April 26, 2024

मल्लिकार्जुन खरगे बने कांग्रेस के नए अध्यक्ष

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नई दिल्ली – मल्लिकार्जुन खरगे को सात हजार से ज्यादा वोट मिले। थरूर को महज एक हजार से कुछ ज्यादा वोटों से संतोष करना पड़ा। अब सवाल ये है कि खरगे के अध्यक्ष बनने से कांग्रेस को कितना फायदा मिलेगा? क्या पार्टी में बदलाव हो पाएगा? क्या वाकई गांधी परिवार का एकाधिकार कांग्रेस पार्टी से खत्म हो पाएगा? आइए समझते हैं।

मल्लिकार्जुन खरगे कांग्रेस के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए हैं। 9,800 से ज्यादा कांग्रेस नेताओं ने वोट दिया था। इनमें से 7,897 वोट खरगे के पक्ष में पड़े। वहीं, उनके विरोधी शशि थरूर को एक हजार से ज्यादा वोटों से ही संतोष करना पड़ा। 416 वोट खारिज कर दिए गए। थरूर ने अपनी हार स्वीकार कर ली है। उन्होंने ट्वीट करके खरगे को जीत की बधाई दी। इसके साथ ही उन्होंने इसे पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र की जीत बताया।

नए अध्यक्ष की रेस में शुरुआत से ही मल्लिकार्जुन खरगे को आगे बताया जा रहा था। इसका बड़ा कारण ये है कि गांधी परिवार से लेकर कांग्रेस के दिग्गज नेताओं का समर्थन खरगे को मिला था। खरगे की जीत के बाद सवाल उठता है कि इससे कांग्रेस को कितना फायदा मिलेगा? क्या पार्टी में बदलाव हो पाएगा? क्या वाकई गांधी परिवार का एकाधिकार कांग्रेस पार्टी से खत्म हो पाएगा? आइए समझते हैं।
खरगे के अध्यक्ष बनने से पार्टी में क्या बदलाव होगा?
इसे समझने के लिए हमने वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद कुमार सिंह से बात की। उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। एक समय जिस पार्टी की पूरे देश में सरकार हुआ करती थी, आज वो दो राज्यों तक सिमटकर रह गई है। उनमें भी स्थिति ज्यादा बेहतर नहीं है। ऐसे वक्त राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव होना, पार्टी के लिए बड़ी बात है। हालांकि, इसके कुछ बिंदुओं पर नजर डालें तो ये बदलाव से ज्यादा विवाद की तरफ बढ़ता दिख रहा है।’
. पार्टी में फूट पड़ सकती है: पार्टी में कई नेता बदलाव चाहते हैं। खरगे के ऊपर कांग्रेस हाईकमान का हाथ बताया जा रहा है, जबकि थरूर अकेले पड़ गए हैं। ऐसे में पार्टी के अंदर बदलाव चाहने वाले नेता चुनाव बाद बगावती रुख अख्तियार कर सकते हैं। थरूर को युवा कांग्रेसी ज्यादा पसंद करते हैं। केरल व दक्षिण के अन्य राज्यों में भी उनकी अच्छा दखल है। पार्टी में फूट का कांग्रेस को इन राज्यों में नुकसान हो सकता है। मतगणना के दौरान भी यह दिखाई दिया। जब थरूर गुट की ओर से सैफुद्दीन सोज ने धांधली का आरोप लगाया। सोज ने उत्तर प्रदेश से पड़े सभी वोटों को अवैध करार देने की मांग की। वहीं, खरगे की जीत के बाद उत्तर प्रदेश से आने वाले राज्यसभा सांसद प्रमोद तिवारी ने कहा कि हारने वाले को हार का बहाना बनाते हैं।

खरगे से ज्यादा गांधी परिवार को ही महत्व मिलेगा: प्रमोद सिंह कहते हैं, ‘2004 से 2014 तक कांग्रेस सत्ता में रही है। तब भी यही देखने को मिला है। भले ही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह थे, लेकिन हर बड़ा फैसला गांधी परिवार की मंजूरी से ही होता था। एक बार तो मनमोहन सरकार की तरफ से पास किए गए अध्यादेश को राहुल गांधी ने भरी संसद में फाड़ दिया था। मतलब साफ है, भले ही अध्यक्ष पद पर मल्लिकार्जुन खरगे बैठैं, लेकिन सारे बड़े फैसले गांधी परिवार की मंजूरी से ही होंगे। अगर ऐसा होता है, तो आने वाले समय में कुछ खास बदलाव देखने को नहीं मिलेगा। इसके उलट शशि थरूर बेबाकी से अपनी बात रखते हैं। उन्होंने अध्यक्ष पद के लिए अपना विजन भी बताया है। वह गांधी परिवार से हटकर भी फैसले ले सकते हैं। मतलब अगर थरूर अध्यक्ष बनते हैं तो जरूर पार्टी में कुछ बड़े बदलाव देखे जा सकते हैं।
एजेंडा साफ नहीं: कहा जाता है कि खरगे वही करते थे, जो उन्हें कहा जाता था। अभी अध्यक्ष पद के लिए भी उनका नामांकन बहुत जल्दबाजी में हुआ। पहले गांधी परिवार राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को अध्यक्ष पद के लिए आगे कर रही थी, लेकिन राजस्थान में सियासी ड्रामे के बाद खरगे का नाम लाना पड़ा। अध्यक्ष पद को लेकर खरगे का एजेंडा भी साफ नहीं है। ऐसी स्थिति में अगर वह अध्यक्ष बनते हैं तो भी कोई खास बदलाव हो, इसकी संभावना बहुत कम है।
अब मल्लिकार्जुन खरगे के बारे में जान लीजिए
खरगे का जन्म कर्नाटक के बीदर जिले के वारावत्ती इलाके में एक किसान परिवार में हुआ था। गुलबर्गा के नूतन विद्यालय से उन्होंने स्कूली शिक्षा पूरी की और फिर यहां सरकारी कॉलेज से स्नातक की डिग्री ली। यहां वह स्टूडेंट यूनियन के महासचिव भी रहे। गुलबर्गा के ही सेठ शंकरलाल लाहोटी लॉ कॉलेज से एलएलबी करने के बाद वकालत करने लगे। 1969 में वह एमकेएस मील्स कर्मचारी संघ के विधिक सलाहकार बन गए। तब उन्होंने मजदूरों के लिए लड़ाई लड़ी। वह संयुक्त मजदूर संघ के प्रभावशाली नेता रहे
1969 में ही वह कांग्रेस में शामिल हो गए। पार्टी ने उनकी लोकप्रियता को देखते हुए उन्हें गुलबर्गा कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बना दिया। 1972 में पहली बार कर्नाटक की गुरमीतकल विधानसभा सीट से विधायक बने। खरगे गुरमीतकल सीट से नौ बार विधायक चुने गए। इस दौरान उन्होंने विभिन्न विभागों में मंत्री का पद भी संभाला। 2005 में उन्हें कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया। 2008 तक वह इस पद पर बने रहे। 2009 में पहली बार सांसद चुने गए।

खरगे गांधी परिवार के भरोसेमंद माने जाते हैं। इसका समय-समय पर उनको इनाम भी मिला। साल 2014 में खरगे को लोकसभा में पार्टी का नेता बनाया गया। लोकसभा चुनाव 2019 में हार के बाद कांग्रेस ने उन्हें 2020 में राज्यसभा भेज दिया। पिछले साल गुलाम नबी आजाद का कार्यकाल खत्म हुआ तो खरगे को राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष बना दिया गया।

भारत विमर्श भोपाल मध्य प्रदेश

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