May 4, 2024
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चित्रकूट – महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय में विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया। इस अवसर पर प्रकृति के पंचमहाभूतों क्षिति, जल,पावक, गगन व समीर के संरक्षण की बात की गई। कुलपति प्रो भरत मिश्रा के नेतृत्व में ग्रामोदय विश्वविद्यालय के शिक्षक, अधिकारी, कर्मचारी और छात्र छात्राओं ने इस आयोजन में भाग लिया। कार्यक्रम का आयोजन और संयोजन प्रो घनश्याम गुप्ता विभागाध्यक्ष ऊर्जा और पर्यावरण विभाग, विज्ञान व पर्यावरण संकाय ने किया।इस अवसर पर विवेकानंद खुला सभागार में वृक्षारोपण और पर्यावरण संरक्षण के लिए वैदिक मंत्रोच्चारण के मध्य हवन पूजन किया गया। पर्यावरण के विद्यार्थियों ने इस आयोजन में अपनी सक्रिय भूमिका निभाई।
इस अवसर पर आयोजित व्याख्यान कार्यक्रम में बताया गया कि पृथ्वी का संरक्षण पौधे करते हैं क्योंकि पौधे अपनी जड़ों के द्वारा पृथ्वी को जकड़ कर उसका अपरदन रोककर उसे स्थायित्व प्रदान करते हैं। पौधों की पत्तियां जमीन पर गिरकर ह्यूमस का निर्माण करती हैं और इस प्रकार से पृथ्वी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाती हैं।इस प्रकार से वृक्ष पृथ्वी को स्थायित्व के साथ-साथ उर्वरा शक्ति भी प्रदान करते हैं। वृक्ष वर्षा के जल को बहने से रोककर एवं वर्षा जल का संग्रहण कर उसका अधिकाधिक रिचार्ज कर उसको पृथ्वी के अंदर भेजते हैं । इस प्रकार से भूजल में बढ़ोतरी करते हैं। वृक्ष वायु में उपस्थित अनेकों विषैली गैसों का शमन करते हैं। विशेष रूप से वे हमारे वाहनों, औद्योगिक इकाइयों, इत्यादि द्वारा निकली विषैली गैस कार्बन डाइऑक्साइड का प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में उपयोग कर अपना भोजन बनाते हैं एवं प्राणवायु प्रदान करते हैं। इसी प्राणवायु को जन्तु श्वसन क्रिया द्वारा ग्रहण कर अपने को जीवित रखते हैं। इस प्रकार से प्रकृति के तीन महा भूतों का सीधा संबंध वृक्ष से है। इस कारण से विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर विश्वविद्यालय में वृक्षारोपण किया गया । रामचरितमानस मे भी वृक्षारोपण का महत्त्व दिया गया है: तुलसी तरूबर बिबिध सुहाए। कहुं कहुं सियं कहुं लखन लगाए।। (अयोध्या कांड- 236/237)।प्रकृति के चौथे महाभूत अग्नि का महत्त्व सनातन धर्म में हवन के रूप में वर्णित किया गया है। हवन के माध्यम से वायुमंडल में उपस्थित अनेक दूषित गैसों का शमन होता है। इस कारण से उक्त अवसर पर हवन का कार्य भी संपन्न किया गया। मानस में भी हवन अर्थात यज्ञ का महत्व दिया गया है: पीपर तरू तर ध्यान सो धरई। जाप जग्य पाकरि तर करई।। (उत्तरकांड-56/57)।प्रकृति के पांचवे महाभूत गगन नाद का ही एक रूप है, इसी कारण से हमारे सनातन धर्म में नाद के विभिन्न यंत्रों जैसे शंख, शहनाई,मृदंग,मजीरा,दुन्दभी,ढोलक,घण्टा- घड़ियाल, डमरु,नगाडा़ आदि द्वारा उत्पन्न नाद का बहुत महत्व है। इसी कारण से उक्त अवसर पर घंटा, शंख आदि का वादन कर नाद का उच्चारण किया गया। श्रीरामचरितमानस में भी नाद का महत्व आया हुआ है : नभ दुन्दभी बाजहिं बिपुल गंधर्ब किन्नर गावहीं।नाचहिं अप्सरा बृंद परमानंद सुर मुनि पावहीं।। (उत्तरकांड- 11/12)।उक्त विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से पांच महा भूतों के महत्व व संरक्षण की बात की गई । संक्षेप में इन महाभूतों का संरक्षण विशेष रुप से उनके दोहन के स्थान पर सदुपयोग द्वारा किया जा सकता है ।

जावेद मोहम्मद विशेष संवाददाता भारत विमर्श चित्रकूट म०प्र०

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