September 20, 2024

आजाद भारत में प्रेस की गुलामी का सच…

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अनुज अवस्थी, नई दिल्ली: आज देश को आजाद हुए सात दशक से ज्यादा का समय बीत चुका है। और हम हर वर्ष आजादी का जश्न भी बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाते हैं। लेकिन क्या हमने कभी अपने आप से पूछा है कि क्या हम पूर्णतया आजाद हैं। क्या हमें किसी के भी सामने बिना डरे अपनी बात रखने का हक है। और अगर है भी तो उसकी सीमा और दायरा क्या है। विडम्बना ये है कि आजादी के 70 साल बाद भी हम भारतीय मीडिया को गुलामी के कोड़ से उबार न सके। 1947 से लेकर अब तक सरकार किसी की भी रही हो, भारत का चौथा स्तंभ कहा जाने वाला ये मीडिया लागतार गुलामी का दंश झेल रहा है। अभी कुछ दिन पहले विदाउट बॉर्डर्स नामक एक संस्था ने अपनी रिपोर्ट जारी कर भारतीय मीडिया को लेकर चिंता व्यक्त की है। ये एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है ये हर साल अलग-अलग देशों में प्रेस की आज़ादी पर रिपोर्ट और रैकिंग निकालती है।

विदाउट बॉर्डर्स की रिपोर्ट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जमकर आलोचना की गई है। रिपोर्ट के मुताबिक मोदी सरकार के शासन में प्रेस की स्वतंत्रता का हनन हुआ है। इतना ही नहीं विदाउट बॉर्डर्स ने अपने शोध में यहां तक कहा है कि जब भी कोई मीडिया हाउस या फिर पत्रकार भारतीय जनता पार्टी और हिन्दुत्व वादी ताकतों के खिलाफ कुछ भी छापता या दिखाता है। तो पीएम मोदी समर्थक और ट्रोल गाली गलोज पर उतर आते हैं या फिर सीधी जान से मारने की धमकी देते हैं। जिसके बाद प्रेस को दबाव में आकर सरकार के सामने झुकना पड़ता है, या यूं कहूं कि दरबारी होने के लिए मजबूर होना पड़ता है। भारत में लगातार प्रेस की आजादी का हनन हो रहा है।

तभी तो इस साल प्रेस फ़्रीडम के मामले में भारत की रैंकिग पिछले साल के मुकाबले दो पायदान घट गई है। मौजूदा वक्त में 180 देशों की सूची में भारत इस साल 138वे पायदान पर पहुंच गया है। यानि कि एक बात तो साफ है भारत सरकार प्रेस को अपना दरबारी बनाने में सफलता पूर्वक निरंतर आगे बड़ रहा है। ऐसी नहीं है कि भारत सरकार ने सभी मीडिया हाउस पर दबाव डालकर उनकी शक्ति और कार्य पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश की है। इसमें से कुछ एक अपने आप सरकार की शरण में गए हैं इस बात को झुठलाया नहीं जा सकता।

बहराल, दरबारी हो रहे प्रेस को समझना होगा कि कोई देश विकास की पटरी पर सरपट तभी दौड़ सकता है जब उस देश की प्रेस के पास संंपूर्ण आजादी हो। अगर सरकार के गलत कामकाजों को मीडिया ही तोड़मरोड़ कर दिखाएगा तो इससे सरकार ही नहीं बल्कि देश में भ्रष्टाचार एक बड़े विशाल रुप में उभरेगा। इसलिए सरकार पर मीडिया का दबाव बेहद ही जरुरी है। और ये दबाव हम तभी बना सकते हैं जब हम सच्चाई और ईमानदारी के पथ पर निडर होकर चलेंगे।

 

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