तुर्की, मिस्र ने ठुकराया भारतीय गेहूं
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नई दिल्ली – भारत ने 13 मई को गेहूं के निर्यात पर बैन लगा दिया था. हालांकि, इससे पहले ही तुर्की के लिए भारत के गेहूं की यह खेप रवाना हो गई थी. तुर्की ने रूबेला वायरस का हवाला देकर गेहूं ठुकरा दिया था. इसके बाद इस खेप को मिस्र ने भी ठुकरा दिया था।
तुर्की और मिस्र से ठुकराई गई भारत के गेहूं की 56,000 टन खेप फिलहाल इजरायल के बंदरगाह पर फंसी हुई है।लाइव मिन्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, तुर्की और मिस्र से होते हुए गेहूं अब इजरायल के बंदरगाह पर पहुंच गया है. गेहूं की यह खेप कहां भेजी जानी है, उसके लिए सरकार से हरी झंडी मिलने का इंतजार किया जा रहा है।
हालांकि, सरकारी अधिकारियों ने इस बात से इनकार किया है कि गेहूं की खेप के ठुकराए जाने और पैगंबर मोहम्मद पर हालिया विवाद के बीच कोई संबंध है।
भारत सरकार का कहना है कि भारत से रवाना होने से पहले गेहूं की इस खेप को सभी जरूरी क्वारंटीन प्रक्रियाओं से गुजारा गया था. आईटीसी लिमिटेड ने इस खेप को तुर्की भेजा था।
अधिकारी ने कहा, तुर्की ने इसलिए गेहूं की खेप ठुकरा दी थी क्योंकि गेहूं में प्रोटीन की मात्रा 13-14 फीसदी से कम थी, जो तुर्की के लिए मुख्य खाद्य सुरक्षा मानक है।
वहीं, मिस्र ने सैंपल की जांच के बिना ही गेहूं की खेप लेने से इनकार कर दिया था,अधिकारी ने कहा, आमतौर पर सरकार इस तरह की स्थितियों में शामिल नहीं होती लेकिन गेहूं को लेकर वित्तीय लेनदेन हो गया था. आईटीसी को भी भुगतान किया जा चुका था. चूंकि यह भारत का गेहूं था तो हम इसे ट्रैक कर रहे हैं।
मिंट ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया गया था कि गेहूं की खेप नीदरलैंड्स को बेची गई थी लेकिन खेप को तुर्की और फिर मिस्र डाइवर्ट कर दिया गया. गेहूं में रूबेला वायरस होने की रिपोर्टों के बीच दोनों देशों ने गेहूं की खेप ठुकरा दी थी।एक अधिकारी ने कहा, भारत सरकार ने 13 मई को गेहूं के निर्यात पर बैन लगा दिया था लेकिन इससे पहले ही यह खेप भारत से रवाना हो गई थी. गेहूं की इस खेप की कीमत लाखों में हो सकती है क्योंकि रूस, यूक्रेन युद्ध के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गेहूं की कीमतों में तेज बढ़ोतरी हुई है।
उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के मुताबिक, अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कीमत 450-480 डॉलर प्रति टन के आसपास है।
एक अधिकारी ने कहा, भारत का गेहूं ठुकराए जाने का कारण उसमें प्रोटीन की मात्रा पर्याप्त मात्रा में नहीं होना है ना कि रूबेला वायरस।उन्होंने कहा कि हालांकि इसके राजनीतिक कारण भी हो सकते हैं,
एक अन्य अधिकारी ने कहा कि भारत के कुछ देशों के साथ संबंध ठीक नहीं है लेकिन इसके बावजूद भारत का अंतरराष्ट्रीय व्यापार खुद के बूते पर खड़ा है।उन्होंने कहा, सऊदी अरब के साथ हमारे संबंध उतने अच्छे नहीं है लेकिन फिर भी हम उनसे तेल खरीदते हैं. राजनीतिक मामलों का व्यापार से ज्यादा लेना-देना नहीं होता,एक्सपर्ट का कहना है कि जब कोई खेप ठुकराई जाती है तो आमतौर पर तीन विकल्प होते हैं. पहला, निर्यातक उसे नष्ट कर सकता है. दूसरा, उस खेप को कहीं और भेजा जा सकता है या फिर तीसरा उसे अपनी मूल जगह भेजा सकता है।उन्होंने कहा कि शिपमेंट को नष्ट करना आमतौर पर आखिरी विकल्प होता है लेकिन पहले भी ऐसा हुआ है,एक्सपर्ट ने कहा कि गेहूं खराब होने वाली कमोडिटी नहीं है. इसे भारत में महीनों स्टोर करके रखा जाता है।बता दें कि भारत सरकार ने 13 मई को गेहूं के निर्यात पर बैन लगा दिया था. देश में कीमतों को नियंत्रित करने के लिए यह फैसला लिया गया था. हालांकि, बाद में इस प्रतिबंध में कुछ छूट भी दी गई थी।
भारत विमर्श भोपाल मध्य प्रदेश