July 11, 2025

मप्र के गुलाब की महक दुबई और बांग्लादेश तक पहुंच रही

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भोपाल – मध्यप्रदेश के गुना जिले के कोकाटे कॉलोनी में रहने वाले 27 साल के इंजीनियर अनिमेश श्रीवास्तव। भोपाल से सिविल इंजीनियरिंग करने के बाद नौकरी शुरू की। तभी किसी दोस्त के पॉली हाउस में पहुंचे। दोस्त के एक आइडिया ने उनकी किस्मत बदल दी। यहीं से उनका रिश्ता मिट्टी से जुड़ गया। उनके पॉली हाउस में लगाए गए गुलाब की महक दुबई और बांग्लादेश तक पहुंच रही है। वे रोजाना 5-6 हजार रुपए के गुलाब जयपुर और दिल्ली भेज रहे हैं। रोज 60-70 बंडल फूलों का उत्पादन हो रहा है।
इंजीनियर अनिमेश श्रीवास्तव का कहना है कि मैंने पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट हार्वेस्टिंग एंड टेक्नोलॉजी से 15 दिन की ट्रेनिंग ली। वहां मैंने किस किस्म की मिट्टी में कौन सी फसल बेहतर हो सकती है, इसकी ट्रेनिंग ली। मैंने 2018 में गुना से 30 किमी दूर म्याना के पास अपनी जमीन पर खेती शुरू की। 3 एकड़ में मैंने पॉली हाउस बनाया और गुलाब की खेती शुरू की। पुणे के तलेगांव से डच रोज किस्म के पौधे मंगाए। देश में केवल यही एक ऐसी जगह है, जहां डच रोज के पौधे मिलते हैं। डच रोज का एक पौधा 11 रुपए में खरीदा। कुल 3 एकड़ में 24 हजार पौधे लगाए।
30 लाख रुपए खर्च किए

5 वर्ष तक यह पौधे लगातार उत्पादन देते हैं। पॉली हाउस बनाने में करीब 30 लाख रुपए खर्च किए। इसमें सरकार की तरफ से सब्सिडी भी मिली। 12-13 लाख रुपए का निवेश किया। मेरे गुलाबों का सबसे बड़ा मार्केट दिल्ली और जयपुर है। इसकी वजह है कि गुना से यहां ट्रांसपोर्ट आसान है। रोजाना ट्रेन से जयपुर और दिल्ली गुलाब भेजे जाते हैं। दिल्ली के कुछ व्यापारी यहां से गुलाब खरीदकर दुबई और बांग्लादेश तक एक्सपोर्ट करते हैं।

ऐसी जलवायु चाहिए

पौधे लगाने से पहले बेड बनाए जाते हैं। 90 सेमी चौड़े और एक से डेढ़ फुट ऊंचे मिट्टी के बेड के बीच की दूरी 40 सेमी रखी जाती है। बेड बनाते समय गोबर का खाद या ऑर्गेनिक खाद डाला गया। बेड बन जाने के बाद हाथ से एक-एक कर पौधे रोपे जाते हैं। एक पौधे से दूसरे की दूरी 15 सेमी रखी जाती है। डच रोज के लिए 25-27 डिग्री तापमान और 70-85 प्रतिशत नमी की जरूरत होती है। एक बार तोडऩे के 40 दिन बाद फिर फूल खिल जाते हैं। यह क्रम पूरे साल चलता रहता है।

ऐसे होती है सिंचाईसिंचाई के लिए ड्रिप एरिगेशन का इस्तेमाल होता है। दो पाइप लगाए जाते हैं। एक पाइप से पौधों की जड़ों में पानी पहुंचाया जाता है। वहीं दूसरे पाइप से पत्तियों और डालियों को पानी मिलता है। पॉली हाउस के बाहर एक पानी का टैंक बनकर उससे सप्लाई होती है। यह ध्यान रखा जाता है कि पानी ज्यादा न हो। ऐसा होने पर बेड के टूटने का खतरा होता है। पानी कम भी न हो, नहीं तो पौधे सूख सकते हैं। फिर रोजाना पौधों पर कैल्शियम नाइट्रेट और मैग्नीशियम का छिड़काव किया जाता है।

60-70 बंडल रोज होता है उत्पादनएक दिन में 60-70 बंडल गुलाब का उत्पादन होता है। एक बंडल में 20 गुलाब रहते हैं। बंडलों में पैक करके ही इसे आगे भेजा जाता है। एक बंडल की कीमत एवरेज 100 रुपए तक होती है। कभी यह कम भी होती है, लेकिन सीजन के दौर में ज्यादा कीमत भी मिलती है।

भारत विमर्श भोपाल मध्य प्रदेश

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