April 27, 2024

ओ मीत मेरे ! एक दिया बालना

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विवेक चतुर्वेदी

तुलसी के चौरा पर
संकर और गौरा पर
अंगना दुआरे पर
नदिया किनारे पर
छेड़ रहा सांझ कोई
आकुल एक प्रार्थना
ओ मीत मेरे ! एक दिया बालना।

अनुरागी छंदों की
मात्राएं भंग हुईं
प्रीति तक पंहुचने की
राहें भी तंग हुईं
फिर भी तू प्रेमसमर
डरकर न हारना
ओ मीत मेरे! एक दिया बालना।

गोरी के गांव मिटे
पनघट से छंद हटे
जीवन मकरंद से जब
मनभावन गंध मिटे
नेह का शकुन्त तू
हियरे में पालना
ओ मीत मेरे! एक दिया बालना।

तारों के उजाले भी
आधी रात त्याग पत्र दें
संगामिति कर सूरज
आकस्मिक अवकाश लें
अंधेरी बिपत घड़ी
साहस से टालना
ओ मीत मेरे! एक दिया बालना।

पंडे और मुल्ला तो
झगड़ों में व्यस्त बहुत
स्वारथ के नेता भी
खुद में ही मस्त बहुत
आदमी से आदमी का
तू एक-एक सूत बांधना
ओ मीत मेरे! एक दिया बालना।

पिंजरे में सुगना भी
राम राम करता है
दूध रोटी की खातिर
चित्रकूटी बनता है
पर तू जब भी बोले
आत्मा से बोलना
ओ मीत मेरे! एक दिया बालना।

सलिल हो कि मानुस हो
गैया हों, कूकुर हों
गाछ हों, पखेरु हों,
धरा हो कि अम्बर हो
सब होवें लहालोट
सब की सुभ कामना
ओ मीत मेरे! एक दिया बालना।

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