सात दिवसीय अन्तरराष्ट्रीय श्रीरामलीला उत्सव का समापन
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चित्रकूट – भारतीय संस्कृति में “लीला” केवल धार्मिक या पौराणिक कथा का मंचन नहीं, बल्कि लोकमानस का जीवंत उत्सव है। इसी प्रयास के साथ मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग द्वारा भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद् नई दिल्ली एवं जिला प्रशासन सतना के सहयोग से 24 से 30 सितम्बर, 2025 तक प्रतिदिन सायं 7 बजे से ‘’अन्तर्राष्ट्रीय श्रीरामलीला उत्सव’’ का आयोजन श्रीराघव प्रयाग घाट, चित्रकूट में आयोजन किया गया है।
30 सितम्बर 2025 प्रस्तुति संस्कृति कला संगम, नई दिल्ली के कलाकारों द्वारा लीला प्रस्तुति दी गई। लंका दहन के बाद, हनुमान जब समुद्र में छलांग लगाते हैं, तो उनके पसीने की एक बूंद एक मकर (मछली) निगल जाती है, और इससे मकरध्वज का जन्म होता है. मकरध्वज, अहिरावण के महल का रक्षक होता है और हनुमान के रास्ते में खड़ा हो जाता है. हनुमान, मकरध्वज को अपना ही प्रतिबिंब देखकर हैरान रह जाते हैं. मकरध्वज अपने कर्तव्य का पालन करते हुए हनुमान को रोकने की कोशिश करता है, और इस क्रम में दोनों के बीच युद्ध होता है. अंततः, हनुमान मकरध्वज को पहचान कर उसे मुक्त कर देते हैं. इसके बाद, श्री राम उन्हें पाताल का राजा घोषित करते हैं और उन्हें यह आशीर्वाद देते हैं कि वह अपने पिता के समान दूसरों की सेवा करें
द्वितीय प्रसंग में जब राम और रावण का युद्ध चल रहा था और इंद्रजीत मारा गया, तो रावण ने अपने मायावी भाई अहिरावण को मदद के लिए बुलाया. अहिरावण ने विभीषण का रूप धरकर राम और लक्ष्मण को उनके शिविर से छल से अगवा कर लिया और पाताल लोक ले गया. जब राम-लक्ष्मण गायब हुए तो विभीषण ने हनुमान जी को बताया कि कुछ गड़बड़ है. हनुमान जी पाताल लोक गए, जहाँ उनकी मुलाकात उनके पुत्र मकरध्वज से हुई, जिसे हराकर हनुमान जी अंदर प्रवेश कर पाए. पाताल लोक में हनुमान जी को बताया गया कि अहिरावण की शक्ति पांच अलग-अलग दिशाओं में जल रहे दीयों पर निर्भर है. जब तक ये दीये जलते रहेंगे, अहिरावण को हराया नहीं जा सकता. हनुमान जी ने पंचमुखी रूप धारण किया और एक साथ पांचों दीयों को बुझा दिया. इससे अहिरावण की मायावी शक्तियां समाप्त हो गईं. शक्तियां क्षीण होने के बाद हनुमान जी ने अहिरावण और उसकी सेना का वध कर दिया. इसके बाद, उन्होंने राम और लक्ष्मण को मुक्त कराया और उन्हें सुरक्षित वापस लंका में ले आए.
त्रतीय प्रसंग में भगवान विष्णु ने मनुष्य (राम) के रूप में अवतार लिया ताकि रावण का वध कर सकें, क्योंकि वरदानों में मनुष्य का उल्लेख नहीं था। राम की सेना ने समुद्र पर पत्थर का पुल बनाया और रावण की लंका पर चढ़ाई की। युद्ध में कुंभकर्ण और रावण के अन्य योद्धाओं को राम और उनकी सेना ने पराजित किया। भगवान राम और रावण के बीच भयंकर युद्ध हुआ। रावण की नाभि में अमृत था और उसका वध तभी संभव था जब वह अमृत सूख जाए। श्रीराम को रावण को हराने का रास्ता विभीषण ने बताया। श्रीराम ने रावण की नाभि में बाण मारकर उसके अमृत को सुखा दिया। अमृत सूखने के बाद, श्रीराम ने रावण का वध कर दिया, जिससे पृथ्वी पर श्री राम की जय-जयकार गूंज उठी। विभीषण को लंका का राज्य सौंपा गया और माता सीता को मुक्त कराया गया। यह हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण प्रसंगों में से एक है, जिसे दशहरे के पर्व के रूप में मनाया जाता है।


चतुर्थ प्रसंग में राज्याभिषेक रावण पर विजय प्राप्त करने और चौदह वर्षों का वनवास पूरा करने के बाद भगवान राम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटे थे। अयोध्या में श्री राम के राज्याभिषेक के लिए एक भव्य उत्सव की तैयारियां की गईं, जिसमें राजा दशरथ ने विशेष पूजा की और सभी प्रजाजन आनंदित थे। महर्षि वशिष्ठ के निर्देश पर, सूर्योदय के पश्चात पुष्य नक्षत्र में श्री राम का राज्याभिषेक किया गया था। कुलगुरु वशिष्ठ ने श्री राम के मस्तक पर सूर्यवंशी मुकुट पहनाकर उनका राजतिलक किया। इस अवसर पर माता सीता भगवान राम के वाम भाग (बाईं ओर) राज सिंहासन पर विराजमान हुईं, जिससे सभी माताएं प्रसन्न हुईं।


जावेद मोहम्मद विशेष संवाददाता भारत विमर्श चित्रकूट मध्य प्रदेश
