May 17, 2024

मुरारी बापू के द्वारा कराया गया श्मशान में विवाह अशास्त्रीय जानिए पूरी खबर

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ब्राह्मण /पंडित अवश्य पढे
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वर्त्तमान में मुरारी बापू जी द्वारा गुजरात में एक कपल के फेरे चिता से करवाए उस पर विस्तृत लेख –
कुछ भागवताचार्य शास्त्र विरुद्ध कार्य कर अपने को स्वयंभू मानते है जो कि गलत है कुछ का कहना है कि संत शास्त्र के पीछे नहीं चलते है १८ पुराण वेदव्यास जी द्वारा लिखे गए है | उनने सारे निर्णय दिए है | तो क्या ये वर्त्तमान के कुछ तथा कथित भागवताचार्य जो कि शास्त्र विरुद्ध कार्य कर स्वयं को धर्म के निर्णय कर्ता मानते है ये उन से भी अधिक ज्ञानी है ?
वर्त्तमान में एक भागवताचार्य जी ने श्मशान में फेरे करवाए है अब देखिये –
१- विवाह में योजक नाम की अग्नि (बलद) आती है जबकि चिता में अग्नि क्रव्याद नाम की होती है |
२- योजक अग्नि जोड़ने का कार्य करती है क्रव्याद अग्नि समाप्त करने का कार्य करती है |
३- श्मशान में निगेटिव ऊर्जा रहती है |
४- श्मशान में रुदन किया जाता है उस भूमि में सभी दुखी होकर जाते है इस से वहा के वातावरण में भी दुःख की स्थिति उपलब्ध रहती है |
५- श्मशान में शिव जी की स्थापना करते है तो माता पार्वती को साथ में नहीं बिठाते है क्योकि श्मशान में पत्नी साथ में नहीं रहती है |
६- शास्त्र में २७ प्रकार की अग्नि का वर्णन है प्रत्येक कार्य के लिए अलग – अलग प्रकार की अग्नि का आह्वान किया जाता है |
७- केवल लोमभ्य स्वाहा , त्वचे स्वाहा आदि मन्त्रों को छोड़कर वेद मन्त्रों का पाठ भी श्मशान में वर्जित है |
८- श्मशान में मंगलगान नहीं होता है |
९- श्मशान में विवाह तो ठीक परन्तु वहा की राख को भी अपवित्र माना जाता है |
१०- गरुड़ पुराण में लिखा है कि अग्नि प्रत्येक स्थान की पवित्र होती है उस को बार बार उपयोग में लाया जा सकता है परन्तु चिता की अग्नि अपवित्र होती है तो क्या जिन ने चिता की अग्नि से विवाह कराया क्या उचित किया ?
११- अगर गरुड़ पुराण में वेद व्यास जी ने गलत लिखा तो हम मान लेते है परन्तु फिर तो एसे विद्वानों को भागवत के प्रवचन भी नहीं करना चाहिए | क्योकि भागवत भी वेदव्यास जी ने ही लिखी है |
१२- यज्ञ में हड्डी का गिरना अशुभ माना जाता है चिता की अग्नि में मानव की हड्डी रहती ही है तो फिर उस अग्नि से फेरे कैसे हो सकते है ?
१३- विवाह में सभी मांगलिक वस्तुओं का होना आवश्यक है जबकि श्मशान में कोई भी वास्तु मांगलिक नहीं होती है |
१४- गुजरात में जिस कपल ने चिता के फेरे लिए और जिन आचार्य ने फेरे करवाए उन ने यह नहीं सोचा कि यह स्थान समाप्ति का सूचक है जबकि विवाह से तो जीवन का प्रारम्भ माना जाता है |
१५- अगर श्मशान इतना पवित्र है तो उस को पूर्वकाल से ही नगर से दूर क्यों बनाया जाता रहा है |
१६- श्मशान अगर पवित्र है तो फिर दाह संस्कार नगर से बाहर क्यों किया जाता है घर पर ही दाह संस्कार किया जा सकता है |
१७- श्मशान पवित्र है तो फिर मुर्दे को जलाकर स्नान क्यों किया जाता है ?
१८- श्मशान पवित्र है तो दाह संस्कार कर वही भोजन या पार्टी आदि क्यों नहीं रखी जाती है ?
१९- शवदाह के बाद तीसरे दिन अस्थि संचय करने के बाद भी स्नान क्यों किया जाता है क्योकि वहा अपवित्र हो जाते है |
२०- अगर श्मशान पवित्र है तो हमारे शास्त्रों में किसी भी शुभ कार्य को श्मशान में करने का वर्णन क्यों नहीं आया ?
उज्जैन में महाकाल मंदिर के पीछे महामृत्युंजय मठ में ज्योतिष की कक्षा की समाप्ति के बाद महामंडलेश्वर आदरणीय व्यासाचार्य जी पधारे जब मेरे द्वारा बताया गया की आदरणीय मुरारी बापू जी द्वारा गुजरात में एक कपल के फेरे चिता से करवाए तो उनने इस कृत्य की घोर निंदा की और बताया की ये धर्माचार्य हिन्दू धर्म को कहा ले जाना चाहते है |
उक्त विषय में बता दे की श्मशान भूमि को किसी भी धर्म में पवित्र नहीं माना गया है तो जो वैदिक धर्म तथा संसकारित धर्म है उस में भागवताचार्य जी जैसे उच्च आसन पर बैठे हुवे व्यक्ति श्मशान में फेरे करवाते है तो यह कितना निंदा का विषय है और वर्त्तमान के शिक्षित वर्ग से विचार करे तो यह कार्य वन मानुष जैसी हरकत को बताता है
अगर हम इस कार्य को सही मानते है तो वेदव्यास जी स्वर्ग में बैठे हुवे भारी पश्चाताप करेंगे की मेने किन मूर्खो के लिए ये १८ पुराण लिख डाले ?
पं. अतुल त्रिपाठी

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