विश्व पृथ्वी दिवस पर रैली की गई आयोजित
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चित्रकूट – महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय के ऊर्जा एवं पर्यावरण विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ घनश्याम गुप्ता एवं वी.एस.आर. के प्रमुख डॉ वीरेंद्र उपाध्याय के नेतृत्व में एमएससी पर्यावरण विज्ञान के छात्रों द्वारा विश्व पृथ्वी दिवस पर विश्वविद्यालय परिसर में रैली निकाली गई। रैली परिसर के अंदर भ्रमण करते हुए विवेकानंद सभागार पहुंची। रैली में विभिन्न प्रकार के नारे छात्रों व प्राध्यापकों द्वारा लगाए जा रहे थे, जिनमें प्रमुख रूप से थे – जिस धरा का नहीं विकल्प, उसकी सेवा का संकल्प ।आओ मिलकर वृक्ष लगाएं, अपनी धरा को स्वर्ग बनाएं। वृक्षारोपण कार्य महान, एक वृक्ष सौ पुत्र समान।विश्व पृथ्वी दिवस, अमर रहे अमर रहे।
विवेकानंद सभागार में विश्व पृथ्वी दिवस पर ऊर्जा व पर्यावरण विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो.घनश्याम गुप्ता ने बताया कि पृथ्वी दिवस मनाने की शुरुआत वर्ष 1970 में सीनेटर गेलार्ड नेल्सन द्वाराहुई थी ।वस्तुत: वर्ष 1969 में कैलिफोर्निया के सांता बारबरा में तेल रिसाव की वजह से त्रासदी हुई एवं इस हादसे में कई लोग हताहत हुए फलत: पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काम करने का फैसला किया गया ।इसके बाद नेल्सन के आव्हान पर दि. 22 अप्रैल 1970 को लगभग दो करोड़ अमेरिकियों ने पृथ्वी दिवस के प्रथम आयोजन में भाग लिया । इस वर्ष के पृथ्वी दिवस का विषय है, हमारे ग्रह में निवेश करें । इसका उद्देश्य वर्तमान समय में मानव समुदाय व सरकार को केवल अंधाधुन्ध विकास को प्राथमिकता देने के साथ-साथ प्रकृति के पंच महाभूतों पृथ्वी, जल ,अग्नि ,वायु व गगन की रक्षा तथा उसके संरक्षण को लेकर उचित कदम उठाने का आवाहन करती है ताकि भावी पीढ़ियां भी सुरक्षित रह सकें। संक्षेप मे सतत विकास( सस्टेनेबल डेवलपमेंट) की संज्ञा दी जाती है। हमें पृथ्वी ग्रहकी भलाई और स्थिरता में निवेश बढ़ाने की आवश्यकता पर बल देना होगा साथ ही दुनिया भर में पर्यावरण को लेकर सकारात्मक बदलाव लाने तथा आज की चुनौतियों से निपटने के लिए जन जागरूकता फैलानी होगी। वर्तमान समय में बढ़ते कृतिम संसाधनों ,कारखानों, वाहनों, भवनो,कट रहे जंगलों आदि के द्वारा हो रहे विभिन्न प्रकार के प्रदूषणों के कारण सभी को बहुत नुकसान पहुंच रहा है जिसके चलते आगामी समय में हमारी पीढ़ियों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा । दुनिया भर के कई देशों में प्रकृति विरोधी घटनाओं और गतिविधियों के कारण वर्तमान समय में पृथ्वी दिवस एक वैश्विक आंदोलन बन गया है।वैदिक परंपरा के अनुसार पृथ्वी को मां एवं मानव जाति को उसके पुत्र की संज्ञा दी गई थी, माता भूमि पुत्रोहम प्रथ्विया,किंतु आज उसी मानव ने अपनी मां पृथ्वी पर इतना अधिक अत्याचार कर रखा है कि लगता है जैसे रावण राज्य आ गया हो।रावण के राज्य में पृथ्वी जितनी दुखी थी वही परिस्थितियां आज परिलक्षित हो रही हैं ।श्रीरामचरितमानस में आया हैकि ,आतिसय देखि धर्म कै ग्लानी। परम सभीत धरा अकुलानी।। निज संताप सुनाएसि रोई। काहू ते कछु काज न होई।। (बालकांड-183/184)। आज भी पृथ्वी मां अपने पर हो रहे अत्याचारों को किसे सुनाए क्योंकि अधिकांश लोग पृथ्वी के साथ अन्य महाभूतों (जल, पावक, गगन, समीरा) का अंधाधुंध दोहन करने में लगे हैं ।हम जंगलों की बेरहमी से कटाई कर रहे हैं।नदियों का रास्ता बदल रहे हैं, उनके प्राकृतिक किनारों को कंक्रीट की दीवारों पर बदलने पर तुले हुए हैं। नदी को कंक्रीट की दीवारों में कैद कर उसको कृतिम नहर में बदलना चाहते हैं। निश्चय ही इससे नदी को मिलने वाले असंख्य जल स्त्रोत बंद हो जाएंगे एवं नदी में लगातार पानी की मात्रा कम होती जाएगी और इस प्रकार से नदी की मृत्यु अर्थात नदी का विलुप्त हो जाना । इसी प्रकार से नदी के प्राकृतिक किनारों पर बिना किसी आवश्यकता के केवल सुंदरीकरण के नाम पर घाटों का निर्माण किया जाना पर्यावरण की दृष्टि से बहुत उचित नहीं है।यदि निर्माण किया ही जाना है तो घाटों का निर्माण पिलर बेस्ड
होना चाहिए ताकि नदी में पहुंचने वाले असंख्य जलस्रोत बंद न हों तथा नदी सदानीरा बनी रहे। सतत विकास का भी यही सिद्धांत है। पूर्व में चित्रकूट में 3 नदियां हुआ करती थीं। वर्तमान में केवल एक नदी मंदाकिनी ही जीवित है जिसको चित्रकूट की जीवन रेखा कहते हैं। हम मंदाकिनी को केवल जीवन रेखा कहते भर हैं उसका पालन बिल्कुल नहीं करते। अगर इस प्रकार की गतिविधियों पर हम सचेत नहीं हुए तो वह दिन दूर नहीं कि हम अपनी एकमात्र जीवन रेखा पवित्र सलिला मंदाकिनी को शीघ्र ही खो देंगे। प्रकृति के पांचो भूत एक दूसरे से जुड़े हुए हैं एवं आपस में एक दूसरे पर निर्भर हैं। किसी भी भूत के साथ खिलवाड़ करने या उसका नुकसान पहुंचाने पर अन्य भूतों का भी नुकसान होता है ।कर्म के आधार पर संत, वृक्ष, नदी, पर्वत व पृथ्वी को एक परिवार माना गया है, ऐसा श्री रामचरितमानस में आया है
संत बिटप सरिता गिरि धरनी। पर हित हेतु सबन्हिकै करनी।। (उत्तरकांड-124 /125 )किंतु आज वृक्ष, नदी, पर्वत व धरा पर हो रहे अत्याचारों पर उनके परिवार का प्रमुख सदस्य संत चुप है और निश्चित ही उसकी यह चुप्पी उसके परिवार के लिए घातक सिद्ध होगी। संक्षेप में हमें प्रकृति के पांचो महाभूत के प्रति अत्यंत जागरूक होना पड़ेगा एवं उनका संरक्षण करना होगा। कार्यक्रम में एमएससी पर्यावरण विज्ञान के छात्रों अभिनय देववंशी, अभिषेक चतुर्वेदी, अतुल त्रिपाठी ,नीलेंद्र सिंह ,नीरज द्विवेदी , नीलेंद्र सिंह, शुभम सिंह, सुनील कुमार ,साक्षी चैतन्य, वैभव पांडे, अमन शुक्ला, अमन द्विवेदी ,भरत किशोर चतुर्वेदी, धनराज गुप्ता, कामद गुप्ता, काशी प्रजापति,पुष्पराज सिंह, राजीव मिश्रा ,शिवम गुप्ता, सुजीत कुमार, संदीप कुमार, तनु सिंह, विद्यासागर श्रीवास इत्यादि ने हिस्सा लिया।

जावेद मोहम्मद विशेष संवाददाता भारत विमर्श चित्रकूट म०प्र०