिर की पूरी जिम्मेदारी इस संगठन के पास है. इससे पहले पूजा-अर्चना के लिए शिलाओं को फूल मालाओं से सजाया गया.
नेपाल से राम नगरी तक की यात्रा में ये शिला जहां-जहां से गुजरी लोगों की भीड़ दर्शन के लिए उमड़ी. नेपाल की गंडकी नदी से निकाली गई इन दिव्य शिलाओं की जानकी मंदिर में पूजा की गई, फिर इन्हें भारत रवाना कर दिया गया. भारत-नेपाल बॉर्डर पर इनके दर्शन के लिए बड़ा हुजूम पहुंचा हुआ था।यहां हुए स्वागत सत्कार के बाद ये शालिग्राम शिलाएं बिहार के गोपालगंज पहुंची और यहीं से ये उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में दाखिल हुई. इस दौरान श्रद्धालुओं का काफिला लगातार साथ-साथ चलता रहा. श्रीराम के जयकारों की गूंज दूर तक सुनाई देती रही. कुशीनगर से ये देव शिलाएं गोरखपुर पहुंची। गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर में इनका पूजन किया गया. फिर वहां से ये शालिग्राम शिलाएं अपनी अंतिम पड़ाव यानी राम दरबार की शोभा बढ़ाने के लिए अयोध्या की तरफ निकल गईं. आज अयोध्या में सबसे पहले शिलाओं की पूजा-अर्चना विधि-विधान से की जाएगी। शिलाओं की आरती और स्वागत-सत्कार की रस्में होंगी. वैदिक मंत्रोच्चार के साथ स्वागत होगा. पवित्र जल से अभिषेक किया जाएगा. संत-महात्मा-श्रद्धालु दर्शन-पूजन करेंगे. पूजा के बाद शिलाएं मंदिर ट्रस्ट को सौंपी जाएंगी. शालिग्राम को भगवान विष्णु का स्वरूप माना जाता है. नेपाल से 2 ट्रकों से शिलाएं लाई गई हैं. एक शिला 26 टन की है, जबकि दूसरी 14 टन की.
अयोध्या में बन रहे भव्य राम मंदिर के गर्भगृह में स्थापित होने वाली भगवान राम की मूर्ति इन्हीं दोनों शिलाओं पर उकेरी जाएगी, जो नेपाल की काली गंडकी नदी से मिली है. ऐसे में शालिग्राम शिला का धार्मिक महत्व की समझ नहीं रखने वाले लोगों के मन में पिछले एक हफ्ते से एक ही सवाल है कि इसी शिला से ही रामलला की मूर्ति क्यों बनेगी? जिसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि शालिग्राम शिला को भगवान विष्णु के प्रतीक माने जाते हैं। शालिग्राम की गिनती भगवान विष्णु के 24 अवतारों के तौर पर होती है. इसी वजह से हिंदू धर्म में इस पत्थर की पूजा भगवान विष्णु के स्वरूप के तौर पर होती है. पुराणों के अनुसार शालिग्राम को भगवान विष्णु के विग्रह रूप के रूप में पूजा जाता है. ऐसी मान्यता है कि अगर शालिग्राम पत्थर गोल है तो वो नारायण का गोपाल स्वरूप है. वहीं अगर शिला मछली के आकार दिख रही है तो वो भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार है.
वहीं अगर कछुए के आकार में शालिग्राम है, तो उसे कुर्म और कच्छप अवतार का प्रतीक माना जाता है. शालिग्राम पत्थर पर दिखने वाले चक्र और रेखाएं…भगवान विष्णु के दूसरे अवतारों का प्रतीक मानी जाती हैं. यही वजह है कि पूजा के लिए इस शिला के प्राण-प्रतिष्ठा की जरूरत नहीं पड़ती है. किसी भी मंदिर के गर्भगृह में सीधे रखकर इस शिला की पूजा की जा सकती है. यही वजह है कि हिंदू धर्म में शालिग्राम पत्थर की विशेष अहमियत है। शिवलिंग की तरह ही शालिग्राम पत्थर का मिलना बेहद मुश्किल होता है. ये पत्थर हर जगह आसानी से नहीं मिलते हैं. ज्यादातर शालिग्राम पत्थर नेपाल के मुक्तिनाथ क्षेत्र में काली गंडकी नदी के तट पर ही पाए जाते हैं. ऐसे कई रंगों में पाए जाने वाले शालिग्राम का सुनहरा स्वरूप सबसे दुर्लभ माना जाता है।
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