आसान नहीं है यहां भी सीट बंटवारा,जल्द ही शुरू होगा खींचतान का खेल
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- क़ायम साबरी
विचार: दूसरे के घर में ताक-झाक कर रहे राजद के लिए अपने घर को भी संभालना इतना आसान नहीं होने वाला है. महागठबंधन में राजद सबसे बड़ा दल है, जिसने पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा था. जहां राजद को चार सीटें मिली थीं, 21 सीटों पर उसके प्रत्याशी दूसरे नंबर पर रहे थे. वही कांग्रेस के हिस्से में भी दो सीटें आई थीं और आठ सीटों पर उसके प्रत्याशियों ने कड़ी टक्कर दी थी.
पिछली बार की तुलना में इस बार परिस्थितियां भिन्न हैं. महागठबंधन में कई नए साथी का मिलाप हुआ है. जिसमे तीन वामपंथी दल, जीतनराम मांझी कि हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा, शारद यादव कि पार्टी लोकतांत्रिक जनता दल, और राजग में सीट बंटवारे से असंतुष्ट राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) अध्यक्ष एवं केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा भी महागठबंधन में दस्तक दे रहे हैं.
बहरहाल एक खास वोट बैंक वाली पार्टी का एक होना, एक तरफ गठबंधन को मजबूत तो करती ही है वही दूसरी तरफ इस गठबंधन को बनाये रखने के लिए राजद को बलिदान देना पड़ सकता है.. राजद इस महागठबंधन में गार्डियन के तौर पर शुरू से आगे रही है.
बात बिहार कांग्रेस की करे तो इसका कद पहले से बढ़ा है, चार विधायकों वाली पार्टी 27 विधायकों के साथ असरदार स्थिति में है. पार्टी अध्यक्ष मदन मोहन झा को बिहार में पार्टी को विस्तार देना हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में राजद ने कांग्रेस को गठबंधन के तहत 12 सीटें दी थीं. मगर इस बार कांग्रेस 50 – 50 के मूड में है. कांग्रेस भी चाहती है की राजद भी भाजपा की तरह क़ुर्बानी दे.
राजद के अन्य सहयोगी भी अपने-अपने सीटों के गणित के साथ बैठे है. हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा प्रमुख जीतनराम मांझी को गया समेत कम से कम तीन सीटें चाहिए. भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी (भाकपा) को बेगूसराय कन्हैया के लिए सीट चाहिए. माले की पटना या आरा पर प्रबल दावेदारी है. मार्क्सवादी कम्युनिष्ट पार्टी (माकपा) को नवादा किसी भी हाल में चाहिए. शरद यादव को भी खुद के लिए मधेपुरा चाहिए और तीन सहयोगियों रमई राम, उदय नारायण चौधरी, अली अनवर और अर्जुन राय के लिए सीटें चाहिए. समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष देवेंद्र प्रसाद यादव को भी संसद जाना है. वही उपेंद्र कुशवाहा कितने सीटों के रजामंदी के बाद आते है ये देखना बाकि है.
बहरहाल महागठबंधन में भी सीट बंटवारे को लेकर तकरार होना तय है. राजद के सामने सबसे बड़ी असमंजस है कि वह किसे कितनी सीटें दे और खुद के लिए कितनी सीटें रखे. ऐसे स्थिति में लालू जी का जेल में रहना राजद के लिए कष्टदायी साबित होगा. राजद महागठबंधन में बड़ा भाई की भूमिका छोड़ने को तैयार नहीं दिख रहा. वही दूसरी ओर महागठबंधन को बनाये रखने का दबाओ भी राजद के ऊपर ही है.