May 19, 2025

ऐसे करें अपनी कुंडलिनी शक्ति को जागृत और बन जाएं शक्तिमान

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अपनी कुंडलिनी जागृत करें और बन जाएं शक्तिमान:

क्या है कुण्डलिनी –

कुंडलिनी की प्रकृति कुछ ऐसी है कि जब यह शांत होती है तो आपको इसके होने का पता भी नहीं होता। जब यह गतिशील होती है तब अपको पता चलता है कि आपके भीतर इतनी ऊर्जा भी है। इसी वजह से कुंडलिनी को सर्प के रूप में चित्रित किया जाता है। कुंडली मारकर बैठा हुआ सांप अगर हिले-डुले नहीं, तो उसे देखना बहुत मुश्किल होता है।परमाणु को आप देख भी नहीं सकते, लेकिन अगर आप इस पर प्रहार करें, इसे तोड़ दें तो एक जबर्दस्त घटना घटित होती है। जब तक परमाणु को तोड़ा नहीं गया था तब तक किसी को पता भी नहीं था कि इतने छोटे से कण में इतनी जबर्दस्त ऊर्जा मौजूद है।अगर आपकी कुंडलिनी जाग्रत है, तो आपके साथ ऐसी चमत्कारिक चीजें घटित होने लगेंगी जिनकी आपने कभी कल्पना भी नहीं की होगी। कुंडलिनी जाग्रत होने से ऊर्जा का एक पूरी तरह से नया स्तर जीवंत होने लगता है,और आपका शरीर और बाकी सब कुछ भी बिल्कुल अलग तरीके से काम करने लगता।

°देवी छिन्नमस्ता का घनिष्ठ सम्बन्ध, “कुंडलिनी” नामक प्राकृतिक ऊर्जा या मानव शरीर में छिपी हुई प्राकृतिक शक्ति से हैं।

ऐसे करे अपनी कुंडलिनी जागृत~

कुण्डलिनी शक्ति प्राप्त या जागृत करने हेतु; योग अभ्यास, त्याग तथा आत्म नियंत्रण की आवश्यकता होती हैं। एक परिपूर्ण योगी बनने हेतु, संतुलित जीवन-यापन का सिद्धांत अत्यंत आवश्यक हैं, जिसकी शक्ति देवी छिन्नमस्ता ही हैं, परिवर्तन शील जगत (उत्पत्ति तथा विनाश, वृद्धि तथा ह्रास) की शक्ति हैं देवी छिन्नमस्ता। इस चराचर जगत में उत्पत्ति या वृद्धि होने पर देवी भुवनेश्वरी का प्रादुर्भाव होता हैं तथा विनाश या ह्रास होने पर देवी छिन्नमस्ता का प्रादुर्भाव माना जाता हैं।देवी, योग-साधना की उच्चतम स्थान पर अवस्थित हैं। योगशास्त्रों के अनुसार तीन ग्रन्थियां ब्रह्मा ग्रंथि, विष्णु ग्रंथि तथा रुद्र ग्रंथि को भेद कर योगी पूर्ण सिद्धि प्राप्त कर पता हैं तथा उसे अद्वैतानंद की प्राप्ति होती हैं। योगियों का ऐसा मानना हैं कि मणिपुर चक्र के नीचे के नाड़ियों में हीकाम और रति का निवास स्थान हैं तथा उसी पर देवी छिन्नमस्ता आरूढ़ हैं तथा इसका ऊपर की ओर प्रवाह होने पर रुद्रग्रंथी का भेदन होता हैं।

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