नोटबंदी पर याचिका, नीतिगत न्यायिक समीक्षा पर लक्ष्मण रेखा से अवगत
1 min readनई दिल्ली – इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के कुछ प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक बैच का जवाब देने के लिए केंद्र को दो और सप्ताह का समय दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि वह सरकार के नीतिगत फैसलों की न्यायिक समीक्षा पर लक्ष्मण रेखा से अवगत है, लेकिन यह तय करने के लिए 2016 के विमुद्रीकरण के फैसले की जांच करनी होगी कि क्या यह मुद्दा केवल अकादमिक अभ्यास बन गया है। पांच जजों की एस ए नजीर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि जब संविधान पीठ के समक्ष कोई मुद्दा उठता है, तो जवाब देना उसका कर्तव्य है।अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि ने कहा कि जब तक विमुद्रीकरण अधिनियम को उचित परिप्रेक्ष्य में चुनौती नहीं दी जाती है, तब तक यह मुद्दा अनिवार्य रूप से अकादमिक रहेगा।
अगली सुनवाई नौ नवंबर को होगी
नोटबंदी की संवैधानिक वैधता को लेकर दाखिल की गई याचिका पर कोर्ट ने केंद्र सरकार और आरबीआई से विस्तृत हलफनामा दाखिल करने को कहा। दोनों ने कोर्ट हलफनामे के लिए समय मांगा। मामले में अगली सुनवाई नौ नवंबर को होगी।
उच्च मूल्य बैंक नोट (विमुद्रीकरण) अधिनियम 1978 जनहित में कुछ उच्च मूल्य के बैंक नोटों के विमुद्रीकरण के लिए पारित किया गया था ताकि अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदायक धन के अवैध हस्तांतरण की जांच की जा सके, जो इस तरह के नोटों की सुविधा प्रदान करते हैं। शीर्ष अदालत ने कहा कि यह घोषित करने के लिए कि अभ्यास अकादमिक है या निष्फल है, मामले की जांच करनी होगी क्योंकि दोनों पक्ष सहमत नहीं हैं।
जिस तरह से किया गया, उसकी जांच जरूरी
अदालत ने कहा कि इस मुद्दे पर जवाब देने के लिए हमें इसे सुनना होगा और जवाब देना होगा कि क्या यह अकादमिक है, अकादमिक नहीं है या न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर है। इस मामले में सरकार की नीति और उसकी सोच है जो इस मामले का एक पहलू है। लक्ष्मण रेखा कहां है, यह हम हमेशा से जानते हैं, लेकिन जिस तरह से यह किया गया, उसकी जांच होनी चाहिए। हमें यह तय करने के लिए वकील को सुनना होगा।
केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अकादमिक मुद्दों पर अदालत का समय बर्बाद नहीं करना चाहिए। मेहता की दलील पर आपत्ति जताते हुए याचिकाकर्ता विवेक नारायण शर्मा का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने कहा कि वह संवैधानिक पीठ के समय की बर्बादी जैसे शब्दों से हैरान हैं क्योंकि पिछली पीठ ने कहा था कि इन मामलों को एक संविधान पीठ के समक्ष रखा जाना चाहिए। एक पक्ष की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता पी चिदंबरम ने कहा कि यह मुद्दा अकादमिक नहीं है और इसका फैसला शीर्ष अदालत को करना है। उन्होंने कहा कि इस तरह के विमुद्रीकरण के लिए संसद के एक अलग अधिनियम की आवश्यकता है।
पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 पर मांगा केंद्र से जवाब
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कहा कि 2019 में अयोध्या मामले में दिया गया सुप्रीम कोर्ट का फैसला उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की वैधता से संबंधित नहीं है। उनका यह जवाब भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) यूयू ललित, जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस एस रवींद्र भट की पीठ द्वारा अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई के दौरान एक प्रश्न पर आया। पीठ ने मेहता से पूछा, क्या 1991 का कानून अयोध्या फैसले में शामिल है? आपका निजी विचार क्या है। जवाब में मेहता ने कहा, यह उसमें शामिल नहीं है।
पीठ का यह सवाल तब आया जब याचिकाकर्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की ओर से वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने दलील दी कि अयोध्या के फैसले में शीर्ष अदालत की टिप्पणी गैर प्रासंगिक थी क्योंकि 1991 के कानून की वैधता पर बहस आगे नहीं बढ़ी थी। द्विवेदी ने कहा कि 1991 का अधिनियम संसद में बहुत अधिक चर्चा के बिना पारित किया गया था और यहां चुनौती में शामिल मुद्दे महत्वपूर्ण राष्ट्रीय महत्व के प्रश्नों से संबंधित हैं और अदालत द्वारा तय किये जाने चाहिए। पीठ ने मामले का परीक्षण करने के लिए द्विवेदी और वरिष्ठ वकील अमन सिन्हा सहित एक याचिकाकर्ता की ओर से तैयार प्रश्नों को रिकॉर्ड पर रखा।
अदालत ने मेहता से यह भी पूछा कि केंद्र को याचिकाओं पर जवाब दाखिल करने में कितना समय लगेगा। इस पर उन्होंने कहा कि मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए दो हफ्ते और चाहिए। जमीयत उलमा-ए-हिंद और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने बाद में इस मामले में हस्तक्षेप की अनुमति मांगी थी। सुनवाई में जमीयत उलमा-ए-हिंद की ओर से पेश वकील वृंदा ग्रोवर ने कहा कि मामले में उनकी प्रतिक्रिया केंद्र सरकार के रुख पर निर्भर करेगी। कोर्ट ने सभी याचिकाओं पर नोटिस जारी कर केंद्र को 31 अक्तूबर तक जवाब दाखिल करने का समय दिया। अगली सुनवाई 14 नवंबर को होगी। उपासना स्थल अधिनियम में कहा गया है कि सभी धार्मिक स्थलों के चरित्र को वैसे ही बनाए रखा जाना चाहिए जैसा 15 अगस्त, 1947 को था।
आपराधिक मामलों में फिर से जांच का आदेश दे सकता है हाईकोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आरोपपत्र दाखिल होने के बाद और ट्रायल कोर्ट के इस तरह की जांच का आदेश देने में विफल रहने पर भी हाईकोर्ट किसी आपराधिक मामले में आगे की जांच या फिर से जांच का आदेश दे सकता है ताकि न्याय सुनिश्चित किया जा सके। जस्टिस दिनेश महेश्वरी और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ एक कानूनी सवाल से निपट रही थी कि क्या हाईकोर्ट ने अपनी अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग करते हुए एक मजिस्ट्रेट को आगे की जांच का आदेश देने का निर्देश देना उचित था, जबकि निचली अदालत ने आपराधिक मामले में चार्जशीट दाखिल करने के बाद ऐसी प्रक्रिया नहीं अपनाई थी।
आत्महत्या के लिए उकसाने में आरोपी के खिलाफ सबूत होना चाहिए
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि आरोपी को दोषी ठहराने के लिए आत्महत्या के लिए उकसाने के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष कृत्यों और आरोपी के खिलाफ उत्पीड़न के सबूत होने चाहिए। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने चेन्नई के एक डॉक्टर और उसकी मां को बरी कर दिया। आरोपी की पत्नी ने आत्महत्या का कदम उठाया था। न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने मामले के तथ्यों पर विचार करने के बाद कहा कि हमारा विचार है कि निचली अदालत द्वारा अपीलकर्ताओं और उच्च न्यायालय को भी धारा 306 और 498 ए आईपीसी के तहत इनकी सजा को बरकरार रखना उचित नहीं था।
कॉरपोरेट धोखाधड़ी की जांच कर रहे खोजी पत्रकार की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि हलफनामे की एक प्रति अटॉर्नी जनरल के कार्यालय को भेजी जाए ताकि कॉरपोरेट धोखाधड़ी की जांच कर रहे खोजी पत्रकार की सुरक्षा के लिए कदम उठाए जा सकें। पत्रकार ने सीलबंद लिफाफे में एक हलफनामा सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पेश किया जिसमें उन्होंने हमला किए जाने का दावा किया है। मामला चीफ जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पीठ के सामने उस समय उठा जब पीठ एक कंपनी से संबंधित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इस कंपनी पर कथित तौर पर 27 बैंकों से कर्ज लेने और इस पैसे का गबन करने का आरोप है। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील जय अनंत देहद्राई ने सीलबंद लिफाफे में हलफनामा पेश किया। उन्होंने कहा कि कॉरपोरेट धोखाधड़ी की पड़ताल कर रहे पत्रकार को धमकियां मिल रही हैं। उन पर नोएडा में घर जाते वक्त हमला भी हो चुका है।
भारत विमर्श भोपाल मध्य प्रदेश