![](https://bharatvimarsh.com/wp-content/uploads/2024/07/IMG_20240703_143307.jpg)
विवेक चतुर्वेदी
बरसे बिन अब्र सी उसमें बेवफाई है
आदमी नहीं है वो माहे जुलाई है।
हंसें या रोएं वो है पक्का यकीन मुझे
फ़रेब है ये उनका और खुदनुमाई है।
महफूज़ थे बरसों से अमन के खतूत यहाँ
जला दिए सियासत ने कैसी दियासलाई है।
मजलूम थे मुल्क में जो और हुए हैं मजबूर
‘दुनिया भर के रहबर’ की ऐसी रहनुमाई है।
ये जगह जम्हूरियत ने बख्शी है औरत को
मांगते हैं वोट कह के श्याम की लुगाई है।
चांद और चेहरा कहें बदन और खुशबू कह लें
सिखा रहे वो हमको यही गज़ल सराई है।।
अब्र – बादल/ खुदनुमाई- आत्म प्रदर्शन/ खतूत- पत्र / जम्हूरियत- लोकतंत्र/ गज़ल सराई- गज़ल कहने का हुनर