July 10, 2025

सेस शामिल हुआ तो स्‍टैंडर्ड डिडक्‍शन घटाने पर भी आपको देना पड़ सकता है कर, जाने क्यों

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नई दिल्ली: देश के वेतनभोगी वर्ग को वित्त मंत्री अरुण जेटली के 2018 आम बजट से करारा झटका लगा है। आम उम्मीदों से उलट सरकार ने टैक्स के मोर्चे पर कोई विशेष छूट नहीं दी है। इनकम टैक्स स्लैब में कोई बदलाव नहीं किया गया है। हालांकि, ट्रांसपोर्ट और मेडिकल खर्च के बदले 40 हजार रुपये के स्टैंडर्ड डिडक्शन के प्रावधान को लाया गया है। इसका मतलब यह है कि कुल आमदनी से 40 हजार रुपये घटाकर इनकम टैक्स का आकलन किया जाएगा। हालांकि, इनकम टैक्स पर सेस बढ़ाने का प्रावधान किया गया है। वहीं, बुजुर्ग को बैंक जमा से मिलने वाले ब्याज पर छूट की सीमा को बढ़ाकर 50 हजार रुपये कर दिया गया है। बता दें कि स्टैंडर्ड डिडक्शन 2005 में वापस ले लिया गया था। उसके बाद से ही टैक्सदाता हर साल यह उम्मीद करते रहे कि इसकी वापसी होगी। अधिकतर लोगों का मानना था कि इसे वापस लेना वेतनभोगी वर्ग के खिलाफ था। स्टैंडर्ड डिडक्शन वह रकम है जिसे टैक्स का आकलन करने के लिए कुल सालाना इनकम से घटा दिया जाता है। तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने इसे 2005-06 में हटा दिया था।



सरकार ने बताया है कि सैलरीड क्लास को स्टैंडर्ड डिडक्शन की सुविधा देने से राजस्व में 8,000 करोड़ रुपये की कमी आएगी। हालांकि, 2018 में जो स्टैंडर्ड डिडक्शन वापस लाया गया है, वो देने के साथ साथ बहुत कुछ छीन भी रहा है। इसके आने के बाद ट्रांसपोर्ट भत्ता, मेडिकल रींबर्समेंट और अन्य भत्ते छिन जाएंगे। अभी तक 15 हजार रुपये तक का मेडिकल बिल हर वित्त वर्ष टैक्स फ्री होता है। वहीं, ट्रांसपोर्ट भत्ते के तौर पर कर्मचारियों को हर वित्त वर्ष 19200 रुपये की छूट मिलती है। इस तरह से टैक्स छूट वाली आय की सीमा 5800 रुपये बढ़ जाएगी। यानी अब ढाई लाख नहीं, बल्कि 2 लाख 55 हजार 800 रुपये तक की सालाना आमदनी टैक्स फ्री होगी। हालांकि, हर कर्मचारी कितना टैक्स बचाएगा, ये उसके टैक्स स्लैब पर निर्भर करेगा।

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